स्वास्थ्य

डेंगू की रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों ने खोजा नया रोग प्रतिरोधक 2बी7

सबसे अच्छी बात यह है कि वैज्ञानिकों द्वारा खोजा यह एंटीबॉडी 2बी7 डेंगू के चारों अलग-अलग सेरोटाइप (डेन-1, डेन-2, डेन-3 और डेन-4) सभी पर काम करता है

Lalit Maurya

कैलिफोर्निया, बर्कले और मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे रोग प्रतिरोधक (एंटीबॉडी) की खोज की है जो डेंगू वायरस को शरीर में फैलने से रोक सकता है। सबसे ख़ास बात यह है कि यह एंटीबॉडी डेंगू के चारों अलग-अलग सेरोटाइप (डेन-1, डेन-2, डेन-3 और डेन-4) सभी पर काम करता है। यह सभी जीन्स फ्लेवीवायरस, फैमिली फ्लेविविरिडे से संबंधित होते हैं।

चूंकि इस वायरस के चार अलग-अलग सेरोटाइप होते हैं, तो जब संक्रमित व्यक्ति में इसके एक सेरोटाइप के प्रति प्रतिरोध पैदा होता है तो वो बाद में रोगी को उसके दूसरे सेरोटाइप के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है। इस तरह से यह चार अलग-अलग सेरोटाइप इस बीमारी के इलाज को और मुश्किल बना देते हैं।

कैसे काम करता है यह नया एंटीबाडी '2बी7'

शरीर में फैलने के लिए डेंगू वायरस एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करता है, जिसे गैर-संरचनात्मक प्रोटीन 1 (एनएस1) कहते हैं। यह प्रोटीन अंगों के आसपास की सुरक्षात्मक कोशिकाओं पर एक कुंडली सी लगा लेता है और उनकी सुरक्षा करने वाले अवरोधों को कमजोर कर देता है। जिससे यह वायरस कोशिकाओं को संक्रमित करने में सफल हो जाता है। साथ ही यह रक्त वाहिकाओं में भी पहुंच सकता है। शोधकर्ताओं ने जिस नए एंटीबॉडी की खोज की है उसे '2बी7' नाम दिया है।

यह एंटीबाडी, 'प्रोटीन एनएस1' को रोक देता है और उसे कोशिकाओं से जुड़ने नहीं देता। इस वजह से इस वायरस का फैलना भी रुक जाता है। चूंकि यह एंटीबाडी वायरस के कणों पर हमला न करके सीधे प्रोटीन पर हमला करता है, इस वजह से यह वायरस के चारों सेरोटाइप (डेन-1, डेन-2, डेन-3 और डेन-4) पर काम करता है।

जर्नल साइंस में छपे शोध के मुताबिक यह एंटीबाडी न केवल डेंगू बल्कि इस तरह के अन्य फ्लेवीवायरस जैसे जीका और वेस्ट नाइल पर भी कारगर सिद्ध हो सकता है।

हर साल 40 करोड़ लोग हो जाते हैं संक्रमित

डेंगू एक मच्छर से फैलने वाली बीमारी है जोकि गर्मी और बारिश के दिनों में बड़ी तेजी से फैलती है। यदि इसके वैश्विक प्रसार को देखें तो उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इसके फैलने का ज्यादा खतरा होता है। जिसमें भारत और अफ्रीका के देश भी शामिल हैं। गौरतलब है कि दुनिया की करीब आधी आबादी इस बीमारी की जद में आती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष करीब 40 करोड़ लोग इस बीमारी से संक्रमित हो जाते हैं। डब्ल्यूएचओ की मानें तो पिछले दो दशकों में डेंगू के मामलों में 8 गुना से ज्यादा की वृद्धि हुई है। जहां 2000 में 505,430 मामले सामने आए थे वो 2010 में बढ़कर 24 लाख और 2019 में 42 लाख हो गए थे।

यह वायरस मुख्यतः एडीज़ एजिप्टी या फिर एडीज़ एल्बोपिक्टस मच्छर की प्रजातियों के जरिए फैलते हैं। जब यह मच्छर किसी डेंगू संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उस मरीज में मौजूद डेंगू का वायरस मच्छर को भी संक्रमित कर देता है। फिर जब यही संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उसे भी संक्रमित कर देता है। इस तरह यह बीमारी फैलती जाती है।

यदि इसके इलाज की बात करें तो अब तक इस बीमारी का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है, न ही इसके लिए किसी वैक्सीन है। सिर्फ डेंगू की गंभीर स्थिति का जितनी जल्दी पता लग जाए उतना अच्छा है जिससे उचित समय पर देखभाल के जरिए रोगी की जान बचाई जा सके। ऐसे में यह नया एंटीबाडी लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है।