स्वास्थ्य

अब अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं खिलाड़ी

Anil Ashwani Sharma

अमेरिका की सुपरस्टार जिमनास्ट सिमोन बाइल्स, जापान की विख्यात टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका और अब इंग्लैंड के मशहूर ऑलराउंडर ब्रेन स्टोक्स। कहने के लिए ये सभी खिलाड़ी अलग-अलग खेलों के महारथी हैं लेकिन इनमें एक बात सामान्य है। वह है इन सभी खिलाड़ी ने अपने खेल के चरम पर रहते हुए बिना किसी झिझक के यह कहकर खेल आयोजकों और दर्शकों को चौंका दिया कि उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण वे खेल से ब्रेक ले रहे हैं।

यहां यह बताना जरूरी है कि इन सभी की मानसिक हालत अलग-अलग कारणों से खराब हुई। जहां नाओमी को मीडिया के नकारात्मक प्रश्नों ने उनकी मानसिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाला तो दूसरी ओर सिमोन को अपनी बचपन की बुरी यादों और अच्छे प्रदर्शन के दबाव ने परेशान किया, वहीं स्टोक्स कोरोना से बचाव के लिए बनाए गए बायोबबल के कारण अपना मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं रख सके। इसलिए उन्होंने अनिश्चतकाल के लिए खेल से ब्रेक ले लिया।

इन तीनों खेल महारथियों में एक सामानता और थी कि अचानक अपने मानसिक स्वास्थ्य के कारण खेलों से अपने को अलग होने के उनके निर्णय को उनके संगी-साथियों सहित आयोजकों ने न केवल समर्थन किया, बल्कि इसे आज की परिस्थितियों में सबसे बड़ी बीमारी तक करार दिया।

टोक्यो ओलंपिक के आयोजन के दौरान आयोजकों पर मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा इतना गर्मा गया है कि आयोजन के बीच में ही अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानी से निजात पाने के लिए हेल्पलाइन की घोषणा करने पर बाध्य होना पड़ा।

टोक्यो ओलंपिक का आयोजन इस समय अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचने वाला है, लेकिन ओलंपिक में खेलों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते दबाव का ही परिणाम है कि अब आईओसी ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे खिलाड़ियों के लिए दुनियाभर की 70 भाषाओं में हेल्पलाइन शुरू की है और यह हेल्पलाइन ओलंपिक खत्म होने के अगले तीन माह तक जारी रहेगी। 

आईओसी के प्रवक्ता मार्क एडम्स ने यह घोषणा ऐसे समय में की जबकि अमेरिका की दिग्गज जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स ने मनोवैज्ञानिक दबाव से जुड़ी परेशानियों के कारण प्रतियोगिता से हटने का फैसला किया था। आईओसी के अनुसार यह हेल्पलाइन तात्कालिक सहायता, अल्पकालिक परामर्श, व्यावहारिक सहायता और यदि जरूरी हो तो उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के मामले में मदद प्रदान करेगी।

मानसिक स्वास्थ्य का मामला अकेले उच्च स्तरीय खेल आयोजनों तक अब सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब भारत के हरियाणा राज्य जहां से देश को सबसे अधिक ओलंपिक पदक जीतने वाले खिलाड़ी निकलते हैं, वहां की राज्य सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि हरियाणा के खिलाड़ियों को शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जाएगा। इसके लिए प्रदेश सरकार “मेंटल हेल्थ कोच” की नियुक्ति करेगी।

इस प्रस्ताव पर राज्य के मुख्यमंत्री ने भी अपनी सहमति दे दी है। इसके तहत प्रदेश को चार जोन में बांटकर मेंटल हेल्थ कोच रखे जाएंगे। इसमें अलग-अलग खेल से संबंधित 202 कोच नियुक्त होंगे। राज्य के खेल राज्यमंत्री संदीप सिंह ने कहा कि खिलाड़ियों में बढ़ रहे अपराध और अवसाद के मामलों को देखते हुए प्रदेश सरकार हरियाणवी खिलाड़ियों को मानसिक रूप से भी मजबूत करेगी।

पहली बार प्रदेश में मेंटल हेल्थ कोच की नियुक्त किए जाएंगे। ध्यान रहे कि इन दिनों चल रहे ओलंपिक खेलों में हरियाणा की तरफ से बड़ी संख्या में खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। यहां भाग लेने आए भारतीय खिलाड़ियों के दलों में निशानेबाजी और तिरंदाजी जैसे खेलों में भारतीयों के जीतने की प्रबल संभावनाएं खेल शुरू होने के पूर्व ही व्यक्त की गईं थीं। लेकिन आखिर में दोनों प्रतियोगिता में भारत के खिलाड़ियो के हाथ खाली ही रहे।

लेकिन यहां गौर करने की बात है कि इन दोनों खेलों के खिलाड़ी के लिए खेलों के दौरान उनकी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सबसे महत्वपूर्ण होती है लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से दोनों खेलों में भरतीय दलों के साथ एक भी मनोचिकित्सक शामिल नहीं था। हालांकि जब इस संबंध में भारतीय ओलंपिक संघ का कहना था कि दलों में मनोचिकित्सक हैं लेकिन वे इस नाम से नहीं गए हैं। क्योंकि करोना के कारण कम से कम सपोर्ट स्टॉफ के कारण कम से कम लोगों को भेजा गया।

अब दुनियाभर के सभी खेलों के खिलाड़ी अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुल कर बात रख रहे हैं। इस समय भारत-इंग्लैंड की क्रिकेट श्रृंखला का पहला टेस्ट खेला जा रहा है और इसमें इंग्लैंड के ऑलराउंडर बेन स्टोक्स ने मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होने का हवाला देकर अपना नाम वापस ले लिया है। उनके इस निर्णय पर उनके साथी जेम्स एंडरसन ने कहा है कि कोविड महामारी से बचाव के लिए तैयार किए गए सख्त नियमों के बीच एक बायो सिक्योर बबल से दूसरे बबल में जाने का नकारात्मक असर खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

कई खिलाड़ी बायो बबल की वजह से होने वाली मानसिक थकान के कारण अहम मैचों से नाम वापस ले चुके हैं। यही नहीं उनके कप्तान जो रूट ने भी स्टोक्स के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा है कि हालिया समय में खिलाड़ियों का मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना सकारात्मक चीज है। एंडरसन ने कहा कि मुझे लगता है कि इसका लोगों पर बिलकुल अलग तरह का प्रभाव पड़ता है।

अपने खेल में सफल होने के कारण आपको अलग तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है। वह कहते हैं कि इस सबमें सकारात्मक यह है कि पिछले कुछ सालों में अपनी समस्याओं के बारे में बात करना आसान हो गया है और ऐसा करने में अब कोई दिक्कत नहीं रही है। 

वर्ष 2003 में टेस्ट पदार्पण करने वाले एंडरसन ने याद किया कि जब उन्होंने करियर शुरू किया तो अगर कोई मानसिक अवसाद के बारे में बात करता था तो इसे कमजोरी का संकेत माना जाता था। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर जब मैंने शुरुआत की तो इस बारे में बात करने को कमजोरी की तरह देखा जा सकता था विशेषकर पुरुष खिलाड़ी के नजरिए से। 

मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भारत के पूर्व खिलाड़ी मनिंदर सिंह ने एक न्यूज चेनल में कहा कि भारत के सारे क्रिकेटर किसी न किसी से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिए मदद मांग रहे हैं और ले रहे हैं।

पूर्व में भी कई खिलाड़ी मानसिक स्वास्थ्य को कारण बता कर खेल से अपने को अलग कर चुके हैं। इंग्लैंड महिला क्रिकेट टीम की विकेटकीपर बल्लेबाज सारा टेलर ने तो एग्जाइटी की वजह से क्रिकेट से संन्यास लेने और ऑस्ट्रेलिया के तीन खिलाड़ी ग्लेन मैक्सवेल, विल पुकोव्स्की और निक मैडिनसन ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ब्रेक लेना शामिल है। 

इस संबंध में अमेरिका के नेशनल बाक्सकेट वॉल एसोसिएशन(एनबीए) के स्टॉर केबिन लव का कहना है, “हर इंसान इससे गुजरता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हर इंसान अवसादग्रस्त अथवा चिंता का शिकार होता है या फिर किसी ईटिंग डिसऑर्डर या किसी एडिक्शन (लत) के वश में आ जाता है। इसका मतलब यह है कि मानसिक स्वास्थ्य से हर किसी का सामना होता है।”

यहां तक हाल ही में ओलंपिक में 41 साल बाद हाकी में भारत के कास्य पदक जीतने पर 1980 में आखिरी बार ओलंपिक पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम के कप्तान रहे वासुदेव भास्करन ने कहा, “यह जीत वास्तव में भारतीय खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य होने का कमाल है।”