स्वास्थ्य

कोविड-19 वैक्सीन पर पीएम का यूटर्न, सुप्रीम कोर्ट के सवाल का जवाब

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश चंद्रचूड़, राव और भट की पीठ पहले ही केंद्र सरकार से टीकाकरण नीति की समीक्षा करने और 13 जून तक हलफनामा दाखिल करने को कह चुकी है।

Richard Mahapatra

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्‍ट्र को समर्पित एक टीवी संबोधन में घोषणा की है कि केंद्र सरकार कोविड-19 के खिलाफ लगने वाले कुल टीकों में से 75 फीसदी खरीदेगी और राज्‍यों को मुफ्त में देगी। इस घोषणा के साथ ही अब यह केंद्र सरकार की जिम्‍मेदारी हो गई है कि इस वर्ष के अंत तक 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को टीके लगाने का वादा पूरा किया जाए। बाकी बचे 25 फीसदी टीके लगाने का काम निजी कंपनियों को सौंपा जाएगा। 

सिर्फ 50 दिन में ही नरेंद्र मोदी को कोविड-19 टीके को लेकर देश की रणनीति बदलनी पड़ी। इस नई रणनीति की ही तरह पिछली रणनीति को भी मोदी की अनुमति मिली थी और उन्‍होंने देश के नाम एक संदेश देकर इसकी घोषणा की थी। पिछले 50 दिनों में, महामारी की दूसरी लहर से 1,50,000 लोगों की जान गई है।  

19 अप्रैल, 2021 को मोदी की अध्‍यक्षता वाली एक बैठक में यह तय हुआ कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को 1 मई से वैक्‍सीन लगाई जाएगी। इसके तहत तकरीबन 60 करोड़ लोगों को वैक्‍सीन लगती। 1 मई से प्रभावी होने वाले राष्‍ट्रीय कोविड-19 वैक्‍सीनेशन प्रोग्राम की लिबरलाइज्‍ड एंड एक्‍सेलीरेटिड फेज-3 स्‍ट्रेटजी के तहत लिया गया यह एक अहम फैसला था। 

इसके तहत वैक्‍सीन निर्माताओं को यह अनु‍मति मिली थी कि वे सेंट्रल ड्रग लैबोरेटरी की तरफ से हर महीने रिलीज होने वाली अपनी वैक्‍सीन में से 50 फीसदी भारत सरकार को सप्‍लाई कर सकेंगी और बाकी 50 फीसदी को राज्‍य सरकारों और खुले बाजारों में सप्‍लाई किया जाएगा। 

इस रणनीति ने वैक्‍सीन बाजार को प्रतिस्‍पर्धात्‍मक बना दिया। कई राज्‍यों ने वैक्‍सीन की कमी दर्ज कराई और वैक्‍सीन पाने के लिए ग्‍लोबल टेंडरों का भी सहारा लिया लेकिन उन्‍हें सकारात्‍मक नतीजे नहीं मिले। इसके चलते कई वैक्सिनेशन केंद्र बंद करने पड़े और वैक्सिनेशन ड्राइव में साफ तौर पर गिरावट दिखाई दी। 

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में वैक्सिनेशन प्रोग्राम का सही प्रबंध नहीं कर पाने के लिए राज्‍य सरकारों को जिम्‍मेदार ठहराया। खासतौर से उन गैर-भाजपा शासित राज्‍यों को जिन्‍होंने हाल ही में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि वैक्‍सीन का इंतजाम करने के लिए केंद्र सरकार को कदम उठाने चाहिए। पीएम ने कहा कि राज्‍यों की विफलता के कारण केंद्र सरकार को समग्र वैक्सीनेशन ड्राइव को अपने अंतर्गत लेना पड़ा।

उन्‍होंने कहा- ‘इस साल 16 जनवरी से लेकर अप्रैल के अंत तक, भारत का टीकाकरण अभियान प्रमुख रूप से केंद्र सरकार के निरीक्षण में ही चला है, अनुशासन का पालन करते हुए भारत के सभी नागरिक अपनी बारी आने पर टीका लगवा रहे थे… इसी बीच कई राज्‍य सरकारों ने दोबारा कहा कि वैक्‍सीन लगाने के काम का विकेंद्रीयकरण करके इसे राज्‍यों के हवाले कर देना चाहिए।

उन्‍होंने कहा, ‘कई मांगे उठी थी कि राज्‍यों को अपने मुताबिक कोविड प्रबंधन का अधिकार मिलना चाहिए, धीरे-धीरे वे मांगे बढ़ाने लगे। हमने उनकी मांगे मान लीं। राज्‍यों ने वैक्‍सीन के विकेंद्रीयकरण की मांग की, आयु वर्ग पर सवाल उठाए, और यह सवाल भी उठाया कि वरिष्‍ठ नागरिकों को पहले टीका क्‍यों लगाया जा रहा है। इस बारे में काफी सोच-विचार करने के बाद, हमने टीकाकरण के तरीके में बदलाव किया और 25 फीसदी काम राज्‍यों को सौंप दिया। अब राज्‍यों को समझ आ रहा है कि यह काम कितना चुनौतीपूर्ण है।

लेकिन अगर पिछले दो हफ्तों के घटनाक्रम को देखा जाए तो, लोगों की नजरों में और सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक भी, केंद्र सरकार की तरफ से टीकाकरण अभियान को पूरी तरह अपने अंतर्गत लेना और प्रभावी रूप से इसे मुफ्त बनाना, एक सुनियोजित जवाब जैसा नजर आता है। खासतौर से सुप्रीम कोर्ट के लिए तो यह जवाब के ही जैसा लग रहा है, जो मोदी द्वारा अब अस्‍वीकार कर दी गई 19 अप्रैल की टीकाकरण रणनीति को लेकर लगातार सवाल उठा रहा है। 

31 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने कोविड और सरकारी प्रतिक्रियाओं पर सुओ मोटो केस की सुनवाई की थी। इसमें कोर्ट ने 19 अप्रैल की रणनीति के तहत केंद्र और राज्‍य सरकारों के लिए वैक्‍सीन के दो अलग दाम रखने को लेकर पहली बार केंद्र सरकार की सोच पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने पूछा था कि, ‘केंद्र सिर्फ 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए ही वैक्‍सीन का इंतजाम क्‍यों कर रहा है, उससे कम के उम्र के लिए क्‍यों नहीं।’ जब कोर्ट को जवाब दिया गया कि केंद्र सरकार ने 18 से 45 वर्ष की आयुसीमा में सिर्फ 50 फीसदी आबादी के लिए रेट फिक्‍स किया है, तो कोर्ट ने पूछा, ‘क्‍या हम कह सकते हैं कि 18 से 45 वर्ष की आबादी में से आधे लोग वैक्‍सीन खरीद पाएंगे? बिल्‍कुल भी नहीं।’ 

दो अलग कीमतों पर वैक्‍सीन बेचने की केंद्र सरकार की रणनीति पर पहले से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने 2 जून को सरकार से फिर एक मुश्‍किल सवाल पूछा। कोर्ट ने पूछा कि सरकार इस बात को स्‍पष्‍ट करे कि 2021-22 के बजट में टीकाकरण के लिए तय किए गए 35,000 करोड़ रुपये कैसे खर्च किए गए हैं, या अगर इन्‍हें खर्च किया जाना है तो कैसे किया जाएगा। 

कोर्ट ने आदेश दिया कि, ‘लिबरलाइज्‍ड वैक्सिनेशन पॉलिसी के तहत केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह स्‍पष्‍ट करे कि इन फंड्स को कहां खर्च किया गया है और 18 से 44 वर्ष के लोगों को वैक्‍सीन लगाने में इनका उपयोग क्‍यों नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा, ‘मौजूदा लिबरलाइज्‍ड वैक्सिनेशन पॉलिसी राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदेशों और निजी अस्‍पतालों को अनुमति देती है कि वे  सेंट्रल ड्रग लैबोरेटरी द्वारा पारित किए गए मासिक डोज में से 50 फीसदी को पूर्व निर्धारित रेट पर खरीद सकते हैं। इस पॉलिसी के समर्थन में तर्क इस उम्‍मीद से दिए जा रहे हैं कि इससे प्रतिस्‍पर्धा बढ़ेगी, जिससे अधिक वैक्सीन बनाने वाली निजी कंपनियां आगे आएंगी और अंतत: वैक्‍सीन की कीमत कम हो पाएगी।’

प्रत्‍यक्ष रूप से, दोनों वैक्‍सीन निर्माताओं के पास मोलभाव करने के लिए दो ही कारण थे- कीमत और मात्रा, जिन दोनों को ही केंद्र सरकार की तरफ से पूर्वनिर्धारित किया गया है। ऐसे में प्रतिस्‍पर्धा बढ़ाने के लिए वैक्‍सीन के दाम बढ़ाने की अनुमति के पक्ष में दिया गया केंद्र सरकार का तर्क संशय के घेरे में आ रहा है। 

इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की तरफ से दिए गए तर्क से, कि उसने वैक्‍सीन की कीमतें अपने लिए कम इसलिए रखी हैं ताकि वह बड़ी मात्रा में वैक्‍सीन खरीद सके, लेकिन सवाल खड़े हो रहे हैं सेंट्रल ड्रग लैबोरेटरी की 100 फीसदी मासिक डोज खरीदने के लिए इसी तर्क को क्‍यों नहीं लगाया जा रहा है।’ 

सुप्रीम कोर्ट ने कठोर राय देते हुए कहा कि, ‘केंद्र सरकार की यह नीति जो 18 से 44 वर्ष के सभी लोगों को मुफ्त में वैक्‍सीन नहीं दे रही है, वह मनमानी और अतार्कि‍क है।

यहां तक कि जस्टिस डी वाई चंद्रचूड, एल नागेश्‍वर राव और एस रविंद्र भट की बेंच ने केंद्र सरकार को य‍ह निर्देश दिया कि, ‘जो चिंताएं प्रकट की गई हैं, उन्‍हें ध्‍यान में रखते हुए वैक्सिनेशन पॉलिसी के बारे में नए सिरे से विचार करें।’ कोर्ट ने इसके लिए दो सप्‍ताह के अंदर या 13 जून से पहले इस संबंध में याचिका दायर करने की डेडलाइन भी तय की थी।  

सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने राज्‍यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भी यह कहा कि वे याचिका दाखिल करके बताएं कि वे अपनी आबादी को मुफ्त में टीका लगा रहे हैं या नहीं। कई राज्‍य अपने लोगों को मुफ्त में टीका लगा रहे हैं या उन्‍होंने मुफ्त में टीका लगाने का वादा किया है।

जिस टीकाकरण रणनीति का अब तक मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में जोरदार तरीके से बचाव कर रही थी, उस पर सरकार का बदला हुआ रुख सुप्रीम कोर्ट के न्‍यायाधीशों द्वारा दी गई डेडलाइन का जवाब हो सकता है।