एक नए शोध के मुताबिक, कुपोषण बच्चों के जन्म के पहले दो वर्षों में शरीर के विकास को कैसे प्रभावित करता है, जो ग्लोबल साउथ, विशेष रूप से एशिया में लाखों बच्चों के लिए एक विनाशकारी वास्तविकता को उजागर करता है। शोधकर्ताओं ने नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में अब तक का सबसे व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
शोध में कहा गया है कि, साल 2022 में, दुनिया भर में हर पांच में से एक से अधिक, लगभग 15 करोड़ बच्चों को सामान्य रूप से शारीरिक विकास के लिए पर्याप्त कैलोरी नहीं मिली। 4.5 करोड़ से अधिक में कमजोरी के लक्षण दिखे, या उनकी लंबाई के अनुसार उनका वजन बहुत कम था।
हर साल 10 लाख से अधिक बच्चे कमजोरी के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं और 2,50,000 से अधिक बच्चे बौनेपन के कारण मरते हैं। जिन लोगों ने बचपन में बौनेपन और कमजोरी का अनुभव किया है, उन्हें भी जीवन में आगे याददाश्त की कमी हो सकती है, जो वयस्क होकर आर्थिक पिछड़े पन का शिकार हो जाते हैं।
बौनापन, या अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटा होना लंबे समय तक कुपोषण का शिकार होना है, जबकि कमजोरी गंभीर कुपोषण की ओर इशारा करती है। दुनिया भर में स्वास्थ्य पर काम करने वाले लोग कुपोषण को खत्म करने की दिशा में प्रगति की निगरानी के लिए इन दोनों संकेतों का उपयोग करते हैं।
शोधकर्ता ने कहा कि, जिन बच्चों का विकास छह महीने का होने से पहले ही लड़खड़ाना शुरू हो जाता है, उनकी मृत्यु के आसार बहुत अधिक होते हैं। 18 से 24 महीने की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनका गंभीर रूप से विकास रुकने की आशंका बनी रहती है।
शोधकर्ता ने बताया, इससे पता चलता है कि यह एक बहुत ही छोटी अवधि होती है जिसमें हम इससे निपटने के समाधान ढूंढ सकते हैं, सही मायनों में प्रसव से पहले का समय एकदम सही समय होता है। शोध में यह यह भी सुझाव दिया गया है कि, प्रसव उम्र की महिलाओं के बीच पोषण में सुधार के लिए युद्ध स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।
जन्म के समय से फर्क पड़ता है
विश्लेषण में यूसी बर्कले के नेतृत्व में 100 से अधिक शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम शामिल थी, जिसने 1987 से 2014 के बीच शुरू हुए 33 प्रमुख अध्ययनों से दो साल से कम उम्र के लगभग 84,000 बच्चों के आंकड़ों की जांच की। यह समूह दक्षिण एशिया, उप-सहारा, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पूर्वी यूरोप के 15 देशों से थे।
शोध के द्वारा प्रदान किए गए नए अनुमानों के अनुसार, कुपोषण के प्रभाव कम संसाधनों वाले परिवेश में देखे जाते हैं, लेकिन इसका बोझ दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है, जहां 20 प्रतिशत बच्चे जन्म के समय अविकसित रह गए और 52 प्रतिशत से अधिक ने अपने दूसरे जन्मदिन तक कमजोरी का अनुभव किया।
शोधकर्ताओं ने बारिश के साथ-साथ बड़े मौसमी बदलाव देखे जिसने भारी नुकसान किया, यह उन जगहों पर मौसमी खाद्य असुरक्षा को दर्शाता है जहां लोग पोषण के मुख्य स्रोत के रूप में फसलों पर निर्भर हैं।
दक्षिण एशियाई समूहों में, मई में पैदा हुए बच्चे के जनवरी में पैदा हुए बच्चे की तुलना में कमजोर होने के आसार कहीं अधिक थे, जिसका मुख्य कारण मौसमी भोजन की उपलब्धता और गर्भावस्था के दौरान मां की पोषण संबंधी स्थिति थी।
शोधकर्ता ने कहा, जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो उसे विकास के मामले में पूरी तरह से अलग प्रक्षेपवक्र पर स्थापित किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने कहा कि कोई भी ज्ञात स्वास्थ्य हस्तक्षेप मौसमी कारणों से ठीक करने में सक्षम नहीं है।
समय से पहले हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है
जबकि कुछ बच्चे अपने स्वास्थ्य और पोषण में सुधार हासिल कर पाते हैं, इस शोध में सामने आए विकास में गिरावट की शुरुआती, शुरुआत से पता चलता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में शामिल लोगों को छह महीने से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती माताओं को पोषण सुधार में शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए।
वर्तमान में, अधिकांश बचपन में पोषण संबंधी हस्तक्षेप लगभग छह महीने की उम्र के बाद शुरू होते हैं क्योंकि उनमें अक्सर पोषण संबंधी सप्लीमेंट शामिल होता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम स्तनपान से संबंधित कामों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं।
शोधकर्ता ने कहा कि, शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि यदि छह महीने की उम्र से पहले स्वास्थ्य को लेकर हस्तक्षेप नहीं किया जाता है, तो इस शोध में शामिल की गई आबादी में लगभग एक तिहाई बच्चों और दक्षिण एशिया में आधे से अधिक बच्चों के रुके हुए विकास को फिर से आगे बढ़ाने के लिए बहुत देर हो चुकी है।
दस्तावेज गर्भधारण से पहले महिलाओं को पोषण और स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने और गर्भावस्था के दौरान और बाद में उस सहायता को जारी रखने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं। अध्ययनों में, शोधकर्ताओं ने देखा कि एक कुपोषित मां एक ऐसे बच्चे को जन्म दे सकती है जो अगली पीढ़ी में कुपोषण के उस चक्र को लगातार जारी रखेगा।
शोधकर्ता ने कहा, जीवन के शुरुआती दौर में कुपोषण एक चिंताजनक विषय है जो पीढ़ियों तक फैल सकता है। तत्काल कार्रवाई आवश्यक है, लेकिन हमें इस चक्र को तोड़ने के लिए विकास और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों में निरंतर निवेश की भी आवश्यकता है। जीवन के पहले 1,000 दिनों के दौरान किसी व्यक्ति की मदद करना, समग्र रूप से समाज के लिए बेहद मायने रखता है।