विकासशील देशों में रह रही करीब एक-तिहाई महिलाएं किशोरावस्था में ही मातृत्व का बोझ उठाने को मजबूर हैं। इन विकासशील देशों में भारत भी शामिल है। अनुमान है कि हर साल जन्म लेने वाले करीब 16 फीसदी बच्चों की मां 19 वर्ष या उससे छोटी उम्र की होती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इसका सीधा असर उनके और जन्मे बच्चे के स्वस्थ, सामाजिक विकास पर पड़ रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से उनके मानवाधिकारों के हनन का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा मंगलवार 05 जुलाई 2022 को जारी रिपोर्ट 'मदरहुड इन चाइल्डहुड: द अनटोल्ड स्टोरी' में सामने आई है।
देखा जाए तो इन किशोरियों की उम्र 19 वर्ष या कई मामलों में तो उससे भी काफी कम होती है। यह एक ऐसी उम्र है जब यह बच्चियां अपने बेहतर भविष्य के सपने बुन रही होती हैं। ऐसे में इनपर पड़ने वाला मातृत्व का बोझ इन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना सकता है।
रिपोर्ट से पता चला है कि जन्म देने सम्बन्धी जटिलताएं इन किशोरियों की मौत और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान का प्रमुख कारण है। लेकिन इसके साथ ही इसकी वजह से बाल-विवाह, हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर भी गंभीर समस्या है। गौरतलब है कि बहुत छोटी उम्र में मां बनने वाली बच्चियों के लिए इसका जोखिम सबसे ज्यादा होता है।
आंकड़ों से पता चला है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हर वर्ष किशोरियों (15 से 19 वर्ष) द्वारा गर्भधारण के 2.1 करोड़ मामले सामने आते हैं। जिनमें से करीब आधे यानी 10 करोड़ अनपेक्षित होते हैं। इन 2.1 करोड़ मामलों में से करीब एक चौथाई यानी 57 लाख मामलों में गर्भपात कर दिया जाता है, जिनमें से अधिकांश असुरक्षित परिस्थितियों में होते हैं। देखा जाए तो यह इन किशोर लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है।
40 के पड़ाव पर पहुंचने तक करीब पांच बच्चों की मां बन चुकी होती हैं यह किशोरियां
यूएन एजेंसी की इस रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं किशोरावस्था में कम उम्र में बच्चों को जन्म देती हैं, उनका किशोरावस्था में ही और बच्चों को जन्म देना आम बात है। पता चला है कि जो बच्चियां पहली बार 14 वर्ष या उससे कम उम्र में मां बनती हैं, उनमें से तीन-चौथाई संख्या उनकी है, जिनके दूसरे बच्चे का जन्म भी किशोरावस्था में ही होता है।
वहीं करीब 40 फीसदी बच्चियां किशोरावस्था पूरी होने से पहले ही तीसरे बच्चे की भी मां बन जाती हैं। वहीं यदि 2015 से 2019 के आंकड़ों को देखें तो यह किशोरियां 40 के पड़ाव पर पहुंचने तक करीब पांच बच्चों की मां बन चुकी होती हैं।
ग्वाटेमाला में एक 16 वर्षीय गर्भवती लड़की की जांच करती नर्स; फोटो: पेट्रीसिया विलोक/ यूनिसेफ
रिपोर्ट के मुताबिक यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो उप सहारा अफ्रीका में किशोरावस्था में मां बनने वाली महिलाओं का औसत सबसे ज्यादा है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में करीब 46 फीसदी महिलाएं किशोरावस्था में ही मातृत्व का बोझ ढोने को मजबूर हैं। वहीं पिछले कुछ दशकों में इस स्थिति में कोई बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा बदतर है स्थिति
वहीं जितने देशों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है उनमें अफ्रीकी देश नाइजर, मोज़ाम्बिक और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। जहां नाइजर में 73 फीसदी महिलाएं अपने 20वें जन्मदिन से पहले मां बन जाती हैं। वहीं मोजाम्बिक में यह आंकड़ा 67 फीसदी और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 66 फीसदी है।
पता चला है कि दुनिया में 18 देश ऐसे हैं जहां आधे से ज्यादा महिलाएं अभी भी किशोरावस्था में मां बन चुकी होती हैं। यह आंकड़ा निम्न और मध्यम आय वाले देशों के छह दशक पहले के औसत से भी ज्यादा है। गौरतलब है कि यह सभी 18 देश उप-सहारा अफ्रीका के हैं। वहीं इस क्षेत्र के बाहर बांग्लादेश में स्थिति सबसे ज्यादा बदतर हैं जहां करीब 48 फीसदी महिलाएं किशोरावस्था में ही मातृत्व के दायित्वों को निभा रहीं हैं।
यह सही है कि वैश्विक स्तर पर कम उम्र और किशोरावस्था में महिलाओं के मां बनने के मामलों में गिरावट के संकेत उत्साहजनक बताए गए हैं, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस दिशा में हो रही प्रगति की रफ्तार अभी भी चिन्ताजनक रूप से बहुत धीमी है। 60 वर्ष पहले के आंकड़ों की बात करें तो करीब 50 फीसदी महिलाएं 20 वर्ष या उससे कम उम्र में मां बन जाती थी। यूएनएफपीए के अनुसार इन मामलों में हर दशक करीब तीन फीसदी की दर से गिरावट आ रही है।
इस बारे में यूएनएफपीए की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम का कहना है कि जब विकासशील देशों में महिलाओं की करीब एक तिहाई आबादी, किशोरावस्था में ही मां बन रही हैं, तो यह स्पष्ट है कि दुनिया किशोरियों की मदद करने में विफल हो रही हैं। ऐसे में यह जरुरी है कि उन तक जल्द से जल्द इस सम्बन्धी जानकारी और सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित हो।
ऐसे में यूएन एजेंसी प्रमुख ने जोर देकर कहा है कि सरकारों को किशोरियों के बेहतर भविष्य के लिए निवेश करना होगा, जिससे उनके लिए अवसर, संसाधनों व कौशल में विस्तार किया जा सके और वो बच्चियां कम उम्र और अनचाहे गर्भ से बच सकें। उनका कहना है कि जब इन लड़कियों को अपने जीवन का रास्ता खुद तय करने का मौका मिलेगा। तब बचपन में ही मां बनने के मामले भी निरंतर कम होते जाएंगें।