डॉक्टरों को काम के दबाव के साथ-साथ थकान और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से भी जूझना पड़ता है; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

आम लोगों की तुलना में 76 फीसदी अधिक है महिला डॉक्टरों में आत्महत्या का जोखिम: रिसर्च

अध्ययन के मुताबिक आम लोगों की तुलना में महिला डॉक्टरों के आत्महत्या करने का जोखिम 76 फीसदी अधिक है

Lalit Maurya

रिसर्च से पता चला है कि समय के साथ डॉक्टरों के आत्महत्या की दर में समय के साथ गिरावट आई है, लेकिन आम लोगों की तुलना में महिला डॉक्टरों के आत्महत्या की यह दर अभी भी चिंताजनक रूप से बेहद अधिक है।

यह जानकारी 21 अगस्त 2024 को ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन में 20 देशों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। शोधकर्ताओं ने महिला डॉक्टरों के आत्महत्या को लेकर जो खुलासे किए हैं उनसे पता चला है कि आम लोगों की तुलना में महिला डॉक्टरों के आत्महत्या का जोखिम 76 फीसदी अधिक है।

कहीं न कहीं यह आंकड़े इस तथ्य को उजागर करते हैं कि दुनिया भर में महिला डॉक्टर बेहद दबाव में काम करने को मजबूर हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि देश और क्षेत्र के आधार पर चिकित्सकों के आत्महत्या का जोखिम कहीं कम तो कहीं ज्यादा है।

गौरतलब है कि इस बारे में जारी पिछले अनुमानों से पता चला है कि अमेरिका में औसतन हर दिन एक डॉक्टर आत्महत्या करता है। वहीं यूनाइटेड किंगडम में हर दस दिन में एक डॉक्टर अपनी जान दे रहा है।

अपने अध्ययन में विएना विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने 1960 से 31 मार्च 2024 के बीच 20 देशों में प्रकाशित 39 अध्ययनों का विश्लेषण किया है। अध्ययन में मुख्य रूप से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देश शामिल थे। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने डॉक्टरों के बीच आत्महत्या की दर की तुलना आम लोगों से की है। इस दौरान 3,303 पुरुष और 587 महिला डॉक्टरों के आत्महत्या के मामले प्रकाश में आए थे।

इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि आम लोगों की तुलना में पुरुष डॉक्टरों के आत्महत्या के जोखिम में कोई खास वृद्धि नहीं हुई। हालांकि, महिला डॉक्टरों के लिए आत्महत्या का जोखिम काफी अधिक था, जो आम लोगों की तुलना में 76 फीसदी अधिक दर्ज किया गया।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान जब पिछले शोधों की तुलना दस सबसे हालिया अध्ययनों से की तो उनके विश्लेषण से पता चला है कि पुरुष और महिला डॉक्टरों के आत्महत्या की दर में गिरावट आई है। हालांकि महिला डॉक्टरों में आत्महत्या की दर काफी अधिक है।

हालांकि इस गिरावट के सटीक कारणों का तो पता नहीं चल पाया है, लेकिन शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरूकता और डॉक्टरों के लिए कार्यक्षेत्र पर बेहतर वातावरण ने इसमें मदद की है।

डॉक्टरों के लिए काम के दौरान जरूरी है स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण

शोधकर्ताओं के मुताबिक डॉक्टरों के बीच आत्महत्या का जोखिम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है। ऐसा क्यों है इस पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन में कहा गया है कि यह इस बात पर निर्भर किया जाता है कि डॉक्टरों को किस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है, साथ ही काम के दौरान वातावरण कैसा है। इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या को लेकर डॉक्टरों का नजरिया अलग-अलग है, जो इस अंतर की वजह हो सकता है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पुरुष डॉक्टरों की आत्महत्या दर उनके बराबर सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वाले अन्य पेशेवरों की तुलना में 81 फीसदी अधिक थी। महिला डॉक्टरों के मामले में भी ऐसे ही परिणाम समान आए हैं।

साथ ही अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि जिन शोधों का विश्लेषण किया गया है, उनमें से ज्यादातर यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से जुड़े थे। इन क्षेत्रों से बाहर इस तरह के बहुत सीमित अध्ययन हुए हैं। वहीं कई देशों में आत्महत्याओं को कलंक के रूप में देखा जाता है, ऐसे में उनपर बहुत ज्यादा रिपोर्टिंग नहीं होती है। नतीजन अन्य क्षेत्रों को लेकर सटीक तस्वीर सामने नहीं आती।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस बारे में और अधिक अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनके मुताबिक कोरोना ने दुनिया भर में डॉक्टरों के बीच आत्महत्या की दरों को कैसे प्रभावित किया है, इसे भी समझना बेहद जरूरी है।

इस बारे में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित संपादकीय लेख में डॉक्टर क्लेयर गेराडा और साथी शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि डॉक्टरों को थकान और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे अतिरिक्त जोखिमों का भी सामना करना पड़ता है।

डॉक्टरों में अक्सर ऐसे गुण होते हैं जैसे कि वे परिपूर्ण होना चाहते हैं। साथ ही वो बहुत प्रतिस्पर्धी होते हैं। ऐसे में तनाव पूर्ण वातावरण में, यह ऐसे महसूस करा सकता है जैसे वो दोषी हैं। इससे उनके आत्म-सम्मान पर भी असर पड़ता है, और उन्हें लगता है कि वे असफल हो रहे हैं। इतना ही नहीं डॉक्टरों की पहुंच में बेहद हानिकारक दवाइयां भी होती हैं।

वहीं कुछ अध्ययनों में भी पाया गया है कि जो व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, उनके आत्महत्या के बारे में सोचने या उसका प्रयास करने की आशंका अधिक होती है। खासकर यदि वो अपने पेशे में शिकायतों या अन्य समस्याओं से जूझ रहे होते हैं।

ऐसे में डॉक्टरों, खासकर महिला चिकित्सकों में तनाव और आत्महत्या के जोखिम को कम करने के लिए, हमें लंबे समय से चली आ रही समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि चीजे बेहतर हो सकें। इसमें काम की परिस्थितियों और नियमों में सुधार, डॉक्टरों को काम और जीवन के बीच संतुलन बनाने में मदद करना और सभी कर्मचारियों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों को पूरा करना शामिल है।

साथ ही शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि जो डॉक्टर सबका इलाज करते हैं उनको जल्द से जल्द सहायता और उपचार मिलना चाहिए ताकि उन्हें अपनी पीड़ा चुपचाप न सहनी पड़े।