स्वास्थ्य

मालवा की नातरा प्रथा: महिलाओं को साथी चुनने की आजादी, लेकिन कानूनन नहीं मिलता पत्नी का दर्जा

नातरा के लिए पैसों का लेन देन भी अन्य कई समाजों की तरह गुर्जर समाज में भी आम है। इस धनराशि को बोलचाल की भाषा में 'झगड़ा' कहा जाता है

Swati Shaiwal
नातरा प्रथा मध्यप्रदेश के कई इलाकों में मौजूद विवाह से जुड़ी एक प्रथा है। इसके अंतर्गत किसी भी महिला या पुरुष के जीवनसाथी के गुजर जाने या जीवनसाथी पसन्द न आने की स्थिति में पार्टनर को यह अधिकार होता है कि वह किसी और के साथ घर बसा सके। यह अधिकार महिला-पुरुष दोनों के लिए समान होता है लेकिन इसके रीति रिवाज शादी जैसे नहीं होते। आमतौर पर मंदिर में ईश्वर को साक्षी मानकर यह रस्म पूरी कर ली जाती है। इस तरह नातरा के अंतर्गत बनी पत्नी को समाज की पंचायत से अधिकार तो मिलते हैं लेकिन कानूनन वे पत्नी के अधिकार की पात्रता नहीं रखतीं। यानी इसके अंतर्गत बिना वैधानिक तलाक प्रक्रिया के ही दूसरी-तीसरी-चौथी शादी भी की जा सकती है। इस प्रथा की हकीकत जानने के लिए डाउन टू अर्थ के लिए स्वाति शैवाल ने कुछ गांवों का दौरा किया।
 
कुछ महीने पहले किसी सार्थक विषय की खोज करते हुए मेरे सामने आया था, एक गांव का छोटा सा प्रोसेशन (इसे छोटी सी बारात या चल समारोह कह सकते हैं)। एक ढोल, कुछ बच्चों एवं 6-7 वयस्कों की उपस्थिति में गांव की सड़क से अंदर जाते उस प्रोसेशन को मैंने शादी के ही उत्साह और खुशी का हिस्सा समझा। मुझे आगे के गांव जाना था, इसलिए रास्ता पूछने के साथ ही पास की दुकान पर आदतन पूछ लिया- आज तो लगता है गांव में शादी है किसी की? दुकान वाले ने अजीब तरीके से मुस्कुराते हुए कहा- ब्याव (शादी) नी है मैडम, नातरा करीने लई जई रियो हे (नातरा करवा कर ले जा रहा है)।
 
यह शब्द मैंने काफी पहले अपनी मां से सुना था। मां ने बताया था कि उनके समय में शाम होने पर यदि कोई लड़की कंघी-तेल, चोटी-काजल करती थी तो घर की बड़ी-बूढ़ियां उसे डांटते-फटकारते हुए कहतीं- सांझ का टाइम टीका-टमका कर री है, नातरा में जाएगी कईं? (शाम के समय सज-संवर रही है, क्या नातरे में जाएगी?) उस दौर में नातरा एक अपमानजनक बात हुआ करती थी। यह भली लड़कियों के लिए ठीक वैसे ही ताने की तरह हुआ करती थी, जिस तरह बाकी स्त्री सुबोधिनी शिक्षाएं होती हैं। मसलन जोर से हंसना नहीं, दुपट्टे बिना घर से निकलना नहीं, आदि। बहरहाल, नातरा उस जमाने में अधिकांशतः छुप-छुपा कर किया जाता था। जिसका जिक्र अक्सर लोग फुसफुसाते हुए करते थे। 
 
क्या है नातरा
इंदौर से करीब 41 किलोमीटर दूर है देवास शहर और देवास से करीब 15-20 किलोमीटर आगे जाने पर कई छोटे-छोटे गांव बारोठ, आंवलिया पीपल्या आदि बसे हुए हैं। इन गांवों में आरसीसी की पक्की सड़कें हैं, अब बिजली और पानी भी है। गुटके से लेकर चिप्स तक के पाउच लादे हुए दुकाने भी हैं और इंटरनेट के साथ शराब पीने के ठिकाने भी। पिछले 10 सालों में ही गांवों की तस्वीर बदल चुकी है। जो नहीं बदली हैं, वे हैं प्रथाएं और पंचायतें।
 
ख़ुशी की बात यह है कि अब भी यहां दूर-दूर तक काली मिट्टी के उपजाऊ खेत फैले नजर आते हैं और इन्हीं के बीच रास्ता तय करते हुए मैं पहुंची जामगोद गांव में। जो करीब 5-7 किलोमीटर और अंदर था। लगभग 200-250 मतदाताओं वाले इस गांव में सबसे अधिक आबादी गुर्जर समाज की है। गांव के अंदर मैं यह पूछते हुए जा रही थी कि यहां किसके यहां नातरा हुआ है और कुछ दूरी पर ही जब मैंने एक बाइक सवार से यह सवाल पूछा तो उसका जवाब था, उसके पीछे बैठे युवक का ही नातरा हुआ है, करीब सवा साल पहले।
 
पीछे बैठे युवक अर्जुन गुर्जर की पहली पत्नी किसी और के साथ घर बसाने चली गई थी और फिर अर्जुन ने नातरा के तहत दूसरी बार संजना के साथ घर बसाया। उन्होंने बताया कि अभी उनकी पत्नी मायके गई हुई है। फिर अर्जुन ने मुझे बताया कि सामने गांव के मंदिर के चबूतरे पर पत्ते (ताश) खेल रहे और भी कई लोगों का नातरा हुआ है और मुझे उनसे भी बात करनी चाहिए। मैं उस ओर चल दी। तेज झुलसती गर्म दोपहर में मंदिर के भीतर बैठा है 7-8 आदमियों का एक समूह। खेतों की फसलें पक कर बिक चुकी हैं, अब एक पानी पड़ने पर दूसरी फसल (ज्यादातर सोयाबीन) बोई जायेगी। ये इसी बीच का ब्रेक है।  
 
लड़का-लड़की कोई भी कर सकता है नातरा 
मंदिर में पत्ते खेल रहे 22 साल के राजेश गुर्जर का नातरा सविता से अभी 8 महीने पहले ही हुआ है। उनकी पहली पत्नी ने किसी और के साथ घर बसा लिया और उसके बाद राजेश नातरा कर घर बसा चुके हैं। उनसे बात करते-करते आस पास मौजूद बाकी लोग भी शामिल हो जाते हैं। वे बताते हैं- गुर्जर समाज में नातरा के लिए लड़का-लड़की दोनों को समान अधिकार हैं। वे कहते हैं- शादी हुई, उके नी जमी या अपने नी जमी (मतलब लड़का या लड़की दोनों में से किसी को साथ रहना पसंद नहीं आया।) तो दूसरे व्यक्ति से नातरा हो जाता है।
 
ज्यादातर नातरे उन लोगों के होते हैं जिनके विवाह बचपन में ही हो गए होते हैं। इस बात पर पास खड़ी सुशीला शर्मा टोकते हुए कहती हैं कि कई बच्चों के विवाह तो उनके गर्भ में रहते हुए ही तय हो जाते हैं। जब ये बच्चे बड़े होते हैं तो कई बार उन्हें अपने जीवन साथी पसंद नहीं आते और इसलिए वे किसी और के साथ नातरा करके चले जाते हैं। पसंद नापसंद की इस श्रेणी में पति या पत्नी का पढ़ा-लिखा न होना, रंग-रूप में सामान्य होना (गोरे रंग की चाहत यहां भी बरक़रार है) और स्वभाव से अलग होना जैसी चीजें शामिल हैं।
 
ऐसी किसी भी स्थिति में नातरा किया जा सकता है। हां लेकिन यदि विवाह के बाद बच्चा पैदा हो जाए तो नातरा होने की स्थिति कम बनती है। 'तो बाल विवाह ही नहीं करने चाहिए? मैंने प्रश्न पुछा। इस पर सुशीला और बाकी सबका जवाब था- यो तो रीत हे। मतलब यह तो रीत रिवाज है। 
 
दूसरे समाज में रिश्ता नहीं स्वीकार 
बाल विवाह का अनुपात यहाँ बहुत ज्यादा है। लड़का या लड़की अगर 18-20 से थोड़ा भी ऊपर हुआ तो लोग सवाल करने लगते हैं कि इसकी अभी तक शादी क्यों नहीं हुई। वर्तमान में लड़कियों के लिए भी कॉलेज तक जाने के रास्ते तो खुले हैं लेकिन शादी उनको परिवार, पंचायत और समाज की सहमति से अपने समाज में ही करनी पड़ती है। दूसरे समाज में रिश्ता स्वीकार नहीं होता। हां शादी के बाद अगर लड़का पसंद न आये तो दूसरा-तीसरा नातरा करने की पूरी छूट है। 
 
चुकानी पड़ती है 'झगड़े' की राशि 
नातरा के लिए पैसों का लेन देन भी अन्य कई समाजों की तरह गुर्जर समाज में भी आम है। इस धनराशि को बोलचाल की भाषा में 'झगड़ा' कहा जाता है। यदि लड़की किसी और के साथ नातरा करके चली गई है तो वह लड़का जिससे उसने नातरा किया है, वह उसके पूर्व पति को पैसे देगा। यह धनराशि 8-15 लाख रुपए तक हो सकती है और इसे मुख्यतः 3 किश्तों में चुकाया जाता है। यह किश्तें और राशि सामाजिक पंचायत () और रिश्तेदारों द्वारा तय की जाती हैं और न चुकाने की स्थिति में दंड भी तय होता है। ज्यादातर लोग चूंकि खेती करते हैं इसलिए राशि फसल आने पर चुकाई जाती है।
 
अगर फसल सही दाम पर न बिके तो ज़मीन बेचकर धनराशि चुकानी होगी। अगर नहीं चुका पाए तो उनके खेतों में या उनके गांव के अन्य खेतों में आग लगाकर पूरे गांव को दंडित किया जाएगा और इसका हर्जाना भी उस आदमी को ही देना होगा जिसने नातरा किया है। राजेश गुर्जर ने 8.26 लाख रुपए का झगड़ा लिया है और उनकी एक किश्त अभी बाकी है। तरह एक आदमी 2, 3 कितनी भी स्त्रियां नातरे के रूप में पत्नी बनाकर घर ला सकता है। बस उसे राशि चुकानी होगी।
 
हर पत्नी से होने वाले बच्चों में आदमी की सम्पत्ति का बंटवारा भी पंचायत के जरिये ही बराबर होता है। इन सबके लिए पंचायत में ही लिखा पढ़ी भी होती है। हां अगर किसी महिला का पति गुजर गया है तो फिर उसके नातरे में झगड़े की धनराशि नहीं ली-दी जाती लेकिन उसी सम्पत्ति पर उसके पति का भी अधिकार होता है। 
 
लड़कियां नहीं चुन सकतीं समाज से बाहर, लड़कों को है छूट 
जीवनसाथी चुनने के स्तर पर इस व्यवस्था में भले ही महिलाओं को छूट है लेकिन सिर्फ समाज के स्तर पर। इसके अलावा बाकी मामलों में वे अब भी पारम्परिक पैमानों पर ही खरी उतरने वाली होनी चाहिए। मसलन अगर लड़की को घर संभालना, घर-खेत के काम करना नहीं आता तो भला उससे नातरा करने का फायदा ही क्या और इस बात पर उसे आसानी से छोड़कर दूसरी महिला से नातरा किया जा सकता है। मैं करीब 2 घंटे उस गांव में रही लेकिन सुशीला के अलावा और कोई भी महिला न बाहर आई न मुझे उनसे मुलाकात करवाने को कोई राजी हुआ। पढ़ाई-लिखाई के लिए बहुत कम युवा बाहर गए हैं जो गए फिर वे विद्रोही हो सकते हैं।
 
तो इन पर लगाम लगाने के लिए है परिवार, समाज और पंचायत। ये लड़कियों को कड़ाई से इस बात का पालन करवाते हैं कि वे समाज से बाहर प्रेम/विवाह न करें। यही कारण है कि विवाह बचपन में ही तय कर दिया जाता है। हाँ, लड़के चाहें तो दूसरे समाज की लड़की से शादी कर सकते हैं। उनके लिए सिर्फ इतनी सजा है कि वे समाज से बाहर कर दिए जाते हैं। फिर वे बाहर जो चाहें करें बस समाज उन्हें अपने साथ शामिल नहीं करेगा। इसलिए गुर्जर लड़कों के अन्य समाज में शादी के मामले आपको मिल सकते हैं लेकिन लड़कियों को इस बारे में सोचने का भी अधिकार नहीं है।
 
सोशल मीडिया पर आपको ऐसे कई वीडियो मिल जाएंगे जिनमें नन्हें बच्चे फेरे लेते और घोड़े पर बैठे मिल जाएंगे और नीचे बोल्ड अक्षरों में लिखा होगा-'जिस उम्र में आपके लड़के-लड़की लॉलीपॉप खाते हैं न, उस उम्र में गुर्जर के लड़के दुल्हन ले आते हैं।' 
 
बाकड़ा कहलाते हैं बच्चे 
नातरा के साथ पैदा हुए बच्चों के लिए एक ख़ास शब्द 'बाकड़ा' चलता है। हालांकि पंचायत और समाज इन्हें पूर्व के बच्चों (यदि हैं तो) के समान ही अधिकार दिलवाते हैं लेकिन ये बच्चे नातरा के रिश्ते से पैदा होने वाले बच्चों के रूप में ही पहचान पाते हैं।  
 
वैधानिक स्तर पर यह विवाह अमान्य
हिन्दू विवाह अधिनियम में यह स्पष्ट है कि एक विवाह के संबंध कानूनन विच्छेद किये बिना दूसरा विवाह कर लेना, गैरकानूनी है। ऐसे किसी भी विवाह को भारतीय कानून मान्यता नहीं देता। इसके लिए बकायदा कारावास के दंड तक का प्रावधान है। इस लिहाज से नातरा प्रथा के अंतर्गत हुए विवाह भी गैरकानूनी हैं लेकिन ये प्रथा इसलिए चल रही है क्योंकि सारे निर्णय पंचायत द्वारा लिए जाते हैं। लिहाजा कोर्ट तक इक्का दुक्का केस ही पहुंच पाता है। जो केस कोर्ट तक पहुंचते हैं उन्हें कानून के हिसाब से न्याय मिलता है लेकिन यह प्रक्रिया आसान नहीं होती।
 
सेवानिवृत जिला एवं सत्र न्यायधीश, मंदसौर (म.प्र.) केसी मनाना का कहना है कि फरियादी का पढ़ा-लिखा, जानकर न होना भी कई बार उसके लिए मुश्किलें खड़ी करता है। यही कारण है कि उन्हें पंचायत के जरिये ही नातरे को अपना लेना ज्यादा आसान लगता है। वे कोर्ट-कचहरी में विश्वास नहीं रखते।लम्बी कानूनी प्रक्रिया और वकीलों की फीस वगैरह भी महिलाओं को कोर्ट तक आने से रोकती है क्योंकि उन्हें घर से बाहर निकलने का अधिक अनुभव भी नहीं होता। यही कारण है कि पंचायत द्वारा किये जाने वाले फैसले उन्हें अधिक आसान लगते हैं। 
 
इन तमाम लोगों से बात करते हुए मैं कोर्ट में चल रही लिव इन रिलेशन संबंधी बहसों और महिलाओं को उनसे मिले अधिकारों के बारे में सोच रही हूं। जो मात्र 50-60 किलोमीटर के अंतराल पर बसी ये दो अलग अलग दुनिया के सच हैं।
 
(यह रिपोर्ट लाडली मीडिया फैलोशिप 2023 के तहत प्रकाशित की जा रही है)