स्वास्थ्य

सांभरः बर्ड फ्लू ही नहीं, कोल्ड शॉक भी हो सकती है पक्षियों के मरने की वजह

अब तक जोधपुर के कापरड़ा में 290 कुरजां, सांभर में 90 और पाली में 200 पक्षियों की मौत हुई है।

Madhav Sharma

सांभर में हो रही कौओं की मौत के पीछे कोल्ड शॉक भी एक वजह बताई जा रही है। पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक पक्षियों की मौत में बर्ड फ्लू जैसा पैटर्न दिखाई नहीं दे रहा। हालांकि उनके शव में एच 5 एन 1 स्ट्रेन मिला है, लेकिन मौत की वजह सिर्फ यह है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह वायरस हाइली पैथोजेनिक यानी अत्यधिक रोगजनक है।

पशुपालन विभाग के अधिकारी और पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों की शुरूआत में बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत होती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एवियन इंफ्लूएंजा वायरस मिलने से यह अनिवार्य नहीं हो जाता कि पक्षियों की मौत इसी वायरस से हुई हो। अधिक सर्दी के कारण कोल्ड शॉक और हाइपोथर्मिया भी मौत की एक वजह हो सकती है। अगर बर्ड फ्लू होता तो सबसे संवेदनशील माने जाने वाले पक्षी मुर्गियों में अब तक ये फैल चुका होता। प्रदेश में कहीं भी पोल्ट्री में बर्ड फ्लू की पुष्टि नहीं हुई है।

वहीं, बुधवार को सांभर में मृत पक्षी मिलने के 6 दिन बाद जिला कलक्टर की अध्यक्षता में एक बैठक रखी गई। इसमें कंट्रोल रूम बनाने, रैपिड एक्शन टीम बनाने, झील की निगरानी के लिए दल बनाने और गढ्ढा खोदकर मृत पक्षियों को दफनाने के पारंपरिक निर्देश दिए गए। साथ ही जयपुर जिला कलक्टर अंतर सिंह नेहरा ने पोल्ट्री फॉर्म पर काम कर रहे कार्मिकों को किट, मास्क, सेनिटाइजर देने और समय-समय पर फॉर्म से सैंपल लेने के भी निर्देश दिए। जिला कलक्टर के निर्देशों को बाद विभाग ने तुरंत एक कंट्रोल रूम बनाया। जिसका नंबर 0141- 2374617 है।

कौए सर्दी के लिहाज का काफी संवेदनशील होते हैं- डॉ. कटारिया

बर्ड फ्लू और कोल्ड शॉक की थ्योरी के बीच डाउन-टू-अर्थ ने राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर से रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार कटारिया से बात की। डॉ. कटारिया ने सांभर पक्षी त्रासदी में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्होंने ही सबसे पहले यह कहा कि पक्षियों की मौत एवियन बोट्यूलिज्म से हो रही है।

डॉ. कटारिया कहते हैं, “पहली बात तो यह है कि ज्यादातर मौत कौओं की हुई है। क्योंकि कौए का शरीर सर्दी के लिहाज से काफी संवेदनशील होता है। कौआ तेज सर्दी नहीं झेल पाते जबकि गर्मी को ये सहन कर लेते हैं। इसीलिए सुबह-सुबह कौओं की मौत ज्यादा होती है। दूसरी बात, हर पक्षी में एंफ्लूएंजा वायरस रहता ही है। इसीलिए लैब में टेस्टिंग के दौरान यह मिलेगा ही, लेकिन मौत की वजह यही वायरस है ऐसा लैब अपनी रिपोर्ट में नहीं लिखती। पशुपालन विभाग ने एक भी पक्षी का पोस्टमार्टम नहीं किया है, वरना पीएम रिपोर्ट में फ्लू के स्पष्ट कारण आते हैं। पक्षियों की आंख, नाक से पानी और सिर में सूजन आती है।

कटारिया आगे कहते हैं, ‘लैब आरटी-पीसीआर से पुष्टि कर रही है कि पक्षी में वायरस है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पक्षी की मौत बर्ड फ्लू से ही हुई है। क्योंकि इस तरह के वायरस अमूमन पक्षियों में हमेशा रहते हैं। रिपोर्ट में यह लिखा हुआ है कि पक्षी में एच-5 एन-1 एवियन इंफ्लूएंजा पाया गया है, लेकिन रिपोर्ट में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि मौत इसके कारण हुई है।’

कटारिया आगे कहते हैं, “एच-5 एन-1 वायरस लो-पेथोजैनिक यानी कम रोगजनक होता है और इसका एक एपि सेंटर होता है, लेकिन ऐसा कोई ट्रेंड देखने को नहीं मिल रहा। बर्ड फ्लू में मौतों की रफ्तार बहुत तेज होती है। अभी रात में तापमान कम होने के कारण कौओं की हाइपोथर्मिया और कोल्ड शॉक की वजह से मौत हो रही हैं। इसीलिए सुबह-सुबह पक्षी मृत मिल रहे हैं। दूसरे पक्षी इसीलिए मर रहे हैं क्योंकि वे मरे हुए पक्षियों को खा रहे हैं।”

कटारिया जोड़ते हैं कि जोधपुर के कापरड़ा तालाब में अब तक 290  कुरजां (साइबेरियन क्रेन) की मौत बर्ड फ्लू से हुई है। लेकिन इनकी मौत की वजह ऑर्गेनो फास्फोरस पैरासाइट होता है। यूंकि कुरजां शाकाहार और मांसाहारी दोनों होते हैं। इसीलिए ये पैरासाइट खाने की वजह से इनकी हर साल मौत हो जाती है। जबकि उसी क्षेत्र में फ्लेमिंगो और अन्य पक्षी नहीं मर रहे।  

वहीं, पशुपालन विभाग में अतिरिक्त निदेशक (निगरानी) डॉ. आनंद सेजरा कहते हैं, “बर्ड फ्लू की गाइडलाइंस के अनुसार मृत पक्षी का पोस्टमार्टम नहीं किया जा सकता। उसे पूरे प्रोटोकॉल के साथ लैब में भेजना होता है और डंप किया जाता है। विभाग यही कर रहा है। साथ ही हम पूरी सतर्कता बरत रहे हैं ताकि अगर इंफ्लूएंजा का स्ट्रेन बदले तो उससे बचाव और मुकाबला किया जा सके।”

बर्ड फ्लू वायरस के स्ट्रेन के बारे में पशुपालन विभाग में वेटनरी डॉक्टर तपेश माथुर कहते हैं कि जो वायरस अभी पक्षियों में मिल रहा है वो एच-5 एन-1 है। एवियन इंफ्लूएंजा में एच सीरीज में 1 से 16 और एन सीरीज में 1-9 स्ट्रेन होते हैं। वायरस को दो भागों में बांटा गया है। पहला हाइली पेथोजैनिक (अत्यधिक रोगजनक) और लो-पेथोजैनिक (कम रोगजनक)। एच- 5 एन-1 पक्षी और इंसान दोनों के लिए हाइली पैथोजैनिक यानी अत्यधिक रोगजनक वायरस है। इसीलिए पशुपालन विभाग के साथ-साथ चिकित्सा विभाग को भी विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। साथ ही सभी संबंधित विभागों को आपसी समन्वय से काम करने की जरूरत है ताकि इसका प्रसार अधिक ना हो।

पशुपालन विभाग समय पर नहीं चेतता

सांभर में 2019 में भी 30 हजार पक्षियों की मौत बोट्यूलिज्म से हुई। तब भी पशुपालन विभाग की लापरवाही सामने आई थी। चूंकि मौतों को विभाग नहीं रोक सकता, लेकिन अगर विभाग तुरंत सख्त एक्शन ले तो मौतों की संख्या को कम जरूर किया जा सकता है। कटारिया कहते हैं कि मरे हुए पक्षियों के शवों को पूरे प्रोटोकॉल के साथ दफनाना चाहिए ताकि दूसरे पशु-पक्षी उसके संपर्क में नहीं आएं। सोडियम क्लोराइड सहित डीटीडी का छिड़काव भी करवाना चाहिए। लेकिन सांभर का ही उदाहरण लिया जाए तो पशुपालन विभाग ने घटना के 6 दिन बाद एक बड़ी मीटिंग की है। इसके बाद वहां राहत कार्यों में थोड़ी तेजी आई है।