स्वास्थ्य

कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ जंग लड़ रहा है बिहार का यह सरकारी स्कूल

Pushya Mitra

बिहार के पूर्णिया जिले के कसबा प्रखंड मुख्यालय में स्थित यह स्कूल पहली ही नजर में किसी आम सरकारी स्कूल जैसा नहीं दिखता। परिसर की साफ सफाई, स्कूल भवन के रंग रोगन, दीवारों पर बने प्रेरणा दायक चित्र, करीने से बने शौचालय और मूत्रालय, परिसर में लगे पेड़ पौधे, यह सब बरबस आपका ध्यान खींचते हैं। मगर इस विद्यालय की सबसे बड़ी खासियत इसकी वह कोशिश है जो इसने अपने छात्रों को कुपोषण और एनीमिया से बचाने के लिये 2016 से चला रही है। इस स्कूल के इस प्रयास को यूनिसेफ की कंट्री हेड ने सराहा और इस साल फरवरी माह में बांग्लादेश के शिक्षा विभाग के अधिकारी इन प्रयासों को देखने खुद पूर्णिया पहुंचे।

इस विद्यालय की अपनी पोषण वाटिका है जहां कई तरफ की सब्जियां उगाई जाती हैं, जिसे पकाकर मिड डे मील के साथ बच्चों को खिलाया जाता है। विद्यालय में आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का नियमित वितरण होता है। विद्यालय का अपना हैंडवाश स्टेशन जहां खाने से पहले और खाने बाद साबुन से हाथ धोने का काम बच्चे पूरे उत्साह के साथ करते हैं। स्कूल का अपना साबुन बैंक और सेनेटरी नैपकिन बैंक है। शौचालय और मूत्रालय की बेहतर व्यवस्था है। यानी हर ऐसे प्रयास ठीक से किये गए हैं, जिससे कुपोषण और एनीमिया जैसे रोगों से बचाव हो सके।

विद्यालय के प्राचार्य जलज लोचन कहते हैं, कुछ साल पहले यहां की प्रातःकालीन प्रार्थना में कई बच्चे खड़े खड़े बेहोश होकर गिर जाते थे। फिर हमलोगों ने यहां पढ़ने वाले बच्चों की जांच करवाई और पाया कि स्कूल के कुछ बच्चे एनिमिक हैं। फिर हमलोगों ने पता करना शुरू किया कि बच्चों को कुपोषण और एनीमिया से कैसे बचा सकते हैं, इसी प्रक्रिया में ये रास्ते निकल आये।

दरअसल विद्यालय के प्राचार्य जलज लोचन इसी स्कूल के पूर्व छात्र हैं। 1861 में शुरू हुए इस स्कूल आदर्श मध्य विद्यालय, कसबा के दस शिक्षकों में से 5 यहां के पूर्व छात्र हैं। एक वक्त इस स्कूल की काफी प्रतिष्ठा थी, मगर बाद में यह सामान्य स्कूलों जैसा ही हो गया। जलज जब यहां प्राचार्य बनकर आये तो उन्होंने अपने स्कूल को बेहतर बनाने के लिये कई तरफ के प्रयास किये। उन्होंने अपने स्कूल के पूर्व छात्रों को भी इस अभियान से जोड़ा। स्कूल को कुपोषण और एनीमिया से मुक्त कराने का यह अभियान भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। जलज कहते हैं, जबसे उन्होंने इस अभियान को शुरू किया है, बच्चों की सेहत में गुणात्मक परिवर्तन नजर आ रहा है। पिछले साल नवम्बर महीने में यूनिसेफ की कंट्री हेड यास्मीन अली हक भी इस स्कूल को देखने आए थी, वे यहां के काम काज को देखकर काफी प्रभावित हुईं और अपने ट्विटर हैंडल से यहां की तस्वीरें पोस्ट की। उनके पोस्ट को देखकर ही बांग्लादेश के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण विभाग के छह अधिकारी इस साल फरवरी के पहले सप्ताह में उनके स्कूल को देखने आए और अपने देश के स्कूलों में भी इस मॉडल को लागू करने की बात कही।

इस अभियान के अलावा भी इस स्कूल ने शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रयोग किये हैं। यहां कक्षा 5 के बाद क्लास रूम विषय के आधार पर बने हैं, जैसे गणित, विज्ञान या अंग्रेजी की कक्षा। क्लास रूम में शिक्षक बैठे रहते हैं और रूटीन के हिसाब से कक्षाएं बदलती रहती हैं। कक्षाओं को विषय के हिसाब से सजाया गया है और वहां उस हिसाब से संसाधन जुटाए गए हैं। स्कूल में पुस्तकालय, खेल के संसाधन और प्रयोगशाला की भी अच्छी व्यवस्था है। जलज कहते हैं, हमें जो संसाधन सरकार की तरफ से मिलते हैं उन्हें संवार कर रखते हैं, इसके अतिरिक्त जिन चीजों की जरूरत होती है, उसे यहां के पूर्व छात्र जो आज अपने कैरियर में स्थापित हैं, उपलब्ध करा देते हैं।

दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 63.5 फीसदी बच्चे एनीमिक और 43.9 फीसदी बच्चे कुपोषित बताये जाते हैं। इन मानकों में बिहार की पूरे देश में सबसे खराब स्थिति है। ऐसे में मध्य विद्यालय, कसबा में हो रहे प्रयोग पूरे राज्य के स्कूलों के लिए प्रेरक हो सकते हैं।