स्वास्थ्य

वैज्ञानिकों ने चेताया : फोर्टिफाइड चावल बच्चों और गर्भवती महिलाओं में पैदा कर सकता है आयरन की अधिकता

Vivek Mishra

"आज बाजार में ज्यादातर नमक आयोडीन से युक्त हैं, जबकि इस बात की अभी कोई फिक्र नहीं है कि जिन्हें आयोडीन के बिना नमक चाहिए वह क्या करें? यह दर्शाता है कि एक बार कुपोषण या सूक्ष्म पोषण की कमी को दूर करने के लिए फोर्टिफिकेशन अगर शुरू हुआ तो वह स्थायी बन जाता है। उसकी समीक्षा तक नहीं की जाती। यदि चावल में आयरन की पौष्टिकता को अनिवार्य तौर पर जोड़ दिया जाएगा तो भय है कि इसकी भी समीक्षा न हो और लोग खासतौर से बच्चे व गर्भवती महिलाएं आयरन की अधिकता के शिकार हो जाएं।"

चावल में आयरन पौष्टिकता को अनिवार्य तौर पर जोड़ने (फोर्टिफिकेशन) की सरकार की रणनीति को अनुपयोगी और घातक बताने वाले अध्ययनकर्ता एचपीएस सचदेव ने यह बात 30 जुलाई को एक वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कही। चावल में आयरन के फूड फोर्टिफिकेशन  मुद्दे पर 28 जुलाई, 2021 को प्रकाशित अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में 18 सदस्यीय एक्सपर्ट टीम की ओर से एक चेतावनी जारी की गई है। वह इस अध्ययन के सह-लेखक हैं।   

प्रकाशित शोध में अर्थशास्त्री, महामारी विज्ञानी और पोषण संबंधी वैज्ञानिकों ने चेताया है कि एनीमिया जिसे हम साधारण तौर पर शरीर में रक्त की कमी के तौर पर पहचानते हैं उसे दूर करने के लिए चावल में आयरन (लौह) का पोषण शामिल करना एक नई मुसीबत पैदा कर सकता है।      

एचपीएस सचदेवा ने कहा कि एनीमिया मुक्त भारत अभियान पहले से ही जारी है। सरकार दवाओं के जरिए आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन ए की गोलियां बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दे रही है। ऐसे में चावल में भी आयरन को जोड़ना एक खर्चीला और फिजूल का काम साबित हो सकता है।

इस काम में सालाना करीब 2600 करोड़ रुपए का आर्थिक बोझ पड़ेगा, जो कि जनता का ही पैसा है और यह आखिरकार कारोबारियों को ही फायदा पहुंचाएगा। प्रेस कांफ्रेंस में कहा गया कि यह  अनुमान  सरकार के आंकड़ों पर ही अधारित है। करीब 0.01 प्रति किलो पर फोर्टिफाइड चावल के लिए 73 पैसा अतिरिक्त लगेगा। वहीं, भारत में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए 3.39 करोड़ टन वार्षिक चावल की मांग है।   

बच्चों के सेहत को लेकर काम करने वाले बाल विशेषज्ञ अरुण गुप्ता ने बताया कि फूड फोर्टिफिकेशन अंतरराष्ट्रीय बाजार को लेकर शुरू किया गया समाधान है । इसके पीछे कोई वैज्ञानिक दलील नहीं है।  

इस शोध के प्रमुख लेखक अनूरा कुरपाद ने बताया कि भारत में बच्चों और गर्भवती महिलाओं में हीमोग्लोबिन (रक्त) की न्यूनतम और अधिकतम सीमा रेखा के कारण एनीमिया मामलों में बढ़ोत्तरी दिखाई देती है। इसके अलावा हीमोग्लोबिन नापने का तरीका भी एनीमिया (रक्त की कमी के कारण) को बढ़ाने वाला साबित होता है। रक्त कोशिकाओं और नसों (वीनस) से लिए गए ब्लड के नमूने में हीमोग्लोबिन की मात्रा में प्रतिदिन एक ग्राम का अंतर आ सकता है।  यह बात देखी गई है कि वीनस ब्लड नमूने से ज्यादा रक्त मिलता है।  

13-17 मार्च 1967, जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने पोषण की कमी से होने वाले एनीमिया (न्यूट्रीशनल एनीमिया) की बात की थी। डब्लयूएचओ के मुताबिक रक्त की कमी यानी एनीमिया सिर्फ आयरन की कमी से ही नहीं बल्कि अन्य पोषण तत्वों की कमी से भी हो सकता है। ऐसे में जिनमें एनीमिया का कारण आयरन नहीं है वह फोर्टिफाइड चावल से अधिकता के शिकार हो सकते हैं।  

भारत सरकार चावल में आयरन की अतिरिक्त पौष्टिकता बढ़ाने के लिए एक अनिवार्य नीति पर काम कर रही है। इस नीति के तहत एकीकृत बाल विकास सेवा और मिड-डे-मील जैसी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के तहत चावल में आयरन की पौष्टिकता को जोड़ना अनिवार्य होगा। 2019-20 में पायलट आधार पर शुरु की गई इस योजना के लिए 174.46 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। यह योजना 2023 तक चलेगी जिसके तहत एक किलो आयरन युक्त चावल की कीमत एक रुपए रखी गई है। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में आयरन युक्त चावल को पीडीएस के तहत इसे बांटा जा रहा है।  

हालांकि, आयरन युक्त चावल बांटने वाली योजना का अब तक क्या फायदा हुआ है और यह कितना असरदार रहा है। इसकी न तो ट्रैकिंग हो रही है और न ही इसके प्रभाव को बताने वाला कोई अध्ययन अब तक मौजूद है। 

इसके अलावा हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन ने भी यह गौर किया था कि एनीमिया और आयरन की कमी का कोई सीधा संबंध नहीं है। शोधार्थियों ने इस बात पर जोर दिया है कि फूड फोर्टिफिकेशन से बेहतर है कि हमारी थाली में विविध आहार और उसकी संतुलित मात्रा पूरा करने पर जोर दिया जाए।