मुम्बई स्थित एक अस्पताल में टीबी के मरीज की जांच करते डॉक्टर; फोटो: डेविड रोशकाइंड/ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 
स्वास्थ्य

सालाना 12.5 लाख जिंदगियों को निगल रही यह बीमारी, डब्ल्यूएचओ ने अपनी तरह के पहले परीक्षण को दी मंजूरी

ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2024 के मुताबिक दुनिया के एक चौथाई से अधिक टीबी के मामले भारत में सामने आए थे

Lalit Maurya

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने टीबी के अपनी तरह के पहले परीक्षण को मंजूरी दी है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसने पिछले साल 12.5 लाख लोगों की जान ली थी। इनमें से 161,000 लोग एचआईवी से पीड़ित थे।

अमेरिकी कंपनी सेफिड द्वारा निर्मित यह एक्सपर्ट एमटीबी/आरआईएफ अल्ट्रा टेस्ट, टीबी के निदान और एंटीबायोटिक संवेदनशीलता का पता लगाने का अपनी तरह का पहला परीक्षण है।

बता दें कि यह पहला टीबी परीक्षण है जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध की जांच सहित सटीकता और गुणवत्ता के लिहाज से डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित पूर्व-योग्यता मानकों को पूरा करता है।

डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित इन पूर्व-योग्यता मानकों (प्रीक्वालिफिकेशन) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण उत्पाद सुरक्षित और प्रभावी होने के साथ-साथ गुणवत्ता के लिए निर्धारित वैश्विक मानकों पर खरे उतरें।

ऐसे में इस परीक्षण को डब्ल्यूएचओ की स्वीकृति इसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करती है। साथ ही यह टीबी के लिए जल्द से जल्द निदान और उपचार तक पहुंच को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह स्वीकृति इसकी निर्माता कंपनी सेफिड से प्राप्त जानकारी और इस उत्पाद के लिए जिम्मेवार एजेंसी सिंगापुर स्वास्थ्य विज्ञान प्राधिकरण (एचएसए) की समीक्षा पर आधारित है।

साझा जानकारी के मुताबिक यह एक्सपर्ट एमटीबी/आरआईएफ अल्ट्रा टेस्ट, जीनएक्सपर्ट सिस्टम के साथ मिलकर थूक के नमूनों में टीबी के बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) का पता लगाता है। यह जांच कुछ ही घंटों में सटीक परिणाम प्रदान करती है।

यह रिफैम्पिसिन प्रतिरोध से जुड़े म्युटेशन की भी जांच करता है, जो दवा प्रतिरोधी (मल्टीड्रग-रेसिस्टेन्स) टीबी का प्रमुख संकेत है। यह परीक्षण उन लोगों के लिए है जो फेफड़ों से जुड़ी टीबी का सकारात्मक परीक्षण करते हैं और जिन्होंने या तो उपचार शुरू नहीं किया है या पिछले छह महीनों में तीन दिन या उससे कम समय तक उपचार लिया है।

लाइलाज नहीं टीबी, बस ध्यान देने की है जरूरत

गौरतलब है कि टीबी सबसे घातक संक्रामक रोगों में से एक है, जिसे यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या ट्यूबरक्लोसिस जैसे कई नामों से जाना जाता है। यह बीमारी हवा के जरिए बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के कारण फैलती है।

आमतौर पर यह बीमारी फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन शरीर के कई अन्य अंग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बीमारी हर साल दस लाख से ज्यादा जिंदगियां निगल रही है। इसके साथ ही यह गंभीर सामाजिक, आर्थिक समस्याओं की भी वजह बन रही है।

टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसका उपचार संभव है। हालांकि इसके बावजूद यह बीमारी हर साल लाखों लोगों की जान ले रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 2023 में इसकी वजह से 12.5 लाख लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।

यह बीमारी जहां बड़ी संख्या में एचआईवी संक्रमित लोगों की मृत्यु का कारण बन रही है। वहीं यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध से जुड़ी मौतों का भी एक प्रमुख कारण है।

2023 में, वैश्विक स्तर पर करीब 1.08 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे। इनमें से करीब 60 लाख पुरुष, जबकि 36 लाख महिलाएं शामिल थी। इतना ही नहीं इस बीमारी ने 13 लाख बच्चों को भी अपना शिकार बनाया था।

कमजोर देशों में यह बीमारी एक विकट समस्या है। इन देशों में इसका जल्द से जल्द पता लगाना बेहद जरूरी है, खासतौर पर जब यह बीमारी दवा-प्रतिरोधी हो तब यह स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। 

दुनिया में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) भी स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर संकट है। आपको जानकार हैरानी होगी कि 2023 में दवा प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित केवल पांच में से दो मरीजों को ही उपचार मिल पाया था। हालांकि 2000 से टीबी से निपटने के किए गए वैश्विक प्रयासों ने तब से करीब आठ करोड़ लोगों की जान बचाई है। इसके उन्मूलन को सतत विकास के लक्ष्यों में भी जगह दी गई है, जिनका लक्ष्य 2030 तक इस बीमारी को पूरी तरह समाप्त करना है।

‘ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2024’ के मुताबिक दुनिया में टीबी के जितने भी मामले सामने आते हैं, उनमें से आधे से अधिक (56 फीसदी) मामले भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और पाकिस्तान में दर्ज किए गए हैं। यदि भारत की बात करें तो 2023 में दुनिया के एक चौथाई से अधिक मामले (26 फीसदी) भारत में सामने आए थे।

इस बारे में प्रेस में जारी एक बयान में डब्ल्यूएचओ के सहायक महानिदेशक डॉक्टर युकिको नाकातानी ने कहा, "यह डब्ल्यूएचओ के उन प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो देशों को उच्च गुणवत्ता वाले टीबी परीक्षणों तक पहुंच बढ़ाने और उसमें तेजी लाने के लिए जारी हैं। यह परीक्षण डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों और सख्त गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं।"

उनके मुताबिक यह दर्शाता है कि दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक से लड़ने में उन्नत नैदानिक ​​उपकरण कितने महत्वपूर्ण हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का ग्लोबल टीबी प्रोग्राम और नियमन एवं पूर्व योग्यता विभाग विश्वसनीय टीबी परीक्षणों तक पहुंच को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। इनका लक्ष्य देशों के लिए अधिक से अधिक विकल्प प्रदान करना है। मौजूदा समय में सात और टीबी परीक्षणों की समीक्षा की जा रही है।