स्वास्थ्य

महिलाओं की सशक्तिकरण का आधार बना 'सेवा'

क्या सरकार प्रायोजित विकास कार्य गरीब महिलाओं के सशक्तिकरण में मदद कर सकते हैं? 18 राज्यों के गरीब व असंगठित क्षेत्रों के कामगारों के लिए काम करने वाले सदस्य आधारित हमारे संगठन ‘सेवा’ को यह विश्वास है कि ऐसा संभव है बशर्ते कि इसका सही इस्तेमाल किया जाए।

अगर मौका दिया जाए तो गरीब महिलाएं विकास में हिस्सा लेने और सामाजिक एवं आर्थिक जीवन की मुख्यधारा में शामिल होने की इच्छुक हैं। ‘सेवा’, जरूरत आधारित और मांग चालित पद्धति का अनुसरण करता है।

हम अपने सदस्यों की जरूरतों और मुद्दों की पहचान करते हैं और उन्हें सरकारी कार्यक्रमों से जोड़ देते हैं। हम समानांतर ढांचा तैयार नहीं करते हैं बल्कि योजनाओं के प्रभावी वितरण और सुदूर इलाकों में इनकी पहुंच बनाने में मदद करते हैं। ऐसा करने से गरीब महिलाओं में सशक्तिकरण आता है और वे खुद विकास की अगुआ बन जाती हैं।

सेवा, गुजरात के पाटन और बनासकांठा में काम कर रहा है। ये जिले रेगिस्तानी क्षेत्र के तौर पर वर्गीकृत हैं और यहां लगातार आती आपदाओं ने ग्रामीण इलाकों के गरीबों की आर्थिक हैसियत को गुजर-बसर के स्तर से उत्तरजीविता के स्तर पर ला खड़ा किया है। प्रतिरोधी जलवायु स्थितियां, खारा पानी, भयावह उष्णता और गर्म हवाएं यहां के जीवन को मुश्किल बना देती हैं।

यहां की महिलाओं की पहली जरूरत थी, पीने का पानी। सरकार ने गुजरात वाटर सप्लाई व सीवरेज बोर्ड (जीडब्ल्यूएसएसबी) के जरिए पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन बिछाई थी। इस स्कीम ने कुछ हद तक सफलतापूर्वक पानी की बुनियादी जरूरत को पूरा किया, जो यहां के लोगों और मवेशियों के अस्तित्व के लिए जरूरी चीजों में एक है।

हालांकि, प्रतिरोधी भू-जलवायु स्थितियों को देखते हुए यहां के लोगों के लिए आय देने वाली गतिविधियां तुरंत शुरू करने की जरूरत थी। ऐसे ही समय में साल 1988 में सेवा ने सबसे पहले इस जिले में काम करना शुरू किया।

हमने फील्ड में जाना शुरू किया और महिला समेत ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं। उनके पास पानी था, लेकिन उत्तरजीविता के लिए अकेले पानी पर्याप्त नहीं था। वे कमाई सुनिश्चित करने के लिए अपने ही गांव में काम करना चाहते थे।

गर्मियों के महीनों में सूखे मौसम के चलते चारा नहीं मिल पाया, जिससे डेयरी का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ, जो क्षेत्र का दूसरा अहम पेशा था।

सेवा ने भारत सरकार के कार्यक्रम डीडब्ल्यूसीआरए (डेवलपमेंट ऑफ वुमेन एंड चिल्ड्रेन इन रूरल एरिया) से जोड़ने के लिए बनासकांठा जिले की महिलाओं को संगठित किया ताकि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के जरिए ग्रामीण गरीबी से मुकाबला किया जा सके।

डीडब्ल्यूसीआरए असल में इंटिग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईआरडीपी) का हिस्सा है, जिसमें खास लक्षित समूह की महिलाएं हैं। सेवा द्वारा स्थापित कढ़ाई समूह को डीडब्ल्यूसीआरए से जोड़ा गया। स्थायी आजीविका और नेतृत्व अर्जित करने की दिशा में यह सामूहिक प्रयास महिलाओं के लिए एक बड़ा अनुभव था। इनमें से कई महिलाओं को अपने उपक्रमों के चलते अपने परिवारों और समुदायों में सम्मान मिला। सेवा ने बनासकांठा में महिलाओं के लिए बचत और ऋण समूह भी बनाए ताकि उन्हें अपने व्यवसाय के लिए पूंजी बनाने में मदद मिल सके।

साल 1992 में सेवा ने बनासकांठा डीडब्ल्यूसीआरए महिला सेवा एसोसिएशन (बीडीएमएसए) का गठन किया। यह डीडब्ल्यूसीआर योजना के तहत बनाये गये सभी उत्पादक समूहों को एक साथ लाकर जोड़ने वाला जिलास्तरीय संगठन था।

स्थानीय महिलाओं के लोकतांत्रिक संगठनों ने उन्हें सशक्त किया। वे संगठन जिनका स्वामित्व और नियंत्रण उत्पादकों के पास होता है, वे संगठन सदस्यों के हाशियेपन को खत्म कर उन्हें मुख्यधारा में लाते हैं। इसकी वजह से शिल्प से जुड़ी महिलाओं के स्थानीय समूह, संयुक्त रूप से खुले बाजार में खड़े हो सकते हैं और निजी व्यापारियों के साथ अपने उत्पाद की दर का मजबूती से सौदा कर सकते हैं।

साल 1988 में ही सेवा नमक श्रमिकों के संपर्क में आया। रेगिस्तानी गांवों की बहुत सारी महिलाएं नमक के मैदान में काम करने और वहीं रहने के लिए पलायन कर गईं। इससे संगठित करने की प्रक्रिया प्रभावित हुई। सेवा ने नमक श्रमिकों के जीवन और कार्य की स्थितियों का अध्ययन और मूल्यांकन कर इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार की तथा उसे तत्कालीन ग्रामीण श्रम आयुक्त को सौंपा। इसके बाद नमक श्रमिकों के लिए दो अहम कार्यक्रम शुरू किये गये, जिनमें चलंत स्वास्थ्य वाहन और चाइल्ड केयर सेंटर शामिल थे।

साल 1990-1991 में गुजरात सरकार के इन कार्यक्रमों को लागू करने वाला सेवा पहला संगठन था।

नमक श्रमिकों को एकजुट करने के पीछे सेवा का दृष्टिकोण मुख्य तौर पर इन श्रमिकों को उत्पादक डीडब्ल्यूसीआरए समूहों में संगठित करना था। इसने नमक श्रमिकों को कुछ परिक्रामी निधि (फंड) तक पहुंच प्रदान की, खाद्य नमक के बजाय औद्योगिक नमक के निर्माण में तकनीकी इनपुट दिया और बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित की।

इस दिशा में रणनीति पर बहस करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए सेवा ने ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन सचिव की मदद से 1991 में गुजरात सरकार, सेंट्रल साल्ट एंड मरीन रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसएमआरआई) और नमक श्रमिकों के साथ त्रिपक्षीय बैठक की। गुजरात सरकार ने डीडब्ल्यूसीआरए कार्यक्रम के जरिए अपेक्षित परिक्रामी फंड उपलब्ध कराया।

वहीं, सीएसएमआरआई ने औद्योगिक नमक का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए नमक श्रमिकों को नमक का मैदान तैयार करने की वैज्ञानिक विधि, ढलान, नमकीन पानी का प्रवाह और लवणता का स्तर बनाए रखने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया।

साल 1999 में सेवा और गुजरात के ग्रामीण विकास विभाग ने मिलकर सेवा ग्राम महिला हाट (एलजीएमएच) की स्थापना की। इस राज्यस्तरीय मार्केटिंग संगठन का लक्ष्य ग्रामीण उत्पादकों (कृषि से नमक, वन और हस्तशिल्प) को सीधे तकनीकी, वित्तीय और मार्केटिंग सुविधाएं उपलब्ध कराकर व्यापारियों पर निर्भरता कम करना है।

ऊपर बताये गये उदाहरणों से देखा जा सकता है कि स्वयंसेवी समूह या सहकारिता के रूप में सांगठनिक मजबूती, महिलाओं की आजीविका और सौदा करने की ताकत बढ़ाने में मदद करते हैं। सदस्यों के अपने संगठन और महिलाओं के स्वामित्व वाली सहकारिता उन्हें आगे बढ़ाने और मुख्यधारा में शामिल होने में मदद करते हैं।

डीडब्ल्यूसीआरए के समूह के वाउवा गांव की नेता भाचीबेन भुराभाई अहीर अशिक्षित हैं, लेकिन वह अपने भतीजे की मदद से सारा हिसाब-किताब नोटबुक में दर्ज कर रखती हैं। कई तरह के क्षमता निर्माण प्रशिक्षणों के चलते महिलाओं को अब पूरी तरह पता है कि अधिकतम मुनाफे के लिए अपनी आर्थिक गतिविधियों का प्रबंधन कैसे करना है। किसी भी डीडब्ल्यूसीआरए समूह की सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है।

 

एलआरके की नमक श्रमिक धानीबेन समन्वित दृष्टि पर ध्यान देने की जरूरत पर बल देते हुए कहती हैं, “सेवा हमारे जीवन के उतार और चढ़ाव का अनुसरण करता है। अगर हमें गरीबी से बाहर आना है, तो हमें सामाजिक सुरक्षा के साथ रोजगार की सुरक्षा चाहिए और साथ ही बैंकिंग सेवाएं भी, क्योंकि इन सबके बिना हम मजबूत और स्वनिर्भर कैसे हो सकते हैं?”

लेखिका रीमा नानावटी सेवा की निदेशक हैं