स्वास्थ्य

वैज्ञानिकों ने खोजा रहस्य, आखिर तनाव से सफेद क्यों हो जाते हैं बाल

Lalit Maurya

सदियों से यह बात प्रचलित है कि तनाव के चलते बाल सफेद हो जाते हैं पर क्यों होते हैं, इसके पीछे की वजह के बारे में किसी को भी पता नहीं था। पर वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया है कि उन्होंने तनाव के चलते बालों के सफेद हो जाने की गुत्थी को सुलझा लिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी सहायता से न केवल इस रहस्य से पर्दा उठेगा बल्कि इसके साथ ही इस समस्या का हल भी खोज सकते हैं। जिसके चलते बालों को डाई करने की जरुरत नहीं रह जाएगी। चूहे पर किये इस शोध से वैज्ञानिकों को बालों के रंग को नियंत्रित करने वाली स्टेम सेल्स का पता चला है। जो लम्बे समय तक तनाव और दर्द के चलते क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। हार्वर्ड और साओ पाउलो विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मिलित रूप से किया गया यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। 

पुरुष और महिलाओं में 30 वर्ष की उम्र के बाद वैसे भी बालों का सफेद होना शुरू हो जाता है।  मूलतः माता-पिता के जीन पर निर्भर करता है कि बालों के रंग बदलने का समय कब शुरू होगा। हालांकि यह प्राकृतिक रूप से ज्यादातर उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि तनाव के चलते भी ऐसा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने इसके पीछे की वजह मेलानोसाइट स्टेम सेल्स को माना है। जो मेलेनिन का उत्पादन करते हैं, जोकि बालों और त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार होता है| वैज्ञानिकों द्वारा किया यह अध्ययन तनाव के नकरात्मक प्रभावों को रोकने की दिशा में किया गया पहल कदम है। इसके साथ ही यह खोज उम्र बढ़ने के कारण बालों के सफेद होने को भी रोकने में मददगार हो सकती है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता और इस अध्ययन से जुड़ी प्रो या-सेह ह्सु ने बताया कि, "हम अब निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि तनाव त्वचा और बालों में आने वाले विशिष्ट परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार है, और यह कैसे काम करता है।"  

स्थायी है तनाव से होने वाला यह नुकसान

वैज्ञानिकों के अनुसार चूहे पर किये गए इस अध्ययन में दर्द के चलते उसके शरीर में एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल हार्मोन अधिक मात्रा में स्रावित होने लगे। जिससे उसके दिल की धड़कन तेज हो गयी और ब्लड प्रेशर बढ़ गया। इसका सीधा असर उसके नर्वस सिस्टम पर पड़ा और उसमें भारी तनाव देखा गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि इसके चलते उसके शरीर में स्टेम सेल्स में कमी आ गयी। जोकि मूलतः बालों के रोमछिद्रों में मेलेनिन का उत्पादन करती है और उसके रंग को नियंत्रित करती हैं। प्रोफेसर ह्सू ने बताया कि "मुझे उम्मीद थी कि यह तनाव शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन वास्तविकता में इस तनाव का हानिकारक प्रभाव जो हमने खोजा था वह हमारी कल्पना से परे था। जिसके बस कुछ दिनों के बाद पिग्मेंट (रंग) को पुनः बनाने वाले स्टेम सेल्स पूरी तरह नष्ट हो गए।  एक बार नष्ट होने के बाद हमने देखा कि इनको फिर से जीवित करना नामुमकिन था। वैज्ञानिकों का मत है कि तनाव ने केवल त्वचा और बाल बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों पर भी अपना असर डालता है। उनके द्वारा किया गया यह अध्ययन इस दिशा में किया गया पहला कदम है। जिसकी मदद से हम इस खतरे के बारे में कहीं बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। साथ ही इससे निपटने और इसके असर को कम करने के बेहतर समाधान खोजने में सफल हो सकेंगे।