फाइल फोटो: कलीम सिद्दीकी 
स्वास्थ्य

मध्य प्रदेश: निजी निवेशकों को 1 रुपए में मेडिकल कॉलेज के लिए 25 एकड़ जमीन

स्वास्थ्य के क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल अपनाने का मध्यप्रदेश सरकार का फैसला स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं गले नहीं उतर रहा है

Anil Ashwani Sharma

मध्य प्रदेश सरकार प्रदेश के जिला अस्पतालों को निजी हितधारकों को देने के लिए अनेक प्रयास कर रही है। राज्य के लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने गत 8 अप्रैल 2025 को मंत्रिमंडल में लिए गए निर्णयों से अवगत कराते हुए बताया कि राज्य के विभिन्न जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए अब सरकार निजी निवेशकों को 1 रुपए की सांकेतिक दर से 25 एकड़ जमीन देगी। मंत्रिमंडल के इस निर्णय का विरोध शुरू हो गया है।

राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही संस्था जन स्वास्थ्य अभियान ने कहा है कि लगभग मुफ्त में जमीन देना सरकारी संसाधन का दुरुपयोग है। अभियान की एक सदस्य अमूल्य निधि ने कहा कि पहले निवेशकर्ता को जमीन खुद ही खरीदना पड़ती थी। साथ ही, मेडिकल कॉलेज खोलना होता था, लेकिन अब सरकार जमीन भी देगी और शायद मरीज भी देगी। ऐसे में निवेशकर्ता तो केवल महंगी चिकित्सा शिक्षा ही मुहैया कराएंगे।

उन्होंने बताया कि सरकार ने जिला अस्पतालों को निजी निवेशकों को नहीं सौंपने की हमारी मांग तो मान ली परंतु अब मुफ्त में जमीन देकर निजी निवेशकों को नई सौगात देने जा रही है।

उनके मुताबिक पूरे देश में ऐसे प्रयास कहीं भी सफल नहीं हुए हैं। इसके बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है। अब प्रस्तावित मॉडल में सरकार जमीन दे रही है और उसके बदले आयुष्मान कार्ड धारकों को 75 प्रतिशत तक नि:शुल्क इलाज देने की बात कह रही है। पूरे देश में इस प्रकार के मॉडल से रियायती दर पर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में एक भी सफल उदाहरण उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद सरकार इस पर अमल करना चाहती है।

ध्यान रहे कि सर्वोच्च न्यायालय ने गत 26 मार्च 2025 को इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल द्वारा लीज समझौते के उल्लंघन के मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि यदि  इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में गरीब लोगों को मुफ्त इलाज मुहैया नहीं कराया जाता है तो वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से इसे अपने अधीन करने को कहेगा।

लीज समझौते के अनुसार इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईएमसीएल) द्वारा संचालित अस्पताल को अपने एक तिहाई इनडोर गरीब मरीजों और 40 प्रतिशत आउटडोर मरीजों को बिना किसी भेदभाव के मुफ्त चिकित्सा और अन्य सुविधाएं मुहैया करानी थी।

अभियान के एक अन्य सदस्य एस. आर. आजाद ने कहा कि जन स्वास्थ्य अभियान मध्य प्रदेश सरकार के इस निर्णय का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे है और हमारी मांग है कि सरकार यह बताए कि उनके इस निर्णय से जनता को क्या फायदा होगा और सरकारी  मेडिकल कॉलेज न खोलने क्या मजबूरी है?

अभियान का कहना है कि सरकारी संसाधनों का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र और चिकित्सा शिक्षा को मजबूत करने में किया जाए और स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवाओं के निजीकरण के नए-नए मॉडल लाना बंद करे व स्वास्थ्य सेवाओं में पीपीपी और निजीकरण को पूरी तरह बंद करे।

ध्यान रहे कि नीति आयोग ने राज्यों को पीपीपी मॉडल के तहत मेडिकल कॉलेज बनाने और जिला अस्पतालों को निजी संस्थाओं को सौंपने का सुझाव दिया था। यह कदम कुछ राज्यों में शुरू भी किया गया है। इनमें गुजरात और कर्नाटक में पीपीपी मॉडल की कोशिश की गई थी जो विफल हो गया और अब मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार इस मॉडल को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। आयोग द्वारा जिला अस्पतालों और यहां तक कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को भी निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ साझेदारी में सौंपने का सुझाव दिया गया है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47) स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करने के लिए राज्य का दायित्व सुनिश्चित करता है। संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार स्वास्थ्य राज्य का विषय है और तदनुसार अपने नागरिकों को स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी और कर्तव्य है।

भारत में औसतन 10,000 लोगों पर 2 से 3 डाक्टर हैं। फिलहाल देश में 1.6 लाख मेडिकल सीटें हैं। सरकार ने घोषणा की है कि अगले साल पूरे भारत में मेडिकल कॉलेजों में 10,000 अतिरिक्त सीटें जोड़ी जाएंगी। इसका लक्ष्य आगामी 5 सालों में 75,000 मेडिकल सीटों तक पहुंचाना है।

विश्व बैंक के अनुसार भारत सरकार 50.2 फीसदी इलाज का ही खर्च उठाती है और शेष 49.8 फीसदी लोग अपनी जेब से ही इलाज कराने को विवश हैं। 2025- 26 के स्वास्थ्य में 99,858 करोड़ रुपए आबंटित किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए कुल बजट में से 37,226 करोड़ रुपए मिला है। वर्ष 2024 के “ग्लोबल हंगर इंडेक्स” की रिपोर्ट अनुसार भारत की कुपोषित आबादी 13.7  प्रतिशत है।

भारत में 5 साल से कम आयु के बच्चे जिनकी कदकाठी कम है, ऐसों की संख्या कुल 35.5 प्रतिशत हैं। भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे जिनका वजन कम है, ऐसों का कुल प्रतिशत 18.7 है। कुपोषण के कारण 5 वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों का प्रतिशत 2.9 है।