भारतीय आबादी में कार्डियो मेटाबोलिक विकारों के बढ़ते खतरों और घटनाओं के पीछे छिपे तंत्रों को समझना और इन प्रमुख बीमारियों के खतरों की रोकथाम और प्रबंधन के लिए नई रणनीतियां विकसित करना जरूरी है।  फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

भारतीयों में मधुमेह, लीवर और हृदय रोग के बढ़ते खतरे का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाया सटीक पूर्वानुमान मॉडल

वैज्ञानिकों ने पहली बार, भारतीयों के लिए कार्डियो-मेटाबोलिक बीमारी, विशेष रूप से मधुमेह, लिवर रोग और हृदय रोगों के लिए एक उन्नत पूर्वानुमान मॉडल विकसित किया है।

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उन्होंने बताया कि पहली बार, कार्डियो-मेटाबोलिक बीमारी, विशेष रूप से मधुमेह, लिवर रोग और हृदय रोगों के लिए एक उन्नत पूर्वानुमान मॉडल विकसित करने के उद्देश्य से यह अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि इन बीमारियों में आनुवंशिक और जीवन शैली दोनों कारण होते हैं जो खतरों को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार होते हैं।

विज्ञप्ति के मुताबिक, अध्ययन 10,000 नमूनों के अपने लक्ष्य को पार करने में सफल रहा है। शोधकर्ताओं ने अन्य संगठनों से भी इसी तरह के नमूने जमा करने का अभियान शुरू करने का आह्वान किया।

प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से डॉ. सेनगुप्ता ने कहा, मान लीजिए, हमें लगभग एक लाख या 10 लाख नमूने मिल जाते हैं, तो इससे हम देश में सभी प्रमुख मापदंडों को फिर से परिभाषित करने में सक्षम हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि सीएसआईआर ने नमूने जमा करने के लिए एक किफायती लोगों द्वारा चलाई जाने वाली  प्रक्रिया विकसित की है।

कुछ समय जारी की गई ‘पीआई-चेक परियोजना का उद्देश्य भारतीय आबादी में गैर-संचारी (कार्डियो-मेटाबोलिक) रोगों के खतरों का आकलन करना है। इस अनूठी पहल में पहले से ही लगभग 10,000 प्रतिभागियों को नामांकित किया गया है, जिन्होंने स्वेच्छा से स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े दिए।

इन प्रतिभागियों में 17 राज्यों और 24 शहरों के सीएसआईआर कर्मचारी, पेंशनभोगी और उनके पति व पत्नी शामिल हैं। एकत्र किए गए आकड़ों में नैदानिक ​​प्रश्नावली, जीवन शैली और आहार संबंधी आदतें, इमेजिंग व स्कैनिंग आंकड़े और व्यापक जैव रासायनिक और आणविक आंकड़ों सहित कई पैरामीटर शामिल किए गए हैं।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारतीय आबादी में कार्डियो मेटाबोलिक विकारों के बढ़ते खतरों और घटनाओं के पीछे छिपे तंत्रों को समझना और इन प्रमुख बीमारियों के खतरों की रोकथाम और प्रबंधन के लिए नई रणनीतियां विकसित करना जरूरी है।

वर्तमान में, इनमें से अधिकांश खतरे पूर्वानुमान एल्गोरिदम काकेशियन आबादी के महामारी विज्ञान के आंकड़ों पर आधारित हैं। साथ ही इस बात के प्रमाण भी हैं कि वे जातीय विविधता, विभिन्न आनुवंशिक संरचना और आहार संबंधी आदतों सहित जीवन शैली पैटर्न के कारण भारतीय आबादी के लिए बहुत सटीक नहीं हो सकते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत के लिए विशेष खतरों के पूर्वानुमान एल्गोरिदम विकसित किए जाएं।

प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि फेनोम इंडिया परियोजना पूर्वानुमानित, व्यक्तिगत, सहभागी और निवारक स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से सटीक चिकित्सा को आगे बढ़ाने का उदाहरण है।

भारतीय आबादी के अनुरूप एक व्यापक फेनोम डेटाबेस तैयार करके, परियोजना का उद्देश्य पूरे देश में इसी तरह की पहल को लागू करना है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि खतरों का पूर्वानुमान एल्गोरिदम अधिक सटीक हों और भारत के अलग-अलग आनुवंशिकी और जीवन शैली परिदृश्य को अपना सके।