कोयला खदानों की खुदाई अब पुरुषों तक सीमित नहीं रही, अब कोयला खदानों में महिलाएं भारी मशीनों को संचालित करती आसानी से नजर आती हैं और भूमिगत कोयला खदानों में महिलाएं तमाम खनन गतिविधियों जैसे क्रेन, फावड़ा, ड्रिल, पंखा संचालन जैसी चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं को आसानी से निभा रही हैं
कोयला खनन ऐसा क्षेत्र है जहां आज भी पुरुर्षों का ही बोलबाला है, लेकिन अब इस क्षेत्र में महिलाओं ने भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है। यह सेंधमारी देश के सबसे बड़े कोयला खनन क्षेत्र यानी आसमनसोल और धनबाद में आसानी से देखी जा सकती है। एक बारगी इन इलाकों को देखें तो लगेगा कि यह कोई बीहड है लेकिन इस बीहड़ में केवल प्लाश के फूल ही इस की भयावहता को कम कर रहे होते हैं।
इस बीहड़ में रातदिन रह-रह कर विस्फोटों की आवाजें जब तब आती रहती है। ये आवाजें आ रही हैं महिला कामगारों के हाथों से तोड़े जाने वाले कोयले के पत्थरों की। इस क्षेत्र में वर्तमान में 3,227 महिला कामगार कोयले की खनन में लगी हुई हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र जहां महिलाओं की भागीदारी विगत में न के बराबर थी, लेकिन अब पिछले डेढ़ दशक में यह तस्वीर बदल चुकी है। और अब इन कोयला खदानों में जहां-तहां महिला कामगार कंधों पर फावड़ा- गैती रखे और सर पर हेलमेट लगाए खदानों में कोयला खनन करती हुई दिख जाएंगी।
इनमें अधिकांशत: महिलाएं पश्चिम बंगाल और झारखंड से हैं। आसानसोल और धनबाद की इन बदरंग खदानों के बीहड़ को केवल पलाश के फूलों ही थोड़े बहुत रंगीन करते दिख पड़ते हैं। और अब इस रंगीनियत के बीच इलाके की कठोर कोयले की चट्टानो को भारी मशीनरी के द्वारा तोड़ती महिलाएं समाज की लैंगिक रूढ़िवादिता को भी तोड़ती नजर आ रही हैं।
ईस्टर्न कोल इंडिया लिमिटेड ( ईसीएल ) कंपनी पश्चिम बंगाल और झारखंड में काम करती है। यह कोल इंडिया लिमिटेड ( सीआईएल ) की सहायक कंपनी है। ध्यान रहे कि सीआईएल लगभग 20,000 महिलाओं को रोजगार देती है और अपनी इस संख्या के बल पर यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में महिलाओं की शीर्ष नियोक्ता कंपनी है।
हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कंपनी के कुल 2.4 लाख कार्यबल का यह मात्र आठ प्रतिशत है। और सही अर्थों में देखा जाए तो ऑन फील्ड खनन गतिविधियों में पारंपरिक रूप से पुरुषों की भागीदारी हमेशा से अधिक रही है, इस हिसाब से महिलाओं की हिस्सेदारी अभी भी कम ही आंकी जाएगी है। लेकिन इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि पुरुषों का यह गढ़ अब धीरे-धीरे टूट रहा है।
द हिंदु में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोलफील्ड्स ओपन खदान में सोनपुर बाजारी के विशाल क्षेत्र में जहां एक खुले गड्ढे से भारी मात्रा में कोयला निकाला जाता है। यहां पर 49 वर्षीय बिंदू पासवान एक विशाल मशीनरी पर चढ़कर कड़ी मेहनत मशक्कत से कच्चा कोयला निकाल रही है।
क्षेत्र के अधिकारी ने बताया कि यह अकेले 20 मिनट में 60 टन का एक डंपर भर देती हैं। अधिकारी ने आगे कहा कि इस महिला कामगार की हमारे सबसे अच्छे कर्मचारियों में गिरती होती है। बिंदू पासवान खुली कोयले की खदानों में से कच्चा कोयला निकालने वाली कई ऑपरेटरों में से एक हैं, जो भारी मशीनरी का उपयोग करते कोयला निकालती हैं। सीआईएल के अधिकारी कहते हैं कि कंपनी के पास कई ऐसी महिला कामगार हैं जो भारी एचईएमएम ( हैवी अर्थ मूविंग मशीनरी ) जैसी मशीनरी को बतौर ऑपरेटर आपरेट करती हैं।
बिंदु केवल नौवीं कक्षा पास हैं लेकिन अपने पति की मृत्यु के बाद आसनसोल स्थित ईसीएल में काम शुरू किया। उन्हें यह नौकारी अपने पति की मृत्यु होने कारण दी गई थी और चार बेटियों की मां ने अपने पति की तरह कंपनी के कार्यालय में नौकरी करने के बजाय खदान में काम करना अधिक मुनासिब समझा। बिंदु कहती हैं कि उनकी बेटियों को उन पर गर्व है।2010 में उन्हें नौकरी देने के तीन साल बाद ही उनके हाथों में फावड़ा थमा दिया गया और उनकी ड्यूटी कोयला खदानों लगा दी गई।
अपने इस काम पर वह कहती हैं कि यह काम मुझे स्वतंत्रता प्रदान करता है और एक पहचान भी देता है। हालांकि बिंदु अकेली ऐसी महिला नहीं हैं। पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे झारखंड के धनबाद जिले के बरमुरी खुली खदान में लगभग छह महिला ऑपरेटर और ड्रिल ऑपरेटर काम कर रही हैं। अमोती मेझियान और मालती मेजियान दोनों की उम्र 30 के आसपास है और ये खुली खदान में कठारे चट्टानों पर लगातार बेलचे चला रही हैं।
यही नहीं बीच-बीच में भारी मशीनरी भी आपरेट करती नजर आती हैं। वह अपने इस काम पर कहती हैं कि शुरुआत में इतनी भारी मशीनरी को चलाना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन अब सालों साल के अभ्यास के बाद हमें इसकी आदत सी पड़ गई है। इसी खुली खदान में कोई सौ मीटर की दूरी पर साड़ी पहने सरस्वती मेझियान और बबानी भुनिया एक विशाल ड्रिलिंग मशीन चला रही हैं। यह मशीन कठोर सतह को खोदने में मदद करती हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि यहां अधिकतर महिलाएं सुबह की शिफ्ट में काम करना पसंद करती हैं। यह शिफ्ट सुबह छह से दोपहर दो तक की होती है।
मालती, सरस्वती और अन्य कई महिलाओं ने 2019 में तो भारतीय खनन क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति का रास्ता खोला। ध्यान रहे कि 1952 के भारतीय खान अधिनियम ने भूमिगत खदानों में महिलाओं के काम करने पर पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था। यही नहीं शाम सात बजे से सुबह छह बजे के बीच खुली खदानों में महिलाओं की तैनाती पर रोक लगा दी गई थी। यह प्रतिबंध व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षण लेने वाली महिलाओं और महिला खनन इंजीनियरों को भी प्रभावित करता था।, जिसके परिणामस्वरूप काम के स्तर पर यह जेंडर पूर्वाग्रह होता था।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2019 में केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिए यह प्रतिबंधित क्षेत्र खोल दिया और खदान मालिकों या कंपनी के प्रबंधन को भूमिगत कोयला खदानों में महिलाओं के रोजगार की सुविधा के लिए मानक तैयार करने के लिए कहा। ईसीएल का कहना ह कि आज की तारीख में महिला कर्मचारियों को भूमिगत खदानों में समूहों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
महिला कर्मचारियों ने खनन गतिविधियों जैसे क्रेन, फावड़ा, ड्रिल, पंखा संचालक सहित और अन्य में विभिन्न चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं का न केवल निभा रही हैं बल्कि अपनी क्षमता को भी साबित किया है। भूमिगत खदानों में काम करने से विभिन्न चुनौतियाँ सामने आती हैं। पोलोमी मुसिब कोलकाता के पास भारतीय इंजीनियरिंग विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान से खनन में बीटेक पास करने वाली पहली महिला खनन इंजीनियर थीं। वह 2011 में सीआईएल में भर्ती की गई पहली महिला खनन इंजीनियर भी थीं। मुसिब वर्तमान में बतौर एक खनन इंजीनियर, अंतरा मुखर्जी और प्रियंका चौधरी के साथ नरसमुडा कोलियरी क्षेत्र में स्थित एक भूमिगत खदान में कार्यरत हैं।
ध्यान रहे कि कानूनी प्रतिबंध हटने के बाद मुसिब को अपना प्रशिक्षण पूरा करने के लिए नरसमुडा कोलियरी में तैनात किया गया था। नरसमुडा एक भूमिगत खदान है, जहां सतह से 170 मीटर नीचे से कोयला निकाला जाता है। वह अपने काम के बारे में कहती हैं कि मुझे रोज खान के नीचे जाना पड़ता है और भूमिगत खदनों के अंदर मंद रोशनी वाली सुरंगों में गर्मी का जिक्र करते हुए कहा कि जब मैं ऊपर आती हूं और हेलमेट हटाती हूं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने मुझ पर घड़ों पानी उड़ेल दिया हो।
उन्होंने कहा, "लेकिन मुझे यह काम बहुत पसंद है। यह कुछ ऐसा है जो मैं अपने पूरे जीवन करना चाहती थी। वह कहती हैं कि जब आप परंपराओं की देहरी लांघते हैं तो और इसके बाद जो आपको पहचान मिलती है, यह हम सब महिला कामगारों के लिए एक उत्प्रेरक का काम करता है।"