स्वास्थ्य

दो महामारियों से एक साथ जूझ रही है दुनिया

विश्वभर में एचआईवी महामारी की चपेट में आकर अब तक 3.2 करोड़ लोग जान गंवा चुके हैं

Bhagirath

कोरोनावायरस से दुनियाभर में 33 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 2.34 लाख से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। कोरोनावायरस के अलावा दुनिया एक और जानलेवा ह्यूमन इम्युनोडेफिसिएंसी वायरस (एचआईवी) से लगातार जूझ रही है। इस वायरस ने पिछले चार दशकों से कहर बरपा रखा है। हम कह सकते हैं कि दुनिया इस वक्त एक साथ दो महामारियों का सामना कर रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार,एचआईवी महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक 7.5 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। इस महामारी से दुनियाभर में हर साल लाखों मौत हो रही हैं। साल 2018 में ही 7.70 लाख लोग मारे गए, जबकि 17 लाख लोग संक्रमित हो गए। दुनियाभर में कुल 3.79 करोड़ लोग एचआईवी अथवा एड्स से पीड़ित हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनियाभर में 15-49 आयुवर्ग की 0.8 प्रतिशत आबादी इस महामारी की शिकार है।

यूएनएड्स के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में एड्स की चपेट में आकर जान गंवाने वालों में 6.70 लाख लोग वयस्क थे जबकि एक लाख मौतें 15 साल से कम उम्र के बच्चों की हुईं। एड्स से जान गंवाने वाले 61 प्रतिशत लोग अफ्रीका देशों से हैं।

भारत में हालात

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) की वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक, भारत की 0.22 प्रतिशत आबादी एचआईवी से संक्रमित है। संक्रमितों में 0.25 प्रतिशत पुरुष और 0.19 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। 2001-03 के दौरान संक्रमण चरम पर था। इस दौरान 0.38 प्रतिशत आबादी संक्रमित थी। 2007 में संक्रमण घटकर 0.34 प्रतिशत, 2012 में 0.28 प्रतिशत और 2015 में 0.26 प्रतिशत रह गया। संक्रमण में कमी के बावजूद भारत में21.4 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। भारत में साल 2017 में 88,000 एचआईवी संक्रमितों के नए मामले प्रकाश में आए और इस साल 69,000 लोगों की एड्स से मौत हो गई। संक्रमितों के मामले में भारत दक्षिण अफ्रीका (77 लाख) और मोजाम्बीक (22 लाख) के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर है। हालांकि 2010 से 2017 के बीच 27 प्रतिशत संक्रमण कम हुआ है और एड्स से होने वाली मौतें भी 56 प्रतिशत कम हुई हैं। इसके बावजूद संक्रमण अब भी चिंताजनक बना हुआ है।

मिजोरम में सबसे अधिक संक्रमण दर

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम एचआईवी से सबसे अधिक प्रभावित है। यहां की 2.04 प्रतिशत आबादी एचआईवी संक्रमित है। इसके बाद मणिपुर की 1.43 प्रतिशत आबादी, नागालैंड की 1.15 प्रतिशत आबादी, तेलंगाना की 0.70 प्रतिशत आबादी और आंध्र प्रदेश की 0.63 प्रतिशत आबादी एचआईवी संक्रमित है। इन राज्यों के अलावा कर्नाटक (0.47 प्रतिशत), गोवा (0.42 प्रतिशत), महाराष्ट्र (0.33 प्रतिशत) और दिल्ली (0.30 प्रतिशत) में एचआईवी का संक्रमण राष्ट्रीय औसत (0.22 प्रतिशत) से अधिक है।

नाको के अनुसार, महाराष्ट्र में सबसे अधिक 3.30 लाख, आंध्र प्रदेश में 2.70 लाख, कर्नाटक में 2.47 लाख, तेलंगाना में 2.04 लाख, पश्चिम बंगाल में 1.44 लाख, तमिलनाडु में 1.42 लाख, उत्तर प्रदेश में 1.34 लाख और बिहार में 1.15 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं। इन आठ राज्यों में देश का एक तिहाई यानी 75 प्रतिशत संक्रमण है। अन्य राज्यों में संक्रमण एक लाख से कम है।

लक्ष्य से दूर

सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एचआईवी को 2030 तक पूरी तरह खत्म करना है। इसके अलावा, 2020 तक नए एचआईवी संक्रमितों की संख्या पांच लाख से नीचे लाना है, यानी 2010 के मुकाबले नए संक्रमण में 75 प्रतिशत की कमी।2020 तक एड्स से होने वाली मौतें भी पांच लाख से कम करने का लक्ष्य है। लेकिन2018 में ही एड्स से 7.70 लाख लोगों की मौत हो गई। साथ ही इस साल 17 लाख नए संक्रमण बताते हैं कि लक्ष्य दूर की कौड़ी है।

यूएनएड्स के कार्यकारी निदेशक गुनीला कार्लसन का कहना है कि इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है लेकिन इस प्रगति को बरकरार रखना एक चुनौती है। वह कहते हैं कि अगर दुनिया को 2030 तक एड्स को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ना है तो पर्याप्य वित्त की आवश्यकता है लेकिन 2000 के बाद से एड्स के लिए उपलब्ध संसाधनों में दुनियाभर में कमी आई है। वह कहते हैं कि 2000 से 2018 के बीच 15-24 आयु वर्ग की महिलाओं में एचआईवी संक्रमण 25 प्रतिशत कम हुआ है लेकिन अब भी यह अस्वीकार्य स्तर पर है। अब भी हर सप्ताह 6,000 महिलाएं एचआईवी से संक्रमित हो रही हैं। उनका कहना है कि एचआईवी की रोकथाम और उपचार संभव है। इसके बावजूद महिलाओं को यह नहीं पता कि वे खुद को संक्रमण मुक्त कैसे रखें, पुरुष भी स्वास्थ्य सेवा से अनभिज्ञ हैं। ट्रांसजेंडरों को भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इस कारण हर साल हजारों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।

कार्लसन कहते हैं कि हमारे पास एड्स को खत्म करने के टूल्स और जानकारियां हैं। हम वायरस को बदल नहीं सकते लेकिन हम असमानता, शक्ति का असंतुलन, गरीबी, भेदभाव और सामाजिक कुरीतियों को जरूर बदल सकते हैं।