कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली में या कोरोना से प्रभावित देश के किसी भी दूसरे हिस्से में जब हम असहाय होकर बीमारी से लड़ रहे थे, ठीक उसी समय हम सरकार की नामौजूदगी को भी महसूस कर रहे थे।
हालांकि ठीक उसी दौर में हमने एक तंत्र की मौजूदगी भी देखी, जिसे हम ‘समुदाय’ के नाम से जानते हैं। चाहे किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत हो, किसी को अस्पताल में बेड चाहिए या फिर किसी को दवाईयां, समुदाय के रूप में एक संस्था इस लड़ाई में आगे थी।
समुदाय की मदद का सिलसिला जब आगे बढ़ा तो उसका आभार जताने के लिए सबने उसे ‘धन्यवाद’ कहना शुरू किया। सोशल प्लेटफार्म हो, जल्दबाजी में रिसीव की जा रही फोन कॉल्स हों, अस्पतालों के अंदर और शवदाह गृहों में ‘धन्यवाद’ लोगों की एकजुटता का पर्याय बन गया।
लोगों के पास अपने हमदर्दों और उनकी मदद करने वालों के प्रति अपनी भावना को स्पष्ट तौर पर दर्शाने के लिए जैसे इसके अलावा और कोई शब्द ही नहीं था। हर एक ‘धन्यवाद’ उस मुश्किल समय में एक-दूसरे के साथ जुड़ने में जैसे एक राजनीतिक वोट के बराबर था, जिसका इस्तेमाल हमें हमारे ही समर्थन में करना हो।
अब दूसरी लहर फीकी पड़ चुकी है। बीमारी से उबरकर हम हाल ही में बीते उन दिनों को गुस्से से याद कर रहे हैं, जब हम असहाय थे। हम उस शब्द को भगवान को अर्पित कर उसे धन्यवाद देते हैं कि हम उस दौर से निकलकर आगे बढ़ चुके हैं।
दूसरी ओर पिछले कुछ सप्ताहों को देखें तो आभार जताने वाला धन्यवाद, काले और सफेद अक्षरों में, विज्ञापनों पटों पर, गानों में और सोशल मैसेजों में वापस लौट आया है। बस, इस बार उसमें मोदीजी और जुड़ गया है - यानी ‘धन्यवाद मोदीजी।’
यह नया नारा इतना व्यापक हो चला है कि इसने कुछ सप्ताह पहले समुदाय के प्रति आभार जताने वाले हमारे धन्यवाद की जगह ले ली है। मोदीजी का मतलब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और उन्हें ‘धन्यवाद’ देश के
लोगों के लिए वैक्सीन फ्री करने के लिए कहा जा रहा है।
पीएम मोदी के प्रति फ्री वैक्सीन के लिए आभार जताने वाला यह धन्यवाद बहुत तेज आवाज वाला, जबरदस्त और व्यापक है। अपने ऑफिस पहुंचने के रास्ते में 45 मिनट के समय में, मैंने रेडियो चैनल पर आने वाले जिंगल में एक बच्चे को पांच बार ‘धन्यवाद मोदीजी’ कहते सुना।
इतनी देर के रास्ते में मैंने इसी संदेश वाले पांच विज्ञापन-पट देखे। एक पेट्रोल पंप पर लगे विज्ञापन-पट पर यही संदेश चस्पा था और उसके आसपास कुछ स्थानीय नेताओं के चेहरे भी थे जो मोदीजी को धन्यवाद देते नजर आ रहे थे। सारी सरकारी वेबसाइटों पर भी यही संदेश नजर आता है।
पर, सवाल यह है कि मोदीजी को धन्यवाद दे कौन रहा है ? क्या भारत की सरकार, जिसके मुखिया वह खुद हैं। मोदी जी को धन्यवाद देने वाले सारे संदेश भारत की सरकार द्वारा जारी किए गए है।
यह पुराने काल की उस कहानी की याद दिलाता है, जिसमें एक राजा अथवा शासक हर चीज के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था। यह वह दौर था, जब लोग किसी राजा के अधीन होते हैं और वह राजा खुद को ही आज्ञा देने वाला और खुद को ही उसे सुनने वाला मानता था।
लेकिन आज हम एक लोकतंत्र में रहते हैं, जहां का शासनाध्यक्ष एक चुना हुआ जन-प्रतिनिधि होता है, जो हमारे टैक्स के पैसों से सुविधाएं पाता है। अगर भारत सरकार लोगों की भलाई वाले किसी ऐसे काम के लिए अपने मुखिया को धन्यवाद दे रही है, जो लोगों का अधिकार है, तो इससे ऐसा लगता है कि सरकार और प्रधानमंत्री दो अलग-अलग सत्ताएं अथवा संस्थाएं हैं।
सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री के प्रति आभार जताना, प्रधानमंत्री को एक सर्वोच्च ताकत बनाता है जो लोगों को उनके अधिकार देने के लिए नहीं, बल्कि उनके कल्याण के लिए काम करता है।
इससे शासन से जुड़ा एक बुनियादी सवाल भी खड़ा हेता है। एक दशक से ज्यादा समय पहले भारत ने विधायिका द्वारा कराए जाने वाले विकास को लोगों के ‘अधिकार ’ के रूप में देखना शुरू किया था। इसी का नतीजा था कि देश में शिक्षा का अधिकार, रोजगार का अधिकार, सूचना का अधिकार और
खाद्य सुरक्षा का अधिकार जैसे कानून बने।
इसके पीछे छिपा संदेश आमतौर पर यही था कि सरकार लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी कर पाने में सक्षम नहीं है। इसीलिए इन जरूरतों के प्रति सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए इन्हें कानून के दायरे में लाकर न्यायोचित ठहराया गया। इसके बाद ही विकास किसी सरकार द्वारा किया गया ‘कल्याण’ नहीं बल्कि लोगों का अधिकार बन सका, जिसे करना एक चुनी हुई सरकार के लिए जरूरी था।
इस लिहाज से सरकार द्वारा फ्री वैक्सीन के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिए जाने का अभियान लोगों के और एक चुनी हुई सरकार के संबंधों के बीच एक चिंताजनक संकेत है, जिसे ठीक किया जाना चाहिए।