स्वास्थ्य

साइलेंट किलर: जीवन के 14 साल तक कम कर सकता है, 30 की उम्र में टाइप 2 डायबिटीज

रिसर्च से पता चला है कि कम उम्र में टाइप 2 डायबिटीज का होना पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए कहीं ज्यादा घातक है

Lalit Maurya

अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने चेताया है कि 30 की उम्र में होने वाली टाइप 2 मधुमेह, पीड़ित की जीवन प्रत्याशा के 14 साल तक कम कर सकता है। इसके साथ ही 19  उच्च आय वाले देशों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि जिन लोगों को 50 की उम्र में डायबिटीज होता है उनकी जीवन प्रत्याशा में छह साल तक की कमी देखी गई है।

गौरतलब है कि टाइप 2 डायबिटीज किसी साइलेंट किलर से कम नहीं जो धीरे-धीरे पीड़ित को मौत के करीब ले जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर में धीरे-धीरे बढ़ती है, जिससे इसका तुरंत पता नहीं लगता।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं की मदद से किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि मधुमेह एक लम्बे समय तक रहने वाली बीमारी है। यह तब होती जब जब अग्न्याशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाता या जब शरीर अपने इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता। बता दें इंसुलिन एक हार्मोन है जो शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है।

अनियंत्रित मधुमेह के चलते अक्सर हाई ब्लड शुगर होती है, जिसे हाइपरग्लेसेमिया के रूप में जाना जाता है, जो समय के साथ शरीर की विभिन्न प्रणालियों, विशेष रूप से नसों और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। यदि विशेष तौर पर टाइप 2 मधुमेह को देखें तो वो इस बात को प्रभावित करता है कि शरीर ऊर्जा के लिए शुगर यानी ग्लूकोज का उपयोग कैसे करता है। यह शरीर को इंसुलिन के ठीक से उपयोग करने से रोकता है, जिसका इलाज न करने पर रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2014 में, 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 8.5 फीसदी वयस्क मधुमेह से पीड़ित थे। वहीं 2019 में  होने वाली 15 लाख मौतों के लिए सीधे तौर पर मधुमेह जिम्मेवार था। मधुमेह से होने वाली 48 फीसदी मौतें 70 वर्ष से कम आयु के लोगों में दर्ज की गई थी।

इतना ही नहीं किडनी की बीमारियों से होने वाली 4.6 लाख मौतों के लिए कहीं न कहीं मधुमेह जिम्मेवार था। वहीं ह्रदय संबंधी 20 फीसदी मौतों के लिए बढ़ा हुआ ब्लड शुगर वजह था।

रिसर्च के मुताबिक टाइप 2 मधुमेह से दिल का दौरा, स्ट्रोक, किडनी संबंधी समस्याओं और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अपने इस अध्ययन में कैम्ब्रिज और ग्लासगो विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने दो प्रमुख वैश्विक अध्ययनों, इमर्जिंग रिस्क फैक्टर्स कोलैबोरेशन और यूके बायोबैंक के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें कुल 15 लाख लोग शामिल थे। रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि जितनी कम उम्र में मधुमेह सामने आता है, जीवन प्रत्याशा उतनी अधिक कम रह जाती है। सामान्य तौर पर, हर दस साल पहले मधुमेह का होना जीवन प्रत्याशा में करीब चार वर्षों की कमी से जुड़ा था।

दिल का दौरा, स्ट्रोक, कैंसर और एन्यूरिज्म हैं जीवन प्रत्याशा में कमी की सबसे बड़ी वजह

अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों में टाइप 2 मधुमेह का पता 30 की उम्र में चला था उनकी मृत्यु स्वस्थ लोगों की तुलना में 14 वर्ष पहले हो गई थी। इसी तरह 40 की उम्र में इस बीमारी का पता चलने वालों में मृत्यु 10 साल पहले जबकि जिन लोगों में 50 की उम्र में इसका पता चला था उनकी मृत्यु छह वर्ष पहले हो गई।

रिसर्च के जो परिणाम सामने आए हैं उनके मुताबिक महिलाओं के लिए यह कहीं ज्यादा घातक हैं। आंकड़ों के मुताबिक जिन महिलाओं इस बीमारी का पता 30 की उम्र में चल गया था उनकी मृत्यु औसतन 16 वर्ष पहले हो गई। इसी तरह 40 की उम्र में इस बीमारी के सामने आने वाली महिलाओं में मृत्यु का जोखिम 11 वर्ष और 50 की उम्र की महिलाओं में दूसरी महिलाओं की तुलना में जीवन प्रत्याशा सात वर्ष कम दर्ज की गई थी। वहीं इसके विपरीत पुरुषों में यह आंकड़ा क्रमशः 14, 10 और छह वर्ष दर्ज किया गया था।

इस बीमारी के लिए कहीं न कहीं खराब जीवनशैली और जीन जिम्मेवार है। रिसर्च भी इस बात की पुष्टि करती है। शोध के मुताबिक जिस तरह से लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। वहीं आहार में पोषण की कमी और सुस्त जीवनशैली भी दुनिया भर में इसके तेजी से बढ़ते मामलों की वजह बन रही है। 2021 में वैश्विक स्तर पर करीब 53.7 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित थे। अब यह केवल बड़े आयु के लोगों को होने वाला रोग रह गया, कम उम्र के लोगों में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।  

वहीं इसको लेकर एक आम धारणा है कि मोटापे से ग्रस्त लोग ही मधुमेह का शिकार ज्यादा होते हैं, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है, भारतीय लोगों पर किए एक अध्ययन से पता चला है कि सामान्य वजन वाले दुबले-पतले लोग भी टाइप-2 मधुमेह का शिकार हो सकते हैं। पश्चिमी देशों में जहां डायबिटीज सामान्यतः अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त लोगों को होता है। वहीं, भारत में मधुमेह के 20 से 30 फीसदी मरीज मोटे नहीं होते।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मधुमेह से जुड़ी जीवन प्रत्याशा में अधिकांश कमी "वाहिकाओं संबंधी मौतों" के कारण हुई है, जिसमें दिल का दौरा, स्ट्रोक और एन्यूरिज्म जैसी स्थितियां शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, कैंसर जैसी अन्य जटिलताओं ने भी जीवन प्रत्याशा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो मधुमेह की शुरूआत में ही रोकथाम या उसके प्रभावों को नियंत्रित करने के उपाय अपनाने और उन्हें लागू करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। देखा जाए तो जिस तरह दे दुनिया भर में युवा इसकी चपेट में आ रहे हैं ऐसा करना जरूरी भी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इसके गंभीर जोखिम वाले लोगों की पहचान करके सही समय पर उन्हें सहायता प्रदान की जाए तो टाइप 2 मधुमेह को रोका जा सकता है। इसमें दवाओं से लेकर जीवनशैली में किया बदलाव शामिल है। इसके अतिरिक्त सामाजिक तौर पर व्यापक बदलाव भी जरूरी हैं, जैसे की आहार में सुधार और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बेहतर वातावरण देना भी जरूरी है।

ग्लासगो विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवस्कुलर एंड मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर नवीद सत्तार का कहना है कि, "हमारे निष्कर्ष इस विचार का समर्थन करते हैं कि जितनी कम उम्र में टाइप 2 मधुमेह होता है, उसका बिगड़ा हुआ मेटाबॉलिस्म शरीर को उतना ही अधिक नुकसान पहुंचाता है।“ हालांकि उनके मुताबिक, निष्कर्षों में यह भी सामने आया है कि मधुमेह का शीघ्र पता लगाने और ग्लूकोज के उचित प्रबंधन की मदद से इसकी दीर्घकालिक जटिलताओं को रोका जा सकता है।