स्वास्थ्य

संक्रमण के दो लाख से ज्यादा मामलों और 66,400 मासूमों के जीवन को बचा सकता है ‘स्ट्रेप बी’ टीकाकरण

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस यानी 'स्ट्रेप बी' बैक्टीरिया के खिलाफ वैश्विक स्तर पर टीकाकरण अभियान न केवल संक्रमण के लाखों मामलों को टाल सकता है। साथ ही इससे हजारों मासूमों की जान भी बचाई जा सकती है।

यह बच्चों में विकलांगता के मामलों को भी कम कर सकता है। साथ ही इसकी वजह से स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होने वाले लाखों रुपयों की भी बचत होगी। पता चला है कि दुनिया भर में इस मातृ टीकाकरण कार्यक्रम से ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (जीबीएस) संक्रमण के 2,14,300 मामलों और 66,400 नवजातों की मौतों को टाला जा सकता है।

इतना ही नहीं यह टीकाकरण मानसिक विकलांगता (न्यूरोडेवलपमेंटल इम्पेयरमेंट) के 49,900 के साथ स्टिलबर्थ के 56,400 तक मामलों को रोकने में भी मददगार हो सकता है। यह जानकारी जर्नल प्लोस मेडिसिन में 14 मार्च 2023 को प्रकाशित नए अध्ययन में सामने आई है।

हालांकि साथ ही रिसर्च में यह बात भी कही गई है कि इसकी वैक्सीन के बिना उचित मूल्य निर्धारण और समान पहुंच के इस टीकाकरण के सफल होने की सम्भावना नहीं है। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर बैक्टीरिया ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस की रोकथाम के लिए कई टीके विकसित किए जा रहे हैं।

नवजातों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है ग्रुप बी स्ट्रेप

गौरतलब है कि ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस जिसे ग्रुप बी स्ट्रेप या जीबीएस भी कहते हैं। यह हमारे शरीर में रहने वाले विभिन्न जीवाणुओं (बैक्टीरिया) में से एक है। जो महिला और पुरुषों के रेक्टम, डायजेस्टिव सिस्टम और यूरिनरी ट्रेक्ट में मौजूद होता है।

ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस वयस्कों में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा नहीं करता, लेकिन इससे नवजातों में संक्रमण की समस्या हो सकती है। रिसर्च के मुताबिक 25 फीसदी तक गर्भवती महिलाओं में ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस की समस्या हो सकती है, लेकिन उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं होती है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक 'स्ट्रेप बी' गर्भवती महिलाओं के साथ उनके बच्चों को भी संक्रमित कर सकता है। इसकी वजह से नवजात शिशुओं में सेप्सिस और मेनिनजाइटिस हो सकता है। वहीं कभी-कभी इसके चलते मृत्यु या विकलांगता भी हो सकती है। यह संक्रमण स्टिलबर्थ और प्रीटर्म बर्थ यानी समय से पहले होने वाले जन्म के बढ़ते जोखिमों से भी जुड़ा है।

इसी को ध्यान में रखते हुए लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के साइमन प्रॉक्टर और उनके सहयोगियों ने 2020 में 183 देशों में 14 करोड़ गर्भवती महिलाओं में 'स्ट्रेप बी' टीकाकरण और लागत की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक मॉडल विकसित किया था।

जिसकी मदद से गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों में 'स्ट्रेप बी' के चलते स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर पड़ने वाली अनुमानित बोझ, शिशु मृत्यु दर और विकलांगता के कारण खोए हुए गुणवत्ता-समायोजित जीवन वर्षों की गणना की जा सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्ट्रेप बी वैक्सीन के फायदों के बारे में प्रकाशित लिस्ट के आधार पर शोधदल का मानना है कि यह टीका 80 फीसदी महिलाओं में संक्रमण को रोक देगा। विश्लेषण के अनुसार जहां उच्च आय वाले देशों में इस टीके की लागत 50 डॉलर प्रति खुराक पड़ेगी।

वहीं ऊपरी-मध्यम आय में 15 डॉलर और निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में 3.5 डॉलर रह सकती है। वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो इसकी एक खुराक वैक्सीन कार्यक्रम की लागत 170 करोड़ डॉलर के आसपास रह सकती है।

इससे संक्रमण से सुरक्षा के साथ स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले 38.5 करोड़ डॉलर की भी बचत होगी। हालांकि शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि टीके की कीमतों के प्रति क्षेत्रीय संवेदनशीलता नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर सकती है। ऐसे में टीकों का उचित मूल्य इसकी समान पहुंच को सुनिश्चित कर सकता है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर साइमन प्रॉक्टर का कहना है कि, "गंभीर जीबीएस संक्रमण को कम करके, वैश्विक स्तर पर एक एक प्रभावी 'स्ट्रेप बी' टीका हर साल हजारों मासूमों का जीवन बचा सकता है। साथ ही इससे हर साल होने वाली हजारों स्टिलबर्थ के मामलों को रोका जा सकता है।"

उनके अनुसार अधिकांश देशों में ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस के खिलाफ मातृ टीकाकरण अभियान लागत प्रभावी हो सकता है। उन्हें उम्मीद है कि जीबीएस टीकों को बाजार में लाने के लिए आवश्यक निवेश को बढ़ावा मिलेगा।