स्वास्थ्य

कोविड-19 महामारी के चलते हर रोज 153 बच्चों की जान ले सकता है कुपोषण

दुनिया भर में 5 वर्ष से कम आयु के 45 फीसदी बच्चों की मौत के लिए कुपोषण जिम्मेवार है, जबकि इसी आयु वर्ग का हर पांचवे बच्चे का कद उम्र के लिहाज से छोटा है

Lalit Maurya

दुनिया भर में 5 वर्ष से कम आयु के 45 फीसदी बच्चों की मौत के लिए कुपोषण जिम्मेवार है, जबकि इसी आयु वर्ग का हर पांचवे (14.4 करोड़) बच्चे का कद उम्र के लिहाज से छोटा है। आंकड़ों के अनुसार 2020 में हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। 4.7 करोड़ बच्चों का वजन शरीर के अनुपात में कम है। वहीं 3.8 करोड़ बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं।

पहले ही कुपोषण की समस्या से जूझ रहे देशों के लिए कोरोना महामारी ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। हाल ही में सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी रिपोर्ट 'न्यूट्रिशन क्रिटिकल' के हवाले से पता चला है कि यदि दुनिया भर में पोषण पर ध्यान नहीं दिया गया तो इस महामारी के चलते 2022 तक कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या में 168,000 का इजाफा हो सकता है। साथ ही इसके चलते 5 वर्ष से कम आयु के 93 लाख बच्चों में लम्बाई के अनुपात में वजन कम होगा। इसके करीब दो-तिहाई शिकार दक्षिण एशिया के बच्चे होंगे। 26 लाख अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने रह जाएंगे। अनुमान है कि इस महामारी से उपजे आर्थिक संकट के चलते करीब 8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार होंगे।

कुपोषण के मामले में महिलाओं की शिक्षा भी मायने रखती है। रिपोर्ट के अनुसार पढ़ी-लिखी मां होने का असर कुपोषण के स्तर पर पड़ता है। जहां शिक्षित माताओं के 24 फीसदी बच्चे कुपोषित थे। वहीं इसके विपरीत कम शिक्षित माताओं के 39.2 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार थे। 

एशिया और अफ्रीका में सबसे ज्यादा बदतर है स्थिति 

रिपोर्ट के अनुसार एशिया और अफ्रीका में पोषण की स्थिति सबसे बदतर है। यदि स्टंटिंग (उम्र के अनुपात में ठिगने) की स्थिति देखें तो इसके 90 फीसदी शिकार बच्चे एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। इसी तरह वेस्टिंग (अपनी लम्बाई के अनुपात में पतले बच्चे) का शिकार हर दस में से 9 बच्चे इन्ही दो महाद्वीप के हैं जबकि मोटापे के शिकार 70 फीसदी बच्चे एशिया और अफ्रीका से सम्बन्ध रखते हैं। यदि दक्षिण एशिया की स्थिति देखें तो यहां के 14.3 फीसदी बच्चे वेस्टिंग और 31.7 फीसदी स्टंटिंग का शिकार हैं।  

भारत में पांच साल से छोटे 68.2 फीसदी बच्चों की मौत का कारण है कुपोषण

भारत में पांच साल की उम्र से छोटे हर तीन में दो बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है। भले ही हम विकास के कितनी बड़ी बातें करते रहें, पर सच यही है कि आज भी भारत में लाखों बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है। इस स्थिति में पिछले कई वर्षों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। 1990 में 5 वर्ष से छोटे 70.4 फीसदी बच्चों की मौत के लिए कुपोषण जिम्मेदार था। जबकि 2017 में यह आंकड़ा घटकर 68.2 फीसदी ही हुआ है। 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के अनुसार भारत में हर दूसरा बच्चा पहले से ही कुपोषित है। इसका मतलब है कि हमारे देश में लगभग 7.7 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। यह झारखंड, तेलंगाना और केरल की कुल आबादी के बराबर है।   

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से सितंबर 2019 में कुपोषण पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों की जन्मदर 21.4 फीसदी थी। जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी और अनीमिया से ग्रस्त बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी थी। 

बच्चों के लिए क्यों जरुरी है पोषण

पोषण न केवल बच्चों के जीवन के लिए जरुरी है। यह बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है। कुपोषण के चलते बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। जिस वजह से वो आसानी से बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। जब कुपोषण का शिकार बच्चे बड़े होते हैं तो वो बड़े होकर भी कुपोषित ही रहते हैं। इस तरह उनके बच्चे भी कुपोषित पैदा होते हैं। इस तरह यह समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। 

पिछले सालों में इस समस्या से निपटने के किए अनगिनत प्रयास किए गए हैं, इनके बावजूद यह समस्या अब तक बनी हुई है। इस महामारी के आने से पहले भी कोई भी देश 2025 के पोषण सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल कर पाने के सही पथ पर नहीं था। उदाहरण के लिए यदि अनीमिया से जुड़े लक्ष्य को ही देखें तो 2012 के बाद से वैश्विक स्थिति और खराब हुई है। अनुमान है कि आने वाले कुछ वर्षों में इस महामारी के चलते यह समस्या और विकराल रूप ले लगी। 

वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5.2 फीसदी की गिरावट आ सकती है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी आर्थिक मंदी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, कोविड -19 के चलते 30.5 करोड़ नौकरियां छिन जाएंगी। लॉकडाउन के कारण 160 करोड़ मजदूरों की कमाई प्रभावित हुई है। इसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा, अनुमान है कि यदि इससे निपटने के लिए सही कदम न उठाए गए तो 2020 में 26.5 करोड़ लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है।

स्वास्थ्य के साथ-साथ इस महामारी ने सामाजिक-आर्थिक स्तर पर बड़ा गहरा असर डाला है। जिसका सबसे बड़ा शिकार गरीब और कमजोर तबके के बच्चे बने हैं। सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि इस महामारी के कारण चौतरफा गरीबी की मार झेल रहे बच्चों की संख्या में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण और स्वच्छता से वंचित इन बच्चों की संख्या 120 करोड़ हो गई है।