मथुरा में धूल भरे वातावरण में बिना सुरक्षा उपायों के सीमेंट की बोरियां उतारते मजदूर; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

सिलिका प्रदूषण : एनजीटी ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को भेजा नोटिस

2006 में सुप्रीम कोर्ट में सिलिकोसिस प्रदूषण को लेकर याचिका दाखिल की गई थी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत इस मामले की सुनवाई अब एनजीटी कर रहा है

Vivek Mishra

देश भर में कई उद्योगों और फैक्ट्रियों के जरिए ऐसा धूल प्रदूषण किया जाता है जो वहां काम करने वाले लोगों के लिए धीमा जहर साबित होता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश के बाद देशभर के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समितियों व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को सिलिका प्रदूषण पर नियंत्रण लगाने और संबंधित उद्योगों व फैक्ट्रियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

एनजीटी के चेयरमैन प्रकाश श्रीवास्तव और ज्यूडिशियल मेंबर अरुण कुमार त्यागी व एक्सपर्ट मेंबर ए सेंथिल ने 3 अक्टूबर, 2024 को यह आदेश दिया है।

क्रिस्टलीय सिलिका धूल के महीन कण होते हैं जो अक्सर खनन या उससे संबंधित काम के दौरान निकलते हैं और आस-पास के वातावरण में मौजूद रहते हैं। यह महीन कण सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। लंबे समय तक इसके प्रभाव में रहने पर यह धीरे-धीरे व्यक्ति के फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम कर देते हैं और सांस संबंधी कई रोग पैदा करते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति न सिर्फ अत्यंत बीमार हो जाता है बल्कि अंततः उसकी मृत्यु तक हो जाती है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पीपुल्स राइट्स एंड सोशल रिसर्च सेंटर (प्रसार) की तरफ से वर्ष 2006 में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि आगे इस मामले की सुनवाई एनजीटी करेगा।

प्रसार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई उसमें कहा गया था कि पूरे देश में सिलिका प्रदूषण की निगरानी और रोकथाम के उपायों को लेकर पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे। इसी मामले में सीपीसीबी गुजरात में स्फटिक (क्वार्टज) खनिज की ग्राइंडिग करने वाली यूनिट की जांच की थी और अपनी सिफारिशें दी थीं। सिलिका स्फटिक का प्रमुख घटक है। इस सिफारिश के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पुदुचेरी, झारखंड और दिल्ली राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समिति के चेयरमैन को क्वार्ट्ज यूनिट्स की जांच कर उनकी कमियों को रिपोर्ट करने का आदेश दिया था।

एनजीटी ने कहा है कि संबंधित राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर अमल करें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका में मांग की गई है कि ऐसे उद्योग या फैक्ट्री जो कामगारों के लिए सिलिका प्रदूषण पर रोकथाम करने में विफल हैं और आदेशों का पालन नहीं कर रही हैं उन्हें बंद कर देना चाहिए। हालांकि, यह याचिका तब दाखिल की गई थी जब एनजीटी मौजूद नहीं था। एनजीटी पर्यावरणीय मामलों के तेजी से निपटारे के लिए है। ऐसे में उपयुक्त होगा कि वह इस मामले पर सुनवाई करे। साथ ही सिलिकोसिस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार उद्योगों और फैक्ट्रियों को आदेशों का पालन कराए या फिर अतिरिक्त कदम के लिए भी आदेश दे।

सुप्रीम कोर्ट ने एनएचआरसी को सिलिका से प्रभावित कामगारों के लिए मुआवजे का तेजी से प्रावधान करने का आदेश दिया है और मुआवजे के लिए संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को भी एनएचआरसी के आदेशों का पालन कराने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सिलिकोसिस पीड़ित संघ को भी पार्टी बनाया है। हालांकि मामला अब एनजीटी के पास आ चुका है और वह इस मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी, 2025 को करेगा।