स्वास्थ्य

वैज्ञानिकों ने पहली बार एयरोसोल के अंदर डेल्टा वायरस का लगाया पता

अध्ययन में पाया गया की एयरोसोल में सार्स-सीओवी-2 का डेल्टा वेरिएंट पाया गया, जो तेजी से फैलने वाला है क्योंकि यह बलगम के साथ अच्छी तरह से घुल जाता है।

Dayanidhi

सार्स-सीओवी-2 के कारण बनने वाला वायरस कोविड-19 हवा से फैल सकता है। जिसका अर्थ है कि इसका प्रकोप हवा के माध्यम से अत्यधिक तेजी से बढ़ सकता है। अब रोमी अमारो ने दुनिया भर के सहयोगियों के साथ पहली बार एक एरोसोल के अंदर डेल्टा वायरस का मॉडल तैयार किया है। अमारो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो के प्रोफेसर और रसायन विज्ञान और जैव रसायन की अध्यक्ष हैं।

अमारो ने उस टीम की अगुवाई की जिसने पिछले साल एक ऑल-एटम सार्स-सीओवी-2 वायरस और वायरस के स्पाइक प्रोटीन की मॉडलिंग पर अपने काम के लिए पुरस्कार जीता था। उनके इस काम से आसानी से यह समझा जा सकता है कि वायरस कैसे व्यवहार करता है और मानव कोशिकाओं तक कैसे पहुंचता है।

अमारो ने कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि एरोसोल के माध्यम से वायरस कैसे फैलते हैं। यह खोज हमारी हवा से फैलने वाले रोगों को देखने के तरीके को बदल सकती है।

एरोसोल बहुत सूक्ष्म होते हैं, यह इंसान के एक बाल की चौड़ाई का लगभग 10 माइक्रोन के बराबर होते हैं। एक सूक्ष्म बूंद जब आप छींकते हैं तो आपके मुंह और नाक से निकलती हैं। यह 10 माइक्रोन तक चौड़ी हो सकती है। एरोसोल की चौड़ाई एक माइक्रोन से भी कम होती है। जबकि बूंदें 30 सेकंड के भीतर जमीन पर गिरती हैं। एरोसोल अपने छोटे आकार के कारण घंटों तक हवा में तैर सकते हैं और लंबी दूरी तक यात्रा कर सकते हैं। 

वायुमंडलीय रसायन विज्ञान के अध्यक्ष किम प्रेथर ने बड़े पैमाने पर समुद्री और महासागर के एरोसोल का अध्ययन किया है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि समुद्र के एरोसोल में केवल खारा पानी होता है। लेकिन हमने पाया कि इसमें प्रोटीन और वायरस सहित जीवित जीव थे। रोमी ने कहा कि उनका काम एरोसोल संरचना और उनकी गतिविधि और हवाई अस्तित्व की बेहतर समझ हासिल करने में फायदेमंद हो सकता है।

अमारो की प्रयोगशाला ने समुद्री बूदों में प्रेथर के काम का उपयोग करते हुए एरोसोल की तरह दिखने वाले कंप्यूटर मॉडल विकसित करना शुरू किया। इन सिमुलेशन ने अमारो और उनके टीम के लिए एरोसोल का अध्ययन करने के प्रायोगिक तरीकों और उपकरणों को समझने का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही जटिल एरोसोल मॉडल के निर्माण, सिमुलेशन और विश्लेषण के लिए एक उपयोगी ढांचा विकसित किया।

उन्होंने कहा जब 2020 की शुरुआत में सार्स-सीओवी-2 सामने आया, तो उन्होंने वायरस की मॉडलिंग शुरू कर दी थी, जिसे वे दिखाने में सक्षम रहे। यह एक शर्करा की परत या कोटिंग के माध्यम से मेजबान कोशिकाओं को किस तरह संक्रमित करता है, जिसे ग्लाइकेन कहा जाता है जो स्पाइक प्रोटीन की चादर की तरह है।

एरोसोल को लेकर वैज्ञानिकों को हमेशा इस बात का संदेह था कि सार्स-सीओवी-2 हवा में फैलता है। इसलिए एक एरोसोल के अंदर वायरस का अध्ययन करने से उन संदेहों को सबूत के तौर पर उपयोग किया गया। 

ये एरोसोल अति सूक्ष्म हैं जो सबसे दूर तक जा सकते हैं और फेफड़े में गहराई तक जा सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। यह कोई प्रायोगिक उपकरण नहीं है, कोई माइक्रोस्कोप नहीं है जो लोगों को कणों को इतने विस्तार से देखने की अनुमति देता है। लेकिन यह नया कम्प्यूटेशनल माइक्रोस्कोप है जो हमें यह देखने की अनुमति देता है कि वायरस के साथ क्या होता है, यह कैसे आगे बढ़ता है, यह हवा में तैरते हुए कैसे संक्रामक रहता है। यह इन बुनियादी प्रश्नों का उत्तर देता है जिन्हें लोग अक्सर पूछते हैं।

एरोसोल के अंदर वायरस कैसे काम करता है और कैसे जीवित रहता है। इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए अमारो ने दुनिया भर से 52 लोगों की एक टीम के साथ काम किया। इसमें मॉडलों का सिमुलेशन या अनुकरण करने के लिए समिट सुपरकंप्यूटर का उपयोग किया गया।

समिट सुपरकंप्यूटर दुनिया के उन कुछ सुपर कंप्यूटरों में से एक है जो बड़े पैमाने पर सिमुलेशन करने में सक्षम हैं। जिसने शोधकर्ताओं को अभूतपूर्व एक अरब परमाणुओं में एरोसोल को देखने की अनुमति दी।

इन सिमुलेशन में वायरस की झिल्लियों के अधिक जटिल विवरण, साथ ही एरोसोल के विज़ुअलाइज़ेशन शामिल थे। सार्स-सीओवी-2 वायरस के अलावा, इन सब-माइक्रोन रेस्पिरेटरी एरोसोल में म्यूकिन्स, लंग सर्फेक्टेंट, पानी और आयन भी होते हैं।

म्यूकिन्स पॉलिमर हैं जो सांस के रास्ते से लेकर शरीर की अधिकांश सतहों को गीला कर देते हैं और वे सूरज की रोशनी जैसे कठोर बाहरी तत्वों से वायरस की रक्षा करने का काम कर सकते हैं। अमारो की टीम जिन परिकल्पनाओं का पता लगा रही है, उनमें से एक यह है भी है कि क्या सार्स-सीओवी-2 का डेल्टा वेरिएंट भाग अधिक फैलने वाला है क्योंकि यह बलगम के साथ इतनी अच्छी तरह से घुल जाता है।

मॉडल बनने के बाद वह ऐसे उपकरण भी विकसित कर रही हैं जो इस बात की जांच करेंगे कि नमी, हवा और अन्य बाहरी स्थितियां एरोसोल में वायरस के फैलने और यह जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं। सार्स-सीओवी-2 कैसे संचालित होता है, इसके बारे में सीखने की तात्कालिक जरूरतों से परे, एयरोसोल के कंप्यूटर मॉडल में जलवायु विज्ञान और मानव स्वास्थ्य सहित व्यापक प्रभाव हो सकते हैं।

यूसी सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ रॉबर्ट चिप ने कहा कि महामारी के दौरान हमने जो सीखा वह यह है कि एरोसोल वायरस फैलाने में मुख्य तौर पर जिम्मेदार थे। कई अन्य श्वसन रोग फैलाने वालों में उनके महत्व को कम करके आंका गया है।

जितना अधिक हम एरोसोल के बारे में सीखते हैं और वे वायरस और प्रदूषकों को कैसे रखते हैं, जैसे कि कालिख, जिनका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम प्रभावी उपचार और शमन उपायों को बनाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और दुनिया भर के लोगों की भलाई के लिए फायदेमंद है।