क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए शोध के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशिया में जंगली सूअरों और मकाक बंदरों की बढ़ती आबादी से जंगलों में पशुओं और लोगों में बीमारी फैलने का भारी खतरा मंडरा रहा है।
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ द एनवायरनमेंट के मुख्य लेखक डॉ. मैथ्यू लुस्किन है। अध्ययन टीम ने पूरे क्षेत्र से प्रजातियों की आबादी के आंकड़ों को एकत्रित किया और उनका विश्लेषण किया, जिनमें से कुछ को कैमरों के माध्यम से एकत्र किया गया था।
अध्ययन में कहा गया है कि मकाक और जंगली सूअर दक्षिण पूर्व एशिया के अशांत जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं। इसके लिए लोगों को सबसे अधिक दोषी बताया गया है, क्योंकि उन्होंने जंगलों को काटकर उसकी जगह ताड़ के खेत बना दिए है जो इन जानवरों के लिए भोजन और आदर्श प्रजनन की स्थिति प्रदान करते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि जंगलों को काटकर, तेल के लिए ताड़ के पेड़ों को लगाने से पास के जंगलों में जंगली सूअर और मकाक की संख्या पहले की तुलना में 400 फीसदी अधिक बढ़ गई है। ये जानवर खेतों का पूरा फायदा उठाते हैं, फसलों पर हमला करते हैं और कैलोरी-युक्त खाद्य पदार्थों को चट कर जाते हैं।
कैमरों द्वारा की गई निगरानी से इनकी भारी संख्याओं का नजदीक से पता चला। टीम को थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया में मकाक की विशाल सेना का सामना करना पड़ा, वे हर जगह जंगल के किनारों पर थे, हमारा पीछा कर रहे थे और हमारे उपकरणों पर कब्जा कर लेते थे।
रिपोर्ट बताती है कि सुअर और मकाक की बढ़ती आबादी से लोगों के स्वास्थ्य को भारी खतरा हो सकता है। कोविड-19 महामारी की वन्यजीव उत्पत्ति से पता चलता है कि लोगों के द्वारा बदली गई पारिस्थितिकी तंत्र में स्तनधारियों में अक्सर भारी रोग फैलाने वाले जीव होते हैं और गंभीर जूनोटिक रोग का खतरा पैदा करते हैं।
सूअर और मकाक दोनों को उन बीमारियों को ले जाने वालों के रूप में पहचाना जाता है जो इसे लोगों में फैला सकते हैं और वे वैश्विक जूनोटिक रोग हॉटस्पॉट माने जाने वाले क्षेत्र में सबसे आम प्रजाति हैं।
रिपोर्ट बताती है कि वन्यजीव प्रजातियों की भारी आबादी जो रोगों के भंडार हैं, अक्सर लोगों द्वारा बदले गए उष्णकटिबंधीय जंगलों में होते हैं। और दक्षिण पूर्व एशिया में घनी आबादी वाले ग्रामीण इलाके भविष्य में लोगों के महामारी का स्रोत हो सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ती आबादी का तत्काल प्रभाव प्रभावित क्षेत्रों में देशी वनस्पतियों पर देखा जा सकता है। सूअर और मकाक दोनों ही इन प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों में बुरा प्रभाव डालते हैं। वे देशी पौधों के बीज और अंकुरों को खत्म कर देते हैं और पक्षियों और सरीसृपों के अंडे खा जाते हैं।
केवल मलेशियाई सूअरों ने वहां वर्षावन में फिर से उगने वाले पेड़ों को 62 फीसदी तक कम करते हुए पाया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि जंगली सूअरों और मकाक की बढ़ती आबादी को कम करने के लिए कार्रवाई करने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन प्रजातियों की आबादी को प्रबंधित करने के प्रयास अतीत में उनकी तीव्र प्रजनन क्षमता और सार्वजनिक आक्रोश के कारण विफल रहे हैं।