स्वास्थ्य

वैज्ञानिकों ने मच्छरों से फैलने वाले कई वायरसों के लिए दवा की पहचान की

अध्ययन के मुताबिक, मनुष्य के केएटी5 एंजाइम को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली दवाओं से न केवल जीका बल्कि मच्छरों से फैलने वाले कई अन्य रोग, फ्लेवीवायरस से भी निजात पाने में मदद मिल सकती है।

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने पाया कि, किस तरह डेंगू और जीका सहित मच्छरों से फैलने वाले वायरस अपने प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए मरीज की कोशिकाओं पर कब्जा कर लेते हैं। सेल होस्ट एंड माइक्रोब जर्नल में प्रकाशित शोध में बिना या बहुत सीमित उपचार के इन संक्रमणों के लिए नए उपचार विकसित करने का रास्ता खोजने की बात कही गई है।

क्लीवलैंड क्लिनिक के फ्लोरिडा रिसर्च एंड इनोवेशन सेंटर के वैज्ञानिक, निदेशक माइकेला गैक के मुताबिक, शोध के निष्कर्ष हमें वर्तमान में उपचार न किए जा सकने वाले मच्छरों से फैलने वाले वायरसों को समझने और उनका इलाज करने की दिशा में एक कदम और करीब लाते हैं। मच्छरों से फैलने वाले रोग दुनिया भर में लोगों के लिए लगातार खतरों को बढ़ा रहे हैं।

शोधकर्ता के मुताबिक, संक्रामक रोगजनकों और मरीज के शरीर के एंजाइमों का नए तरीकों से अध्ययन करने से हमें मानव स्वास्थ्य को भविष्य में होने वाले खतरों को रोकने के लिए नए, प्रभावी उपचार विकसित करने में मदद मिल सकती है।

वायरस अपने आप जीवित नहीं रह सकते हैं। हालांकि उनमें अपनी आनुवंशिक सामग्री होती है, लेकिन उनमें जीवित रहने और प्रजनन के लिए आवश्यक सभी जीन या कारक नहीं होते हैं। यही कारण है कि वायरस लोगों को संक्रमित करते हैं, वे स्तनधारी कोशिकाओं पर कब्जा कर उन्हें वायरस बनाने वाली फैक्ट्रियों में बदल देते हैं।

उदाहरण के लिए, जिका वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति की कोशिका पर नियंत्रण करने के लिए, यह कोशिका के अंदर कई प्रोटीनों को अपने कब्जे में ले लेता है। मनुष्य में कई एंजाइम होते हैं जो प्रोटीन को अन्य अणुओं के साथ जोड़ते हैं जिससे वे ठीक से काम कर पाते हैं।

क्योंकि जीका वायरस में अपने प्रजनन के लिए आवश्यक कुछ अणुओं की कमी है, इसलिए यह केएटी5 या एसिटाइलट्रांसफेरेज नामक एक मानव एंजाइम का उपयोग करने के लिए विकसित हुआ है। जो वायरस के संक्रामकता को अपने आरएनए जीनोम को बढ़ाने में मदद करता है।

वायरस को दोहराने में केएटी5 की महत्वपूर्ण भूमिका की खोज संक्रामकता को बढ़ाने से रोकने और संक्रमण का इलाज करने में अणुओं को डिजाइन करने की शुरुआत का यह पहला महत्वपूर्ण कदम है।

शोधकर्ता बताते हैं कि, वायरस इतने अधिक म्यूटेट या उत्परिवर्तित होते हैं कि उन्हें सीधे दवा देने और समय के साथ-साथ दवाओं का असर कम हो सकता है, इसे एंटीवायरल दवा प्रतिरोध के रूप में जाना जाता है। जबकि मानव प्रोटीन तेजी से नहीं बदलता है।

उन्होंने कहा इन वायरसों के इलाज के लिए मरीज के केएटी5 प्रोटीन को निशाना बनाना लंबे समय के लिए अधिक प्रभावी होना चाहिए।

अध्ययन से पता चलता है कि मनुष्य के केएटी5 एंजाइम को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली दवाओं से न केवल जीका बल्कि कई अन्य मच्छरों से फैलने वाले रोग फ्लेवीवायरस से भी निजात पाने में मदद मिल सकती है।