स्वास्थ्य

चमगादड़ में मिला सार्स-कॉव-2 जैसा नया वायरस 'खोस्टा-2', इंसानों को कर सकता है संक्रमित

Lalit Maurya

अमेरिकी वैज्ञानिकों को रूसी चमगादड़ में सार्स-कॉव-2 यानी कोविड-19 जैसा ही एक नया वायरस 'खोस्टा-2' मिला है जोकि इंसानों को संक्रमित कर सकता है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने यह भी जानकारी दी है कि यह वायरस यदि फैल जाता है तो इसे मौजूदा टीकों से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि मौजूदा टीके इस वायरस को रोकने के लिए कारगर साबित नहीं हो रहे। 

वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के पॉल जी एलन स्कूल फॉर ग्लोबल हेल्थ के वैज्ञानिकों ने चमगादड़ में पाए गए इस वायरस का अध्ययन किया है और पाया है कि यह वायरस इंसानी कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्लोस पैथोजेन्स में प्रकाशित हुए हैं। शोध के मुताबिक यह वायरस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और सीरम दोनों के लिए प्रतिरोधी है।

गौरतलब है कि दुनिया अब तक कोविड-19 के खतरे से पूरी तरह नहीं उबरी है। ऐसे में इस तरह के नए वायरसों का मिलना पूरी मानव जाति के लिए बड़ा खतरा है। वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि वायरस 'खोस्टा-2' और सार्स-कॉव-2 दोनों वायरस की एक ही उप-श्रेणी सर्बेकोवायरस से सम्बंधित हैं।

इस बारे में वायरोलॉजिस्ट और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता माइकल लेतको का कहना है कि शोध में सामने आया है कि एशिया के बाहर वन्यजीवों में मिलने वाले यह सर्बेकोवायरस न केवल सार्स-कॉव -2 के खिलाफ जारी टीकाकरण अभियान बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं। गौरतलब है कि यह वायरस 'खोस्टा-2' पश्चिम रूस में पाया गया था। 

पश्चिमी रूस में खोजा गया था वायरस 'खोस्टा-2'

देखा जाए तो हाल के वर्षों में सैकड़ों सर्बेकोवायरस खोजे गए हैं, मुख्य रूप से एशिया में चमगादड़ों में यह वायरस बड़ी संख्या में पाए गए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश मानव कोशिकाओं को संक्रमित करने में सक्षम नहीं हैं।

खोस्टा-1 और खोस्टा-2 वायरस जिन्हें 2020 के अंत में रूसी चमगादड़ों में खोजा गया था उनके बारे में भी शुरू में ऐसा ही लग रहा था कि यह वायरस मनुष्यों के लिए खतरा नहीं हैं। हालांकि शोध से पता चला है कि यह वायरस इंसानों को भी संक्रमित कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं को पता चला है कि यह वायरस सार्स-कॉव-2 की तरह ही अपने स्पाइक प्रोटीन का उपयोग एक रिसेप्टर प्रोटीन से जोड़कर कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए कर सकता है, जिसे एंजियोटेंसिन-कन्वर्टिंग एंजाइम 2 (ऐस2) कहा जाता है, जो पूरी मानव कोशिकाओं में पाया जाता है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं को अध्ययन से यह भी पता चला है कि मौजूदा टीके इस वायरस से बचाव नहीं कर सकते हैं।

ऐसे में शोधकर्ता लेतको के अनुसार इस वायरस की यह खोज सामान्य रूप से किसी एक ज्ञात सार्स-कॉव-2 के रूपों के जगह, सर्बेकोवायरस से बचाव के लिए सार्वभौमिक टीके विकसित करने की जरूरत पर प्रकाश डालती है।

उनका कहना है कि दुर्भाग्य से हमारे मौजूदा टीके किसी विशिष्ट वायरस से बचाव के लिए डिजाईन किए गए हैं, जिन्हें हम जानते हैं। लेकिन वायरस की यह एक ऐसी सूची है जो हमेशा बदलती रहती है।

गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर अब तक पहले ही कोविड-19 के 62 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें से 65 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 60 करोड़ से ज्यादा इस महामारी से उबर चुकें हैं लेकिन इसके बावजूद उनमें से कई अभी भी लॉन्ग कोविड के खतरे का सामना कर रहे हैं।

भारत में भी इस महामारी ने कम कहर नहीं ढाया है। देश में अब तक कुल 4.46 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं, जिनमें से 528,530 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 4.4 करोड़ लोग ठीक हो चुके हैं।