मोनोकल्ड कोबरा जिसका वैज्ञानिक नाम नाजा कौथिया है, यह सांप पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया तथा दक्षिण चीन में पाए जाते हैं।  फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

एशिया के 'मोनोकल्ड कोबरा' के जहर में क्षेत्रीय स्तर पर मिले अंतर, उपचार में चुनौती

अध्ययन में नाजा कौथिया के जहर के बेहतर प्रबंधन के लिए पीएवी मिश्रण में एनकेवी के खिलाफ प्रजाति विशेष और क्षेत्र विशेष एंटीबॉडी को शामिल करने की सिफारिश की गई है।

Dayanidhi

मोनोकल्ड कोबरा या मोनोसेलेट कोबरा जिसे इंडियन स्पिटिंग कोबरा भी कहा जाता है, एक विषैली प्रजाति है जो पूरे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि मोनोकल्ड कोबरा के काटने के बाद किए जाने वाले उपचार प्रक्रिया में सुधार के लिए प्रजाति विशेष और क्षेत्र विशेष विषरोधी या एंटीवेनम की जरूरत पड़ती है।

मोनोकल्ड कोबरा जिसका वैज्ञानिक नाम नाजा कौथिया है, इसके मुंह के सामने के हिस्से में उभरे हुए नुकीले जहरीले दांत होते हैं। इस तरह के सांप पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया तथा दक्षिण चीन में पाए जाते हैं।

नाजा कौथिया के काटने से मस्तिष्क या परिधीय तंत्रिका तंत्र को काफी नुकसान होता है और ये सांप शरीर के जिस हिस्से में काट लेते हैं, वहां के ऊतक नष्ट हो जाते हैं। इसके कारण स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

गलत रिकॉर्ड रख-रखाव, जांच करने के उपकरणों की कमी और इसके पाए जाने वाले क्षेत्रों में महामारी विज्ञान सही तरीके से जांच न होने के कारण नाजा कौथिया के जहर से संबंधित आंकड़ों को एकत्र करना बहुत कठिन है।

यह शोध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, गुवाहाटी के इंस्टीटूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के निदेशक प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी की अगुवाई में किया गया है।

इसमें तेजपुर विश्वविद्यालय से हीराकज्योति काकती तथा अमृता विश्व विद्यापीठम से डॉ. अपरूप पात्रा जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों की टीम ने अलग-अलग भौगोलिक इलाकों में नाजा कौथिया सांप के जहर की संरचना में अंतर का पता लगाने के लिए प्रोटीन और उनकी कोशिकीय गतिविधियों की परस्पर क्रिया, कार्य, संरचना व अन्य प्रक्रियाओं का अध्ययन एवं जैव रासायनिक जांच-पड़ताल की है।

वैज्ञानिकों की टीम ने अध्ययन में यह पाया है कि विष एक जैसी आइसोफॉर्म (समान अमीनो एसिड अनुक्रम वाले प्रोटीन) में गुण एवं मात्रा से संबंधी अंतरों के कारण इसकी घातकता तथा पैथोफिजियोलॉजिकल उपलब्धता में बदलावकारी विषरोधी चिकित्सा के असर को रोक सकता है।

शोधकर्ताओं ने सामान्य उपयोग की विषरोधी दवा में जहर से संबंधित विशेष एंटीबॉडी को मापा और नमूनों में नाजा कौथिया सांप के जहर के खिलाफ ऐसे एंटीबॉडी की कमी पाई। इसलिए अलग-अलग नाजा कौथिया सांप के जहर के नमूनों की घातकता और विषाक्तता को पॉलीवैलेंट एंटीवेनम (पीएवी) द्वारा प्रभावी तरीके से इसे बेअसर नहीं किया जा सका।

एल्सेवियर जर्नल टॉक्सिकॉन में प्रकाशित अध्ययन में नाजा कौथिया के जहर के बेहतर प्रबंधन के लिए पीएवी मिश्रण में एनकेवी के खिलाफ प्रजाति विशेष और क्षेत्र विशेष एंटीबॉडी को शामिल करने की सिफारिश की गई है।

इसके अलावा वैज्ञानिकों ने उन इलाकों में नाजा कौथिया सांप के जहर पर क्लीनिकल जांच करने का भी सुझाव दिया है, जहां सांप आमतौर पर पाए जाते हैं और इस जानकारी तथा स्थानीय एनकेवी संरचना के बीच संबंधों का आकलन किया जा सकता है।

मोनोकल्ड कोबरा सांप के कम इम्यूनोजेनिक जहर के खिलाफ एंटीबॉडी के उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्तमान टीकाकरण प्रोटोकॉल में सुधार किया है। साथ ही नाजा कौथिया के जहर के अस्पताल में बेहतर और अधिक प्रभावी प्रबंधन से सांप के काटने के इलाज के उपायों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।