स्वास्थ्य

शोधकर्ताओं ने सीवेज में पाया कोरोनावायरस

Divya Khatter

जयपुर में शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में नगरपालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और अस्पताल के अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 (SARS-CoV-2) वायरल जीन की उपस्थिति पाई गई है।

यह (सीवेज वॉटर) समुदाय में वायरस के प्रसार की निगरानी के लिए एक महत्वपूर्ण टूल है, खासकर महामारी के दौरान, जब क्लीनिकल डाइग्नोसिस करना कठिन और एसिमटमेटिक इन्फेक्शन आम हैं।

यह अध्ययन जयपुर के बी लाल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया हैं। उन्होंने लगभग 1.5 महीने (मई और जून, 2020) में छह नगरपालिका वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की विभिन्न इकाइयों से उपचारित (ट्रीटेड) और अनुपचारित (अनट्रीटेड) अपशिष्ट (वेस्ट) के नमूने एकत्रित किए।

उन्होंने जयपुर के आसपास कोविड-19 उपचार के लिए नामित दो प्रमुख अस्पतालों के सीवेज से नमूने भी एकत्र किए। अध्ययन 18 जून को मेड्रिक्सिव जर्नल में प्रकाशित हुआ। यह प्री-प्रिंटेट पेपर और नॉन पीयर-रिव्यू जर्नल है।

नमूनों से वायरल राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को निकाला गया और वायरल जीन का पता लगाने के लिए रीयल टाइम (आरटी) -पीसीआर विश्लेषण किया गया।

नगरपालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से एकत्र किए गए नमूनों में से दो सैंपल पॉजिटिव पाए गए। वैज्ञानिकों ने यह भी जांचने की कोशिश की, कि क्षेत्र में समाचार पत्रों के माध्यम से रिपोर्ट किए गए कोविड -19 मामलों और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के पॉजिटिव नमूनों के बीच संबंध है या नहीं।

उनके विश्लेषण से पता चला है कि पहले नमूने के तुरंत बाद, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के आस-पास के क्षेत्रों, (जहां से अनट्रीटेड सैंपल वायरस परीक्षण के लिए एकत्र किए गए थे), में कोविड-19 रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई।

 शोधकर्ताओं ने ट्रीटेट वेस्ट वाटर नमूनों में वायरल जीनोम की उपस्थिति के लिए भी परीक्षण किया क्योंकि इस पानी का उपयोग कृषि क्षेत्रों में सिंचाई के लिए किया जाता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ट्रीटेट वाटर में वायरस के जीनोम नहीं पाए गए। यहां तक कि उन इलाकों के ट्रीटेट वाटर में भी वायरस के जीनोम नहीं पाये गए जहां के अनट्रीटेट वाटर में वायरस के जीनोम की पुष्टि हुई थी। जिसके कारण कोविड़-19 के खिलाफ लड़ाई में अपशिष्ट उपचार प्रणालियों (वेस्ट ट्रीटमेंट सिस्टम) के प्रभाव को मान्यता मिली है।

अध्ययन करने वाले  समूह का दावा है कि यह पहला अध्ययन है जो भारत में सीवेज नमूनों से सार्स- सीओवी-2 (SARS-CoV-2) की उपस्थिति की पुष्टि करता है और एक चेतावनी देने का आधार देता है जहाँ व्यक्ति-परीक्षण उपलब्ध नहीं हो सकता है।

निजी एग्रीगेटर https://www.covid19india.org/ के अनुसार राजस्थान में 29 जून, 2020 तक कोविड के 17,392 पुष्ट मामले और 402 मौतें दर्ज की गई थीं। जयपुर में 29 जून, 2020 तक 638 सक्रिय मामले थे।

भौगोलिक क्षेत्र में फैले कोविड-19 की व्यापकता का अनुमान लगाने के लिए पर्यावरण लक्षणों की निगरानी महत्पूर्ण हो जाती है। विशेष रूप से अपशिष्ट जल निगरानी (वेस्ट वाटर सर्विलांस) को एक महत्वपूर्ण उपकरण (टूल) के रूप में देखा जा सकता है।

इमर्जिंग इन्फेक्शियस डिजीज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, बीमारी के पांचवें दिन से रोगी के नमूनों में वायरल आरएनए का पता लगना शुरू हो जाता है, इसके साथ ही बीमारी के 30 दिनों के बाद भी कुछ नमूनों में यह मौजूद रहता है।

नतीजतन, वायरस मल के नमूनों में पाया जा सकता है और यह फीकल- ओरल ट्रांसमिशन के माध्यम से फैल सकता है। वायरल लोड की निगरानी के अलावा, वेस्ट वाटर सर्विलांस को ( दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीन की उपस्थिति) एक लक्षण के रूप में देखा जा सकता है।

वैश्विक स्तर पर, स्वस्थ मनुष्यों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस) के दबाव का पता लगाने के लिए सीवेज सर्विलांस परियोजनाएं चलाई जा रही है।

सार्स-सीओवी-2 (SARS-CoV-2) संक्रमण को उन प्रतिरोधी बैक्टीरिया के साथ द्वितीयक बैक्टीरिया के संक्रमण से जुड़ा हुआ पाया जाता है। इसलिए, एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीन की निगरानी (सर्विलांस) के लिए अपशिष्ट-आधारित (वेस्ट बेस्ड) महामारी विज्ञान अध्ययन भी कोविड-19  महामारी के समय में महत्वपूर्ण हो जाते हैं।