स्वास्थ्य

साल के अंत तक 8.6 करोड़ बच्चों को गरीबी में धकेल देगा कोरोनावायरस

कोरोना महामारी से आए आर्थिक संकट के चलते पहले से गरीबी का बोझ ढो रहे बच्चों की संख्या बढ़कर 67.2 करोड़ हो सकती है

Lalit Maurya, Madhumita Paul

साल के अंत तक करीब 8.6 करोड़ बच्चे कोरोनावायरस के चलते गरीबी के हालात झेलने को मजबूर हो जाएंगे| यह नया विश्लेषण सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ द्वारा किया गया है| जिससे पता चला है कि इस महामारी के चलते जो आर्थिक संकट आएगा उसके कारण 15 फीसदी और करीब 8.6 करोड़ बच्चे गरीबी में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो जाएंगे| ऐसे में पहले से ही गरीबी में जी रहे बच्चों की संख्या बढ़कर 67.2 करोड़ पर पहुंच जाएगी|

जिनमें से लगभग दो तिहाई बच्चे उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में रहते हैं। इस विश्लेषण के अनुसार इन बच्चों को बचने के लिए त्वरंत कार्रवाही करने की जरुरत है| जिससे वित्तीय संकट का सामना कर रहे इनके परिवारों को बचाया जा सके| इस महामारी से जो आर्थिक संकट आएगा उसका सबसे ज्यादा असर भारत जैसे गरीब और माध्यम आय वाले देशों पर पड़ेगा| रिपोर्ट के अनुसार महामारी के कारण यूरोप और मध्य एशिया में गरीब बच्चों की संख्या में करीब 44 फीसदी का इजाफा हो जाएगा| जबकि दक्षिण अमेरिका और कैरिबियाई देशों में यह वृद्धि करीब 22 फीसदी की होगी|

पहले से गरीबी झेल रहे परिवारों के बच्चों पर पड़ेगी सबसे ज्यादा मार

विश्व बैंक का अनुमान है कि कोरोनावायरस के चलते 4 से 6 करोड़ लोग गरीबी के चलते विषम परिस्थितियों को झेलने पर मजबूर हो जाएंगे| यह वो आबादी जो प्रति दिन 143 रूपए से कम की आय पर गुजर बसर करती है| जबकि यदि संयुक्त राष्ट्र के आईएफपीआरआई गरीबी मॉडल को देखें तो उसके अनुसार यह आंकड़ा 8.4 से 13.2 करोड़ के बीच होगा|

सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ के अनुसार इस महामारी से उत्पन्न वैश्विक आर्थिक संकट लोगों पर दो तरफा असर डालेगा| एक तरफ जहां रोजगार के छिनने से आय ख़त्म हो जाएगी| जिसके चलते उनका परिवार भोजन, पानी सहित अन्य बुनियादी जरूरतों का खर्च नहीं उठा पाएंगे| साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी इसका असर पड़ेगा| दूसरी तरफ इसके चलते बाल विवाह, हिंसा और बच्चों के शोषण का खतरा बढ़ जाएगा|

यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनेरिटा फोर के अनुसार "इस महामारी ने एक ऐसा सामाजिक-आर्थिक संकट पैदा कर दिया है| जिसके कारण दुनिया भर में परिवारों के सामने साधनों की भारी कमी आ गई है| परिवारों को जिस तरह से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है| उसके चलते बच्चों की गरीबी को दूर करने के लिए जो वर्षों से प्रयास किये गए थे यह उसके असर को विफल कर सकता है| इस संकेत के कारण बच्चे बुनियादी जरूरतों के लिए भी तरस रहे हैं| यदि इससे निपटने के लिए कोई ठोस कदम न उठाये गए तो यह अनगिनत परिवारों को गरीबी में धकेल देगा| जबकि जो पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे थे उनपर इसका ऐसा असर पड़ेगा जो पहले कभी नहीं देखा गया|”

क्या ऐसे में सामाजिक सुरक्षा से जुडी योजनाएं और कार्यक्रम हो सकते हैं मददगार

इस महामारी के फैलने से पहले भी दुनिया के दो-तिहाई बच्चे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से दूर थे| ऐसे में जो देश पहले ही संघर्ष और हिंसा से ग्रस्त हैं उनमें यह संकट अस्थिरता उत्पन्न कर देगा| जिसके चलते और ज्यादा परिवार गरीबी की मार झेलने को मजबूर हो जाएंगे| मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी क्षेत्र इसकी सबसे ज्यादा मार झेल रहा है| वहां आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चे बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं| जहां युवाओं में बेरोजगारी सबसे ज्यादा है| जबकि क्षेत्र के आधे से ज्यादा बच्चे गरीबी को चौतरफा मार का शिकार हैं|

ऐसे में बच्चों पर पड़ रहे कोरोनावायरस के असर को सीमित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कार्यक्रमों में तेजी लाने की जरुरत है| सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ ने इससे निपटने के लिए इन योजनाओं में बड़े पैमाने पर विस्तार करने की सलाह दी है| इसके अंतर्गत सीधे तौर पर बच्चों को आर्थिक मदद, स्कूलों में भोजन का प्रावधान, और अन्य लाभ देने सम्बन्धी योजनाएं शामिल हैं| जिसकी मदद से वर्त्तमान में पड़ रही वित्तीय जरूरतों को पूरा किया जा सकता है| साथ ही भविष्य में इस तरह के खतरों से निपटने के लिए एक मजबूत आधारशिला रखी जा सकती है|