प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

मोबाइल फोन और मस्तिष्क के कैंसर के बीच नहीं कोई संबंध, डब्ल्यूएचओ समर्थित रिसर्च में हुआ खुलासा

रिसर्च के मुताबिक जो लोग लम्बे समय तक मोबाइल पर बाते करते हैं उनमें भी मोबाइल फोन के उपयोग और कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं देखा गया

Lalit Maurya

मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों के दिमाग में अक्सर यह ख्याल आता है कि कहीं इसके उपयोग से उन्हें कैंसर तो नहीं हो जाएगा। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किए गए अध्ययन ने इन अटकलों को खारिज कर दिया है।

अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा मोबाइल फोन और स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को लेकर किए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन में सामने आया है कि मोबाइल फोन और मस्तिष्क के कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने 1994 से 2022 के बीच प्रकाशित 63 अध्ययनों का विश्लेषण किया है।

ऑस्ट्रेलियन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी एजेंसी के नेतृत्व में की गई इस समीक्षा में 5,000 से अधिक अध्ययनों की जांच की गई है। हालांकि इस समीक्षा में उन्हीं अध्ययनों को शामिल किया गया, जो वैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय थे, जबकि बाकी अध्ययनों को समीक्षा से बाहर कर दिया गया था।

विश्लेषण के मुताबिक अध्ययन में मोबाइल फोन और मस्तिष्क के कैंसर या सिर और गर्दन के अन्य कैंसर के बीच किसी प्रकार का कोई संबंध होने का सबूत नहीं मिला है। गौरतलब है कि इस अध्ययन में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र जैसे मस्तिष्क, मेनिन्जेस, पिट्यूटरी ग्रंथि और कान के कैंसर के साथ-साथ लार ग्रंथि और मस्तिष्क के ट्यूमर पर ध्यान दिया गया था।

लम्बे समय तक मोबाइल के उपयोग से भी नहीं होता दिमाग का कैंसर

शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया में वायरलेस तकनीकों के उपयोग में भारी वृद्धि के बावजूद, मस्तिष्क से जुड़े कैंसर की घटनाओं में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है। इतना ही नहीं अध्ययन के मुताबिक जो लोग लम्बे समय तक मोबाइल पर बाते करते हैं उनमें भी मोबाइल फोन के उपयोग और कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं देखा गया है।

इसी तरह यह बात उन लोगों पर भी लागू होती है जो एक दशक से भी ज्यादा समय से मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट और इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा कॉसमॉस परियोजना के तहत किए अध्य्यन में पुष्टि की थी कि लंबे समय तक मोबाइल फोन का उपयोग करने से मस्तिष्क कैंसर का जोखिम नहीं होता है।

2007 में शुरू किए गए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 250,000 से अधिक मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं का अध्ययन किया, ताकि यह देखा जा सके कि क्या फोन के बहुत ज्यादा उपयोग से समय के साथ मस्तिष्क के ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है।

डब्ल्यूएचओ और अन्य स्वास्थ्य संगठनों का भी कहना है कि इस बात के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं, हालांकि उन्होंने इस बारे में और अधिक शोध करने की मांग की थी।

इस बारे में ऑस्ट्रेलियन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी एजेंसी और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर केन कारिपिडिस का कहना है कि यह मोबाइल फोन और कैंसर को लेकर किया गया अब तक का सबसे व्यापक और अपडेटेड मूल्यांकन है।

उनके मुताबिक जब 2013 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) ने रेडियो तरंगों के संपर्क को संभावित कैंसरकारी के रूप में वर्गीकृत किया था, तो यह मुख्य रूप से इंसानों पर किए सीमित अध्ययनों से प्राप्त साक्ष्यों पर आधारित था।

गौरतलब है कि आईएआरसी ने इसे संभावित रूप से कैंसरकारी या क्लास 2बी में रखा है। इस कैटेगरी का मतलब है कि एजेंसी यह स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकती कि इससे कोई खतरा है या नहीं।

वहीं इस नए अध्ययन ने स्पष्ट कर दिया है कि मोबाइल फोन के उपयोग से कैंसर नहीं होता। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्तमान में रेडियो तरंगों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों के बारे में एक रिपोर्ट पर काम कर रहा है। इस रिपोर्ट में इस नए अध्ययन के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ द्वारा किए गए अन्य अध्ययनों के निष्कर्षों को शामिल किया जाएगा।