दुनिया भर में चीनी के कृत्रिम विकल्पों का नया बाजार खड़ा हो रहा है। इन्हें हम आर्टिफिशियल या केमिकल स्वीटनर कहते हैं। यह उनके बीच खासा लोकप्रिय है जो मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। या फिर मोटापा घटाने जैसी चाह के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, इसका स्वास्थ्य पर किस तरह का असर पड़ता है। इस बिंदु पर गहरी पड़ताल करती रोहिणी कृष्णमूर्ति की रिपोर्ट... पहली कड़ी आप पढ़ने के लिए क्लिक करें । आज पढ़ें अगली कड़ी -
अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी की सुसान शिफमैन और उनकी टीम ने चूहों पर शोध किया और 2018 में बताया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर सुक्रालोस चूहों की आंतों में टूटकर कम से कम दो वसा-घुलनशील पदार्थ बनाता है। सुक्रालोज को स्प्लेंडा के ब्रांड नाम से पूरी दुनिया में बेचा जाता है और यह अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकने वाला शुगर फ्री विकल्प है। इस शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं क्योंकि अमेरिकी खाद्य विभाग (यूएसएफडीए) ने सुक्रालोस को इस आधार पर मंजूरी दी थी कि ये बिना बदले ही शरीर से बाहर निकल जाता है। शिफमैन की खोज का मतलब है कि सुक्रालोस शरीर में ऐसे पदार्थ बना रहा है जिनका स्वास्थ्य पर क्या असर होता है, यह अभी पता नहीं है। इनमें से एक पदार्थ है सुक्रालोस-6-एसीटेट (एस 6 ए)। शिफमैन कहती हैं, “इस पदार्थ का कभी भी मंजूरी देने से पहले “जेनोटॉक्सिसिटी” (डीएनए को नुकसान पहुंचाने की क्षमता) का परीक्षण नहीं किया गया था।”
शिफमैन का शोध काफी अहम है। अब तक माना जाता था कि डाइट सॉफ्ट ड्रिंक्स और स्वीटनर शुगर और कैलोरी कम करने में मदद करते हैं, लेकिन यह नया शोध इस पर सवाल उठाता है। इससे चिंता है कि यह स्वीटनर शरीर में हानिकारक पदार्थ बना सकते हैं। सुसान शिफमैन और उनकी टीम के हालिया शोध से डायट सॉफ्ट ड्रिंक्स और स्वीटनर पर कुछ गंभीर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने पाया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर सुक्रालोस शरीर में टूटकर एक पदार्थ बनाता है, जिसे सुक्रालोस-6-एसीटेट (एस 6 ए) कहते हैं। इस पदार्थ के बारे में चिंताजनक बातें ये हैं कि यह मानव शरीर की कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचाता है। डीएनए क्षति कैंसर का कारण बन सकती है। यह (एस 6 ए) आंतों की अंदरूनी परत को कमजोर कर देता है, जिससे आंत छेददार होकर लीक करने लगती है। इससे हानिकारक पदार्थ शरीर में घुस सकते हैं और कई तरह की बीमारियां जैसे सीलिएक रोग, क्रोहन रोग और इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम हो सकते हैं।
शिफमैन का अध्ययन डब्लूएचओ की जुलाई 2023 की रिपोर्ट से 2 महीने पहले प्रकाशित हुआ था। जुलाई की रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने एस्पार्टेम और कैंसर के बीच संबंध की चेतावनी दी थी। हाल के वर्षों में कई अन्य शोध भी हुए हैं जो बताते हैं कि डायट सॉफ्ट ड्रिंक्स और स्वीटनर शरीर के लिए उतने भी फायदेमंद नहीं हैं जितना सोचा जाता था। कुछ मामलों में, यह आपके वजन घटाने में मदद नहीं करते बल्कि उल्टा हानिकारक भी हो सकते हैं।
डायट सॉफ्ट ड्रिंक्स और स्वीटनर को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि वजन कम करने या बीमारियों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल न करें। डब्ल्यूएचओ ने 15 मई, 2023 को नॉन-शुगर स्वीटनर (एनएसएस) पर एक गाइडलाइन जारी की है, जो इनके इस्तेमाल पर सवाल उठाती है। यह गाइडलाइन वयस्कों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अलग-अलग आबादी समूहों पर किए गए 283 शोधों के आधार पर बनाई गई है। इसमें यह महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं। वजन कम करने के लिए इस्तेमाल न करें, बीमारियों से बचाव के लिए इस्तेमाल न करें। ये गाइडलाइन कहती है कि एनएसएस नॉन-कम्यूनिकेबल बीमारियों (जैसे टाइप 2 डायबिटीज़, हृदय रोग) से बचाने में भी मदद नहीं करती हैं। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल के अपने नुकसान हैं। गाइडलाइन बताती है कि हो सकता है लंबे समय तक एनएसएस इस्तेमाल करने से नुकसान भी हो, जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग और मृत्यु का खतरा बढ़ना।
क्या एस्पार्टेम ब्लड शुगर कंट्रोल करता है?
डायबिटीज के मरीजों के लिए चीनी कम करना जरूरी है, लेकिन क्या चीनी की जगह इस्तेमाल किए जाने वाले स्वीटनर, जैसे एस्पार्टेम, सही विकल्प हैं? क्या एस्पार्टेम ब्लड शुगर कंट्रोल करता है? आर्टिफिशियल स्वीटनर ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में कितना मददगार है, इस पर अभी बहस चल रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायबरेली में फिजियोलॉजी विभाग के डॉक्टर अरबिंद कुमार चौधरी ने 2017 में “करेंट डायबिटीज रिव्यूज” के एक पेपर में ब्लड शुगर लेवल और एस्पार्टेम को लेकर लिखा है। शोध बताते हैं कि शरीर में टूटकर ये फिनाइलएलनिन नामक पदार्थ बनाता है, जो शरीर की शुगर लेवल को नियंत्रित करने की क्षमता कम कर सकता है।
शरीर में मौजूद एंजाइम एस्पार्टेम को जल्दी से तोड़ देते हैं, जिससे फिनाइलएलनिन, एस्पार्टेट और मेथनॉल बनते हैं। फिनाइलएलनिन एक एमिनो एसिड है जो शरीर के ब्लड शुगर को कंट्रोल करने की क्षमता को कमजोर कर सकता है। एक शोध में पाया गया कि चूहों को 90 दिनों तक प्रति किलो वजन के हिसाब से 40 मिलीग्राम एस्पार्टेम देने पर उनके शरीर में कोर्टिसोल नाम का हार्मोन बढ़ गया। कोर्टिसोल ब्लड शुगर को कंट्रोल करने वाले इंसुलिन हार्मोन को रोकता है। ज्यादा मात्रा में कृत्रिम मिठास लेने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा 12 अप्रैल 2022 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर यानी एनएनएस का सेवन खासकर पेय पदार्थों में करने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा 23 प्रतिशत बढ़ जाता है। वहीं टेबलटॉप स्वीटनर लेने से यह खतरा 34 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
दिल्ली एम्स में एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबोलिज्म डिपार्टमेंट के प्रमुख प्रोफेसर निखिल टंडन ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वह अपने मरीजों को कृत्रिम मिठास लेने की सलाह नहीं देते। इसी तरह, ज्योतिदेव रिसर्च सेंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर ज्योतिदेव भी मानते हैं कि कृत्रिम मिठास डायबिटीज से बचाव नहीं करती। उनका कहना है कि अगर परिवार में डायबिटीज का इतिहास है या वे लोग जो प्री-डायबेटिक हैं (ब्लड शुगर सामान्य से थोड़ा ऊंचा है लेकिन डायबिटीज की सीमा में नहीं), तो ऐसे लोगों में नियमित रूप से कृत्रिम मिठास लेने से डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
कृत्रिम मिठास और मोटापे का खतरा
कुछ रिसर्च बताती हैं कि एस्पार्टेम और सैकरीन जैसी कृत्रिम मिठास शरीर में चर्बी बढ़ा सकती हैं। जानवरों पर किए गए अध्ययनों में यह संकेत मिले थे, लेकिन क्या यही बात इंसानों पर भी लागू होती है? अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने 1985 में एक अध्ययन शुरू किया। उन्होंने 25 साल तक 3,088 लोगों पर रिसर्च की। स्टडी के शुरुआत, फिर सातवें और 20वें वर्ष में इन लोगों से उनके खाने-पीने की आदतों के बारे में प्रश्नावली से माध्यम से पूछा गया, जिसमें कृत्रिम मिठास वाले पेय पदार्थ भी शामिल थे। 25 साल बाद रिसर्चरों ने इन लोगों के शरीर में चर्बी की मात्रा को मापा, खासकर पेट के आसपास की चर्बी और अंगों के बीच जमा चर्बी को।
रिसर्च में पाया गया कि जो लोग एस्पार्टेम, सैकरीन या डाइट पेय पदार्थ लेते थे, उनका बॉडी मास इंडेक्स, वजन और कमर का घेरा 25 साल में ज्यादा बढ़ा। लेकिन सुक्रालोज लेने वालों में ऐसा कोई असर नहीं देखा गया। यह रिसर्च जुलाई 2023 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओबेसिटी पत्रिका में प्रकाशित हुई। एक परिकल्पना है कि कृत्रिम मिठास (आर्टिफिशियल स्वीटनर) भूख बढ़ा सकती हैं या शरीर में एंजाइम की गतिविधि को बदल सकती हैं। इससे शरीर में अच्छे-बुरे बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ सकता है, जिसका असर चर्बी जमा होने पर भी पड़ सकता है।
डॉक्टर ज्योतिदेव केशवदेव बताते हैं कि दिमाग असली चीनी और कृत्रिम मिठास में फर्क नहीं समझ पाता। वह कहते हैं, “इसलिए, एक संभावना है कि दिमाग इसे असली चीनी समझकर शरीर को हार्मोन बनाने का संकेत दे दे, जिससे मोटापा बढ़ सकता है।” अमेरिका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में एपिडेमियोलॉली एंड कम्यूनिटी हेल्थ के प्रोफेसर डॉक्टर लिन स्टीफन का कहना है कि कुछ लोग सोचते हैं कि कृत्रिम मिठास लेने से कम कैलोरी लेंगे, इसलिए बाद में मिठाई खा लेते हैं, जिससे फायदे से ज्यादा नुकसान होता है। 2022 में न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक, डायबिटीज और मोटापे के इलाज में कृत्रिम मिठास के इस्तेमाल पर फिर से विचार करना चाहिए। मरीजों को चीनी की जगह कृत्रिम मिठास देने से पहले न सिर्फ खाने-पीने का बल्कि ब्लड शुगर, वजन और पेट के बैक्टीरिया पर भी लंबे समय तक नजर रखनी चाहिए।
कृत्रिम मिठास और कैंसर का खतरा
मोटापे का संबंध कई तरह के कैंसर से है। डॉक्टर ज्योतिदेव केशवदेव बताते हैं, “मोटापा एक रिस्क फैक्टर है और करीब 100 कैंसर इससे जुड़े हैं।”
2022 में, फ्रांसीसी शोधकर्ताओं ने कृत्रिम मिठास और कैंसर के खतरे के बीच संबंध की जांच करते हुए एक अध्ययन प्रकाशित किया। उन्होंने 2009 में 1,02,865 फ्रांसीसी वयस्कों को शामिल किया, जिनमें से 64,892 मिठास का उपयोग नहीं करते थे, 18,986 कम मात्रा में उपयोग करते थे और 18,987 ज्यादा मात्रा में उपयोग करते थे। प्रतिभागियों को 6 महीने में एक बार स्वास्थ्य प्रश्नावली पर सभी दवाओं, उपचारों और प्रमुख स्वास्थ्य घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था।
अध्ययन में विभिन्न मिठासों में एस्पार्टेम, एसिसल्फेम-पोटैशियम और सूक्रालोज का कुल कृत्रिम मिठास सेवन में क्रमशः 58, 29 और 10 प्रतिशत योगदान था। सभी प्रतिभागियों का एस्पार्टेम और एसिसल्फेम-पोटैशियम का सेवन प्रति किलो शरीर के वजन पर प्रति दिन 40 मिलीग्राम और 9 मिलीग्राम प्रति किलो शरीर के वजन प्रतिदिन की स्वीकार्य दैनिक खपत (एडीआई) सीमा से नीचे था। केवल पांच प्रतिभागियों ने सूक्रालोज के लिए 15 मिलीग्राम प्रति किलो शरीर के वजन प्रतिदिन की एडीआई सीमा को पार किया।
बिना सेवन करने वालों की तुलना में, कुल कृत्रिम मिठास का ज्यादा सेवन करने वालों को सामान्य रूप से कैंसर होने का 1.13 गुना अधिक खतरा था। विशेष रूप से, एस्पार्टेम और एसिसल्फेम-पोटेशियम से कैंसर का खतरा क्रमशः 1.15 गुना और 1.13 गुना बढ़ गया। सूक्रालोज का सेवन कैंसर के खतरे से जुड़ा नहीं था, लेकिन शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि कैंसर से जुड़ाव न होने को सावधानी से देखा जाना चाहिए क्योंकि अन्य कृत्रिम मिठास की तुलना में सूक्रालोज का सेवन बहुत कम था।
कृत्रिम मिठास और दिल की बीमारियां
कुछ शोधकर्ता यह भी जांच कर रहे हैं कि क्या कृत्रिम मिठास दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ा सकती हैं। फ्रांस के वे शोधकर्ता जो पहले कैंसर के खतरे के लिए कृत्रिम मिठास का अध्ययन कर चुके थे, उन्होंने उन्हीं लोगों पर शोध कर दिल की बीमारियों से जुड़े जोखिमों को भी देखा। उन्होंने पाया कि जो लोग ज्यादा कृत्रिम मिठास लेते थे, उनमें दिल की बीमारी होने का खतरा 1.09 गुना बढ़ गया। वहीं एस्पार्टेम, एसिसल्फेम-पोटैशियम और सूक्रालोज लेने वालों में दिल की बीमारी का खतरा क्रमशः 1.03 गुना, 1.18 गुना और 1.11 गुना बढ़ गया। यह शोध 2022 में बीएमजे जर्नल में प्रकाशित हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 में तीन अलग-अलग शोधों के आधार पर कहा था कि ज्यादा मात्रा में कृत्रिम मिठास वाले पेय पीने से दिल की बीमारियों का खतरा 32 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
बच्चों के लिए कृत्रिम मिठास का खतरा
बच्चों को भी कृत्रिम मिठास देने की सलाह नहीं दी जाती है। डॉक्टर ज्योतिदेव केसवदेव कहते हैं, “आजकल बच्चों में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज ज्यादा हो रहे हैं। बहुत से माता-पिता मुझसे पूछते हैं कि क्या बच्चों को कृत्रिम मिठास दी जा सकती है और मेरा जवाब हमेशा न में होता है।”
वह आगे बताते हैं, “चीनी के साथ, हम खून में शुगर की मात्रा को नाप सकते हैं, लेकिन कृत्रिम मिठास के साथ, शुगर लेवल तो ठीक दिख सकता है, लेकिन वजन बढ़ सकता है। इसे मापने का कोई तरीका नहीं है।”
बच्चों पर कृत्रिम मिठास के असर का पता लगाने के लिए बहुत कम अध्ययन हुए हैं। 2022 में डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित “स्वीटनर्स के इस्तेमाल के स्वास्थ्य पर प्रभाव” में भी बच्चों पर इसका असर अनिश्चित बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, ज्यादा कृत्रिम मिठास लेने वाली गर्भवती महिलाओं में समय से पहले बच्चा होने का खतरा बढ़ जाता है। कुछ व्यक्तियों के लिए कृत्रिम मिठास खतरनाक भी हो सकती है, जैसे फिनाइलकीटोनूरिया से ग्रस्त लोगों के लिए। यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें शरीर एक खास रसायन (फिनाइलएलनिन) को तोड़ नहीं पाता। एस्पार्टेम नाम की कृत्रिम मिठास टूटने पर फिनाइलएलनिन ही बनता है। ऐसे में फिनाइलकीटोनूरिया रोगियों के लिए एस्पार्टेम का सेवन खतरनाक हो सकता है, क्योंकि उनका शरीर इसे ठीक से नहीं तोड़ पाता। इससे दिमाग को नुकसान पहुंच सकता है।
कई डॉक्टर और शोधकर्ता ये चिंता जताते हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर के लगातार इस्तेमाल से सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, लेकिन इस बात के पक्के सबूत जुटाना मुश्किल है। 2016 में इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी में प्रकाशित श्री लक्ष्मी नारायण इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, पुडुचेरी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में बताया गया है कि यह साबित करना बहुत मुश्किल है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर सेहत को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर तब जब ज्यादातर लोग इन्हें 40 साल की उम्र के बाद से इस्तेमाल करना शुरू करते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे में साफ तौर पर कहना मुश्किल है कि इनका नुकसान है या नहीं, लेकिन सावधानी रखना जरूरी है। इसमें शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसानों पर इनके दीर्घकालिक प्रभावों को साबित करना मुश्किल है। दूसरी चिंता यह है कि अत्यधिक प्रचार के कारण लोग ज्यादा मात्रा में कृत्रिम मिठास का इस्तेमाल करते हैं। “इंडियन एकेडमी ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन” की 2020 की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में बिना किसी डॉक्टरी सलाह के लोग इन्हें आसानी से खरीदकर इस्तेमाल कर लेते हैं। लोग विज्ञापनों और दूसरों की बातों को मानकर इन्हें बिना सोचे इस्तेमाल कर लेते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 14 जुलाई की रिपोर्ट के बाद डॉक्टर ज्योतिदेव केशवदेव ने कृत्रिम मिठास पर ज्यादा पाबंदी की वकालत की है। उनका कहना है कि जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी लिखी होती है कि वह सेहत के लिए खतरनाक है, वैसे ही कृत्रिम मिठास वाले उत्पादों पर भी यही होना चाहिए। उनका कहना है कि मिठास भले ही वजन कम नहीं करती, लेकिन लंबे समय में बढ़ा सकती है और इसे कैंसर से भी जोड़ा जा रहा है। डॉक्टर केशवदेव का मानना है कि दुनियाभर की सरकारों को भी इन उत्पादों पर चेतावनी लेबल लगाने के नियम बनाने चाहिए।
उल्टा असरकैसे “शुगर-फ्री” के सेवन से टाइप 2 डायबिटीज होने का जोखिम बढ़ जाता है कई शोधों में ये सवाल उठाया गया है कि क्या चीनी की जगह इस्तेमाल किए जाने वाले स्वीटनर, जैसे एस्पार्टेम या सैकरीन, असल में टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ा सकते हैं। शरीर में शुगर का खेल कुछ इस प्रकार से है। जब हम खाते हैं, तो खाना पचकर ग्लूकोज बनता है, जो खून में मिल जाता है। शरीर को ऊर्जा के लिए इसे ग्लूकोज की जरूरत होती है। ग्लूकोज का लेवल बढ़ने पर पैंक्रियाज नाम का अंग, इंसुलिन नाम का हार्मोन बनाता है। इंसुलिन की मदद से शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज को सोख लेती हैं। अगर हम ज्यादा मीठा खाते हैं, तो पैंक्रियाज को लगातार ज्यादा इंसुलिन बनाना पड़ता है। समय के साथ शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कमजोर हो जाती हैं और उसे ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पातीं। नतीजा यह होता है कि शरीर में ज्यादा ग्लूकोज रह जाता है और इससे टाइप 2 डायबिटीज हो सकती है।कुछ शोध बताते हैं कि शरीर स्वीटनर को असली चीनी से अलग नहीं कर पाता। इसलिए स्वीटनर खाने से भी पैंक्रियाज इंसुलिन बनाता है। लेकिन कोशिकाएं कमजोर होने की वजह से वो इस इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पातीं। इससे शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाता है और आगे चलकर डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। 2020 में जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसीन एंड प्राइमरी केयर में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों पर अध्ययन किया गया था। कुछ को स्वीटनर दिया गया और कुछ को नहीं। जो स्वीटनर लेते थे उनमें इंसुलिन रेजिस्टेंस ज्यादा पाया गया |
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