विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक मानसिक रोग जैसे मिर्गी मस्तिष्क की एक पुरानी गैर-संचारी बीमारी है। यह सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करती है। दुनिया भर में लगभग 5 करोड़ लोगों को मिर्गी है, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे आम मानसिक रोगों में से एक बनाता है।
मिर्गी से पीड़ित लगभग 80 फीसदी लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जिनमें से हर पांचवां भारत में रहता है।
एक नए अध्ययन के मुताबिक मानसिक रोग जैसे मिर्गी की ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में 2010 से 2018 तक 277 फीसदी तक बढ़ गई है। इसी अवधि में मिर्गी के लिए जेनेरिक दवाओं की कीमत में 42 फीसदी की कमी आई है।
2010 के बाद से ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है, विशेषकर लैकोसामाइड नाम की दवा के प्रति गोली की कीमत में भारी वृद्धि देखी गई है। ब्रांडेड दवाओं की कीमतें उसी तरह की जेनेरिक दवाओं से 10 गुना अधिक है।
अध्ययनकर्ता सैमुअल वालर टर्मन ने बताया की पिछले अध्ययनों से पता चला है कि मानसिक उपचार के लिए उपयोग होने वाली दवाएं सबसे महंगी हैं। टर्मन, मिशिगन विश्वविद्यालय के एमडी, एमएस, और अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के सदस्य हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने अध्ययन के लिए 2008 से 2018 तक उपचार किए गए 20 फीसदी लोगों के क्रमरहित या रैंडम तरीके से नमूने के रिकॉर्ड को देखा। हर साल मिर्गी के 77,000 से 133,000 लोग पाए गए थे।
2008 में ब्रांडेड दवाओं की कीमतें 2,800 डॉलर प्रति वर्ष से बढ़कर 2018 में 10,700 डॉलर प्रति वर्ष हो गई, जबकि उस दौरान जेनेरिक दवाओं की लागत 800 डॉलर से घटकर 460 डॉलर हो गई।
टर्मन ने कहा कि ब्रांडेड दवाओं की लागत में होने वाली कुल वृद्धि में 45 फीसदी केवल लैकोसामाइड नाम की दवा जिम्मेवार थी।
ब्रांडेड दवाओं ने समय के साथ गोलियों के एक छोटे अनुपात को बढ़ाया, जो कि 2008 में 56 फीसदी से 2018 में 14 फीसदी तक पहुंच गई। टर्मन ने कहा कि समय के साथ ब्रांडेड दवाओं के नुस्खे या प्रिस्क्रिप्शन में कमी उनके समान जेनेरिक दवाओं की बढ़ती उपलब्धता के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि मार्च 2022 में लैकोसामाइड नामक दवा के पेटेंट की समाप्ति और अन्य बदलावों से निर्धारित पैटर्न पर और अधिक असर पड़ेगा।
पिछले कई दशकों में मिर्गी के लिए कई नई दवाएं पेश की गई हैं। डॉक्टरों को दवा का चयन मरीज के आधार पर करना चाहिए, कोई भी सबसे अच्छी दवा नहीं है। मिर्गी के लिए कई दवाएं अन्य दवाओं के साथ-साथ साइड इफेक्ट जैसी समस्याओं को जन्म दे सकती हैं।
अध्ययन में पाया गया कि पहले शुरू की गई मिर्गी की दवाओं का उपयोग, जिन्हें पहली पीढ़ी की दवाएं कहा जाता है, साथ ही कई दवाओं के साथ एंजाइम-उत्प्रेरण दवाओं का उपयोग 2008 से 2018 तक कम हो गया।
टर्मन ने कहा कि डॉक्टरों को सामाजिक लागत पर विचार करना चाहिए, यह देखते हुए कि क्या खर्चीली ब्रांडेड दवाओं से फायदा होगा के वे इस लायक हैं। जबकि नई पीढ़ी की दवाओं के संभावित फायदे हैं जैसे कि सीमित दवा, अलग-अलग साइड इफेक्ट प्रोफाइल, परस्पर विरोधी रहे हैं। इस पर अध्ययन में इस बात की भी तस्दीक की गई कि क्या वे लागत प्रभावी हैं।
अध्ययनकर्ता ने कहा कि अध्ययन की एक सीमा यह थी कि इसमें केवल चिकित्सा पर्चे के दावों को शामिल किया गया था, इसलिए परिणाम निजी बीमा के साथ युवा आबादी पर लागू नहीं हो सकते हैं। यह अध्ययन न्यूरोलॉजी के ऑनलाइन अंक में प्रकाशित हुआ है।