7 मार्च, 2022 को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बयान दे रहे थे कि देश में अब प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर फीस ली जाएगी, लगभग उसी समय उत्तराखंड के एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में सरकारी फीस पर पढ़ाई करने वाले एमबीबीएस के 140 छात्रों को लाखों रुपये बकाया फीस जमा करने के आदेश दिये जा रहे थे। छात्रों को यह भी कहा गया है कि बिना बकाया फीस जमा किये उन्हें अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
युद्ध की विभीषिका के बीच यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर वापस लौट रहे छात्र इन दिनों देशभर में चर्चा के केन्द्र में हैं। इस छात्रों के पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह के तर्क दिये जा रहे हैं। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में सरकारी जितनी फीस वाला प्रधानमंत्री का बयान भी इसी संदर्भ में दिया गया है।
लेकिन, इस सबके बीच उत्तराखंड के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस ने एमबीबीएस छात्रों की फाइनल परीक्षा से ठीक पहले फीस युद्ध छेड़कर इन छात्रों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल, देहरादून जिले में ऋषिकेश-देहरादून हाईवे पर जौलीग्रांट में है और इसका संचालन स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी करती है। 2017 में नीट परीक्षा पास करने वाले करीब 140 छात्रों को सरकारी कॉलेजों के बराबर फीस पर हिमालय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जौलीग्रांट में एडमिशन लेने का ऑफर दिया गया था। यह ऑफर राज्य सरकार की हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी की ओर से दिया गया था। इसके लिए मेडिकल एजुकेशन की ओर से फीस भी तय की गई थी। उत्तराखंड के निवासियों के लिए यह फीस 4 लाख रुपये प्रति वर्ष थी, जबकि अन्य राज्यों से आने वाले छात्रों के लिए 5 लाख रुपये प्रति वर्ष।
जब छात्र इस ऑफर के साथ हिमालयन इंस्टीट्यूट पहुंचे तो उन्हें इतनी कम फीस पर एडमिशन देने से इनकार कर दिया गया। इस पर कुछ छात्रों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दी। हाई कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए हिमालयन इंस्टीट्यूट को हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी द्वारा तय की गई फीस पर एडमिशन देने का आदेश दिया। इसके बाद छात्रों ने पहले फीस की पहली किस्त हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी में ही जमा कराई। इस याचिका पर अंतिम फैसला अब तक नहीं आया है।
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जौलीग्रांट ने इसी याचिका को आधार बनाते हुए अंतिम वर्ष के छात्रों को बकाया फीस जमा करने का फरमान जारी किया है। नोटिस में कहा गया है कि इस याचिका पर अब तक अंतिम फैसला नहीं हुआ है, इसलिए छात्र-छात्राएं अपनी बकाया फीस जमा कर दें। यह भी कहा गया है कि बिना फीस जमा किये उन्हें अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इंस्टीट्यूट के इस आदेश ने यहां पढ़ाई कर रहे अंतिम वर्ष के छात्रों और उनके अभिभावकों के सामने गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। छात्रों का कहना है कि उत्तराखंड के छात्रों को 23 लाख रुपये और बाहरी राज्यों के छात्रों को 27 लाख रुपये जमा करने के लिए कहा गया है। छात्रों का यह भी आरोप है कि यह रकम बिना डेट लिखे चेक के रूप में जमा करने को कहा गया है। प्रबंधन की ओर से फिलहाल इतनी राहत दी गई है कि जो परीक्षा 8 मार्च, 2022 को सुबह 10 बजे होनी थी, उसका समय दोपहर बाद 2 बजे कर दिया गया।
इस नोटिस के विरोध में कॉलेज के अंतिम वर्ष के छात्र रात को ही कॉलेज के बाहर हाईवे के किनारे धरने पर बैठे रहे और सुबह छात्रों ने हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी से भी संपर्क किया, लेकिन यूनिवर्सिटी ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
इसके बाद लगभग 15 छात्र ने तो फीस का चेक जमा करा दिया, लेकिन बाकी लगभग 125 छात्र परीक्षा से वंचित रह गए।
छात्रों का कहना है कि उनमें से ज्यादातर के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि कुछ ही घंटों पर 23 या 27 लाख रुपये (उत्तराखंड के छात्रों के लिए 23 लाख और बाहरी राज्यों के छात्रों के लिए 27 लाख रुपये) की व्यवस्था कर सकें। 5 सालों में उन्होेंने 20 लाख रुपये (उत्तराखंड) और 25 लाख रुपये (दूसरे राज्य) फीस भरी है। ज्यादातर के परिवारों ने यह फीस भी काफी कठिनाई से जुटाई है, ऐसे में कुछ घंटों में 25 लाख और 27 लाख रुपये जुटाना उनके परिवार के लिए किसी भी हालत में संभव नहीं है।