स्वास्थ्य

अमित शाह की तरह किस्मतवाले नहीं रिकवरी के बाद परेशानियों से जूझ रहे लोग

Bhagirath

गृहमंत्री अमित शाह कोविड-19 से रिकवरी के बाद होने वाली परेशानियों के चलते 18 अगस्त को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती हो गए। एम्स के अनुसार, अमित शाह को पिछले चार दिनों से थकान और बदन दर्द है। उन्हें एम्स के पोस्ट कोविड केयर सेंटर में भर्ती किया गया है। गृहमंत्री गुड़गांव के मेदांता अस्पताल से पिछले हफ्ते डिस्चार्ज हुए थे।

भारत में कोरोना संक्रमण के मामले 27 लाख से अधिक हो गए हैं और इनमें से करीब 20 लाख लोग रिकवर हो चुके हैं। रिकवरी के बाद बहुत से लोग अमित शाह की तरह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं लेकिन इनमें से शायद की किसी को पोस्ट रिकवरी देखभाल के लिए अस्पताल की सेवाएं नसीब हुई हैं। डाउन टू अर्थ हाल ही में ऐसे कई लोगों से बात की जो चिकित्सीय भाषा में रिकवर तो गए हैं लेकिन पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए हैं। वे घर में ही हैं और विभिन्न परेशानियों के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं।

अमित शाह का एम्स में भर्ती होना बताता है कि कोविड से रिकवरी के बाद देखभाल कितनी जरूरी है। हालांकि अब तक इस संबंध में कोई गाइडलाइन नहीं बनी है।  केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी राजेश भूषण ने दिल्ली में मीडिया के सामने माना, “कुछ रिकवर मरीजों को सांस, हृदय, लिवर और आंखों से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। हमारे विशेषज्ञ लोगों के मार्गदर्शन के लिए काम कर रहे हैं। वह पता लगा रहे हैं कि दीर्घकाल में लोगों की किस तरह की देखभाल की जरूरत है और वे भविष्य में किस प्रकार की समस्याओं का सामना कर सकते हैं।”

नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने 18 अगस्त को मीडिया को बताया, “बीमारी का एक नया पहलू सामने आ रहा है। वैज्ञानिक और चिकित्सा समुदाय की इस पर नजर है। हम सभी को सचेत रहना होगा कि बाद में भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।” हालांकि उन्होंने यह भी माना कि अभी तक इसका दीर्घकालीन प्रभाव खतरनाक नहीं है। उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे हम इसे अधिक समझेंगे, वैसे वैसे हम इसके बारे में अधिक बता पाएंगे।”

भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वायरस के प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस संबंध में विदेशों में कुछ अध्ययन भी हुए हैं जो बताते हैं रिकवरी के बाद हृदय, फेफड़ों, लिवर, किडनी, मस्तिष्क आदि से जुड़ी परेशानियां सामने आ सकती हैं।

भारत में साइंस एंड इजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) के सहयोग से हुआ अध्ययन बताता है कि रिकवरी के बाद मरीजों को लंबी देखभाल की जरूरत है। इस अध्ययन के लेखकों में शामिल विवेकानंदन गोविंदासामी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कोविड-19 मुख्य रूप से कमजोर इम्युनिटी और उम्रदराज लोगों पर असर डालता है। इस बात की प्रबल आशंका है कि जिन लोगों को पहले से बीमारियां हैं, वे रिकवरी के बाद भी स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों को सामना करेंगे। वह बताते हैं कि बीमारी का वास्तविक परिणाम जानने के लिए रिकवर मरीजों को फॉलोअप अध्ययन बहुत जरूरी है। ऐसे अध्ययन भविष्य में होने वाली बीमारियों का पता लगाएंगे और टीके और दवाओं के विकास में मददगार साबित होंगे।