स्वास्थ्य

भारत में सिर्फ नौनिहाल ही नहीं बुजुर्गों को भी प्रभावित कर रहा है कुपोषण

रिसर्च से पता चला है कि 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के करीब 28 फीसदी पुरुषों और 25 फीसदी महिलाओं का वजन सामान्य से कम है

Lalit Maurya

भारत में कुपोषण सिर्फ बच्चों को ही नहीं बुजुर्गों को भी प्रभावित कर रहा, जो उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। इस बारे में इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पापुलेशन साइंसेज से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के करीब 28 फीसदी पुरुषों और 25 फीसदी महिलाओं का वजन सामान्य से कम है।

वहीं इसी आयु वर्ग की करीब 37 फीसदी महिलाएं और 25 फीसदी पुरुष बढ़ते वजन और मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं। इसका मतलब की बुजुर्ग महिलाओं में बढ़ता वजन और मोटापा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। अध्ययन के नतीजे 10 अगस्त 2023 को जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (एलएएसआई) सर्वे के पहले चरण से जुड़े 59,073 लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन लोगों की उम्र 45 वर्ष या उससे अधिक थी।

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक कुपोषण का यह प्रभाव शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से बुजुर्गों को प्रभावित कर रहा है। पता चला है कि शहरी क्षेत्रों में बुजुर्गों में वजन के कम होने की सम्भावना कम होती है। जबकि उनमें मोटापे और बढ़ते वजन की समस्या अधिक देखी गई। इसी तरह सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वृद्धों में वजन कम होने की सम्भावना अधिक होती है।

इसी तरह संक्रमण और दांतों की कमी जैसे कारक 60 या उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों में कम वजन की वजह बनते हैं। गौरतलब है कि बुजुर्गों में कुपोषण सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय है। यह अध्ययन भी बढ़ती उम्र के साथ लोगों में स्वस्थ रहने के लिए बेहतर पोषण के महत्व पर प्रकाश डालता है।

उम्र के इस पड़ाव में लोगों को स्वस्थ रहने के लिए पोषण की बेहद जरूरत होती है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ बुजुर्गों में स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इतना ही नहीं बुजुर्गों में पोषण सम्बन्धी जरूरतें युवाओं की तुलना में अलग होती हैं।

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो जैसे-जैसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति हो रही है। लोगों के पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा वर्षों तक जीवित रहने की सम्भावना भी बढ़ रही है। इसके साथ ही दुनिया में बुजुर्गों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2019 में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या करीब 100 करोड़ थी जो 2050 तक बढ़कर दोगुणी हो जाएगी। अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा 210 करोड़ पर पहुंच जाएगा।

27 वर्षों में बढ़कर 19 फीसदी पर पहुंच जाएगी वृद्धों की आबादी

वहीं यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां 2011 में की गई जनगणना के मुताबिक करीब 10.4 करोड़ लोगों यानी देश की 8.6 फीसदी आबादी 60 से ज्यादा बसंत देख चुकी थी। अनुमान है कि आने वाले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 19.1 फीसदी पर पहुंच जाएगा।

हमें यह समझने की जरूरत है कि जिस बुजुर्ग आबादी की हम बात कर रहे हैं वो किसी भी समाज के लिए बोझ नहीं बल्कि अमूल्य संसाधन है। ऐसे में इनके स्वास्थ्य और पोषण को ध्यान में रखना भी बेहद जरूरी है। हालांकि इसके बावजूद देखा जाए तो देश में पोषण से जुड़ी ज्यादातर कार्यक्रम बच्चों, किशोरों और मातृ स्वास्थ्य पर केंद्रित हैं। कहीं न कहीं इन कार्यक्रमों से बुजुर्ग नदारद हैं।  

भारत में, बुजुर्गों को पोषण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे गरीब हैं, उनके पास सीमित शिक्षा है, और स्वास्थ्य देखभाल या पोषण कार्यक्रमों तक पहुंचने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है।

इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए जनवरी 1999 में, भारत ने वृद्ध लोगों पर अपनी पहली राष्ट्रीय नीति पेश की थी। इसके बाद 2010 में, भारत सरकार ने बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम भी शुरू किया था, जिसका लक्ष्य वृद्ध व्यक्तियों को संपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना है।

चिकित्सा विज्ञान में प्रगति और स्वास्थ्य देखभाल के साथ रहन-सहन में आए सुधार के साथ भारत में लंबे समय तक जीवित रहना संभव हो पाया है। लम्बी उम्र एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह बेहतर स्वास्थ्य की निशानी नहीं है, इसके लिए पोषण भी अहम है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ लोग कुपोषण और पुरानी बीमारियों जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं।

ऐसे में जब 2050 तक भारत 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों की आबादी 34 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, तो उनके पोषण और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना भी जरूरी है।

अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि देश के वृद्धों में पोषण की स्थिति बेहद जटिल है, जो विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। ऐसे में इससे उबरने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। रिसर्च के अनुसार सामुदायिक स्तर पर नियमित जांच से उन बुजुर्गों की पहचान में मदद मिल सकती है जिन्हें पोषण संबंधी सहायता की आवश्यकता है।