स्वास्थ्य

हर 5 सेकंड में हो जाती है एक बच्चे की मौत: यूनिसेफ

यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि 2018 में 62 लाख बच्चे 15 साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही काल के ग्रास में समा गए, जबकि इनमें से 25 लाख बच्चे जन्म के एक महीने के भीतर मर गए

Lalit Maurya

आप दुनिया के किसी भी देश, संस्कृति या जीव को ले लीजिये, हर परिवार के लिए बच्चे के जन्म सबसे सुखद क्षण होता है, जो किसी भी त्यौहार से कम नहीं होता । पर सबसे बड़े दुःख की बात है कि हर 5 सेकंड में यह खुशी के लम्हे किसी के लिए मातम के क्षणों में बदल जाते हैं । वहीं जननी और शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा में दिनों-दिन हो रहे सुधार के बावजूद अभी भी हर 11 सेकंड में कोई नवजात या उसकी मां स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में अपना दम तोड़ देती है|

यूनिसेफ द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2018 में दुनिया भर 62 लाख बच्चे अपनी आयु के 15 वें सोपान पर पहुंचने से पहले ही काल के गाल में समां गए थे। जिनमें से 85 फीसदी बच्चों की मौतें जन्म के पहले पांच वर्षों के भीतर हो जाती है। वहीं 25 लाख बच्चे जन्म के पहले महीने और 40 लाख बच्चे अपना दूसरा जन्मदिन भी नहीं देख पाते। दूसरी ओर  गर्भावस्था और प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं के चलते अकेले वर्ष 2017 में लगभग 290,000 महिलाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। जबकि 53 लाख बच्चों की मौत जन्म के 5 सालों के भीतर हो जाती है, वहीं इनमे से लगभग आधी (47 फीसदी) मौतें तो जन्म के पहले महीने में ही हो जाती हैं ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रसव के तुरंत बाद नवजात बच्चे और उसकी जननी को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि जन्म के बाद के शुरूआती कुछ हफ्ते उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। अनुमान है कि हर वर्ष 28 लाख गर्भवती महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सही पोषण और उचित देखभाल का न मिल पाना होता है । वहीं यदि नौनिहालों का जन्म समय से पूर्व हो जाये तो उनका विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता । या फिर यदि उनमें पोषण की कमी हो या संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो इसके चलते जन्म के पहले महीने के ही भीतर उनकी मृत्यु हो जाती है । दुनिया भर में एक तिहाई नवजात शिशुओं की मौतें अपने जन्म के दिन ही हो जाती है, जबकि बाकी तीन-चौथाई बच्चे जन्म के एक सप्ताह के भीतर ही मर जाते हैं । सबसे बड़े दुःख की बात है कि ऐसे होने वाली मौतों को उचित देखभाल के जरिये टाला जा सकता है, इसके बावजूद आज भी लाखों शिशु और उनको जन्म देने वाली माताएं इन कारणों से असमय मर रही हैं ।

एक तिहाई रह गयी है, प्रसव के दौरान होने वाली मौतें

अभी हाल ही में यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सम्मिलित रूप से जारी रिपोर्ट “लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी, 2019” से पता चला है कि 1990 से 2018 कि अवधि के दौरान शिशु मृत्युदर में उल्लेखनीय रूप से कमी आयी है । वहीं जननी सुरक्षा में भी प्रशंसनीय रूप से सुधार आया है । वर्ष 2000 से लेकर अब तक नवजात बच्चों की असमय होने वाली मौतें लगभग आधी हो गयी हैं, जबकि प्रसव के दौरान होने वाली महिलाओं की मृत्युदर घटकर एक तिहाई रह गयी है । 1990 से 2018 की अवधि में 15 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर में 56 फीसदी की कमी आयी है, जो कि 142 लाख से घटकर 2018 में 62 लाख रह गयी है। जिसमें पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में उल्लेखनीय कमी आयी है, वहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर में 80 फीसदी की गिरावट आयी है।

भारत में भी इस दिशा में प्रशंसनीय सुधार हुआ है, जहां 2018 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर 126.2 से घटकर 2018 में 36.6 रह गयी है। दूसरी ओर 2000 से लेकर 2017 तक जननी मृत्यु दर में 38 फीसदी की कमी आई है। मध्य और दक्षिणी एशिया में 2000 के बाद से मातृ सुरक्षा में सबसे अधिक सुधार देखने को मिला है, जहां जननी मृत्युदर में 60 फीसदी की कमी आयी है। भारत में भी इस दिशा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है । और ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि वैश्विक रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय रूप से सुधार आया है, साथ ही गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर अधिक जोर देने के साथ-साथ, इससे सम्बन्धी इलाज अब जन-जन की पहुंच में आ गया है, और लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है ।

विकासशील देशों में अभी भी है व्यापक सुधार की जरुरत

दुनिया भर में शिशु ओर जननी मृत्युदर में व्यापक असमानता देखने को मिलती हैं, जहां अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र में यह दर दुनिया के बाकी हिस्से से काफी अधिक है, वहां गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों की मृत्यु का जोखिम भी काफी अधिक है। अमीर देशों की तुलना में उप-सहारा अफ्रीका में जननी मृत्युदर लगभग 50 फीसदी अधिक है जबकि जन्म के पहले महीने में शिशुओं की जीवन प्रत्याशा 10 गुना कम है।

आंकड़ों के अनुसार 2018 में, उप-सहारा अफ्रीका में हर 13 में से 1 जन्मे बच्चे की मृत्यु उसके पांचवें जन्मदिन से पहले हो गयी थी जो की यूरोप में एक नवजात के जोखिम से 15 गुना अधिक है, जहां 196 में सिर्फ 1 बच्चे की मृत्यु 5 वर्ष से कम उम्र में होती है।

भारत में भी सुधर रहे है हालात

भारत में 2016 में 8.67 लाख नवजात बच्चों की मौत हो गयी थी, जो 2017 में घटकर 8.02 लाख हो गई। शिशु स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह एक उल्लेखनीय सफलता है, लेकिन वैश्विक रूप से देखा जाये तो यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी देश से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जहां वर्ष 2017 में  6.05 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई थी, वहीं  5-14 आयु वर्ग के बच्चों में यह संख्या 1,52,000 रिकॉर्ड की गयी थी । पिछले पांच वर्षों में शिशु जन्मदर और मृत्युदर में लगभग समानता आ गयी है, जबकि आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1990 में दुनिया के 18 फीसदी बच्चे भारत में पैदा हुए थे, लेकिन मरने वालों की संख्या  27 फीसदी थी।

आंकड़े बताते हैं कि 1990 में भारत की शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 129 थी। जो 2005 में घटकर 58,  2016 में 44 और 2017 में घटकर 39 रह गई है । वहीं लड़के और लड़कियों की मौत का अंतर भी घट रहा है । 1990 में बालिकाओं की मृत्युदर, बालकों से 10 फीसदी अधिक थी, जो कि 2017 में घटकर 2.5 फीसदी ही ज्यादा रह गयी है । जो किपीने के स्वच्छ पानी, साफ-सफाई, उचित पोषण और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं में निरन्तर हो रहे सुधार का नतीजा है।