आगामी 23 जुलाई से जापान की राजधानी टोक्यो में होने जा रहे ओलंपिक खेल और ठीक इसके एक माह बाद पैरा ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले लगभग 16 हजार से अधिक खिलाड़ियों का स्वास्थ्य दांव पर है। कारण कि भाग लेने वाले बड़ी संख्या में ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिन्हें अब तक कोरोना वैक्सीन नहीं लगी है। क्योंकि उनकी उम्र ही 18 साल से कम है। ऐसे खिलाड़ी अधिकतर जिमनास्टिक, तैराकी और 12 वर्ष से कम उम्र के गोताखोर शामिल हैं। जापान इसी माह अकेले ओलंपिक खेलों का ही आयोजन नहीं कर रहा है बल्कि इस ओलंपिक खेल के खत्म होने के ठीक एक माह बाद वह पैरा ओलंपिक खेलों की भी मेजबानी करने जा रहा है।
कहने का अर्थ कि एक साथ उसे अगले डेढ़ माह में लगभग 16 हजार से अधिक एथलीट व उनके लगभग 11 हजार सपोर्ट स्टॉफ को भी कोरोना महामारी से बचाने की जिम्मेदारी है। ओलंपिक में भाग लेने जा रहे 200 सौ से अधिक देशों के 11 हजार एथलीट और लगभग 4000 सपोर्ट स्टॉफ लगभग दो हफ्ते के लिए एकत्रित होंगे। और इसके ठीक एक माह बाद पैराओलंपिक में भाग लेने वाले 5000 से अधिक एथलीट और उनके 2500 से अधिक सपोर्ट स्टाफ को कोरोना महामारी से बचाना कम बड़ी चुनौती नहीं होगी।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) टोक्यो 2020 प्लेबुक के अनुसार, उसका एक मात्र उद्देश्य प्रतिभागियों और जापान के लोगों को SARS-CoV-2 संक्रमण से बचाना है। इससे बचने के लिए बने दिशा-निर्देशों में ओलंपिक एथलीटों को अपने स्वयं का चेहना कवर करना, कोविड -19 का टीका लगाना और जापान में आने के बाद आवश्यक समय के अंतराल से कोविड परीक्षण से गुजरना शामिल है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जब आईओसी ने मार्च, 2020 में टोक्यो ओलंपिक को स्थगित कर दिया था, तब जापान में वैश्विक स्तर पर कोविड के 3,85,000 सक्रिय मामलों के मुकाबले केवल जापान में कोविड-19 के के मात्र 865 सक्रिय मामले दर्ज किए गए थे। यह मान लिया गया था कि 2021 में महामारी को नियंत्रित किया जाएगा या तब तक टीकाकरण व्यापक हो जाएगा। आज 14 महीना बीतने को हैं और अब 70,000 से अधिक सक्रिय मामलों के साथ जापान आपातकाल की स्थिति में है। अभी वैश्विक स्तर पर 19 मिलियन सक्रिय मामले दर्ज हैं। यहां सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि कोविड-19 के वेरिएन्ट्स लगातार अपना स्वरूप बदल रहे हैं और तेजी से उनका प्रसार हो रहा है। जहां तक अकेले जापान में टीके लगाने की बात है तो उसके भी बहुत उत्साहजनक आंकड़े नहीं हैं। जापान की कुल आबादी का अब तक मात्र पांच प्रतिशत से भी कम लोगों को टीका लगाया है। इन आंकड़ों की यदि तुलना यदि विश्व में अर्थिकतौर पर संपन्न और विकसित देशों से की जाए वह बहुत ही कम है।
हालांकि यह सही है कि फाइजर और बायोएनटेक ने सभी ओलंपिक एथलीट के लिए टीके दान करने की पेशकश की है, लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कंपनियों का प्रस्ताव यह सुनिश्चित नहीं करता है कि सभी एथलीटों को ओलंपिक से पहले टीके लग ही जाएंगे, क्योंकि वैक्सीन की उपलब्धता दुनिया के 100 से अधिक देशों में अब भी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा कुछ एथलीट यह सोचकर टीका नहीं लगाया है कि कहीं इसके कारण उनके प्रदर्शन पर असर न पड़ जाए या कुछेक ने अपनी नैतिकता का हलावा देकर नहीं लगाया है। हालांकि यह सौ फीसदी सही है कि दुनिया के कई देशों ने अपने एथलीटों को जो ओलंपिक खेलों में भाग लेने जा रहे हैं, उन्हें टीका लगाया है। लेकिन यहां भी एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है कि क्योंकि अब भी अधिकांश देशों में 15 से 17 वर्ष की आयु के किशोरों को टीका नहीं लगाया जा रहा है और 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को टीका नहीं लगाया जा सकता है। नतीजतन इससे किशोर एथलीट जिनमें जिमनास्ट, तैराक और 12 वर्ष से कम उम्र के गोताखोर आदि शामिल हैं। इसके अलावा समस्या यह है कि सभी खिलाड़ियों के नियमित परीक्षण के अभाव में प्रतिभागी ओलंपिक के दौरान संक्रमित हो सकते हैं (ध्यान रहे कि कि टोक्यो ओलंपिक में कोविड-19 का परीक्षण करना सभी देशों के लिए अलग-अलग पैमाने हैं ) और 200 से अधिक देशों के खिलाडी खेलों के समापन के बाद जब अपने स्वदेश लौटेंगे तो वे अपने देशों में जोखिम पैदा कर सकते हैं।