स्वास्थ्य

समाज की भलाई के लिए जरूरी है कोविड-19 से रिकवर मरीजों का लंबा निरीक्षण

कोविड-19 से रिकवरी के बाद फॉलोअप पर केंद्रित फॉलोअप स्टडीज इन कोविड-19 रिकवर्ड पेशेंट्स- इज इट मेंडेटरी अध्ययन के सह लेखक विवेकानंदन गोविंदासामी माइक्रोबायोलॉजी और मॉलेक्यूलर पैथोजेनिसिस में विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में वह तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित फार्मर्स बायो फर्टिलाइजर एंड ऑर्गेनिक में निदेशक हैं। डाउन टू अर्थ ने उनसे बात की

Bhagirath

भारत में महामारियों से संबंधित फॉलोअप अध्ययन की क्या स्थिति है? मौजूदा समय में जब कोरोनावायरस की महामारी फैली है, तब यह क्यों जरूरी हो गया है?

प्रकृति ने हमेशा आपदाओं के माध्यम से मानव के सामने चुनौती पेश की है। साल 2002-03 में यह आपदा एसएआरएस (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम-सार्स) के रूप में, 2007 में एमईआरएस (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम-मर्स) के रूप में और अब कोविड-19 के रूप में सामने आई है। ऐसे समय में जब मानव और वायरस के बीच जंग चल रही हो, तब विनाशक बीमारियों के दीर्घकालीन असर को समझना बहुत जरूरी हो जाता है। भारत में कोरोनावायरस के फैलाव को देखते हुए पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं जरूरी हैं जिससे हम बीमार लोगों, स्वास्थ्यकर्मियों और पर्यावरण को बचा सकें। हमारे देश में सार्स संबंधित फॉलोअप का घोर अभाव रहा। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि भारत में केवल तीन संक्रमित थे और किसी की मृत्यु नहीं हुई। लेकिन कोविड-19 के मामले में स्थितियां अलग हैं। भारत में इस वायरस के संक्रमण और मृत्युदर में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। इसलिए रिकवर होने वाले मरीजों का फॉलोअप जरूरी है ताकि गहन अध्ययन हो सके और भविष्य में शारीरिक, मानसिक व सामाजिक दुष्प्रभावों का समय रहते निदान हो सके।

कोविड-19 मानव शरीर के किन-किन अंगों पर और कितना गहरा असर डाल सकता है?

सार्स के प्रकोप के बाद सवाल उभरा था कि क्या इससे उबरे मरीज दोबारा संक्रमित हो सकते हैं? 2005 में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस के रेस्पॉन्स में लंग्स में हो रहे बदलाव के कारण लंग्स में ठीक होने के बाद भी फाइब्रोसिस (फेफड़ों की बीमारी जो ऊतकों के क्षतिग्रस्त होने से होती है) संभव है।

शोधकर्ताओं ने 2015 में एमईआरएस से रिकवर हुए 55 मरीजों के फेफड़ों में एक साल बाद भी जख्म पाया था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि कोविड-19 (सार्स सीओवी-2) मुख्य रूप से उन्हीं लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें पहले से फेफड़ों, किडनी, हृदय, मस्तिष्क और गैस्ट्रोइंटेस्टनल (जीआई) ट्रैक्ट से संबंधित समस्या है। मस्तिष्क को वायरस से बचाने में ब्लड-ब्रेन और ब्लड-सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड (सीएसएफ) की निर्णायक भूमिका होती है। यहां पेरिफेरल नर्व (परिधीय तंत्रिका) विशेषकर आल्फैक्टरी सेंसरी न्यूरॉन्स के माध्यम से संचरण की शुरुआत होती है। हाल ही में यह देखा गया है कि कोविड-19 मरीजों की सूंघने की क्षमता खत्म हो गई। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह वायरस शुरुआत में आंख में मौजूद कंजक्टिवा को कमजोर करता है जिससे वह शरीर के अन्य हिस्सों में संक्रमण फैला देता है। कोविड-19 का सबसे अहम लक्षण निमोनिया है जो पूरे शरीर में जलन पैदा कर सकता है।  यह भी पढ़ें : संक्रमण खत्म, कष्ट जारी

इसके कारण धमनियों में प्लैक (मैल) जम जाता है जिससे वह अस्थिर हो जाती हैं और इसका नतीजा हार्ट फेल्योर के रूप में देखा जा सकता है। साइटोकाइन स्टॉर्म के कारण हृदय में मांसपेशियों की कोशिकाएं फैल सकती हैं और रक्त के थक्के बन सकते हैं। ये रक्त के थक्के हृदयाघात की वजह बन सकते हैं। कोविड-19 संक्रमितों में गैस्ट्रोइंटेस्टनल से संबंधित लक्षण देखे गए हैं। ये लक्षण एनोरेक्सिया (मनोवैज्ञानिक विकार जिसमें मोटा होने के डर से कोई व्यक्ति खाना कम कर देता है जिससे वह पतला और कमजोर हो जाता है), उल्टी, घबराहट, पेट में दर्द और गैस्ट्रोइंटेस्टनल में रक्तस्राव के रूप में परिलक्षित होते हैं। संक्रमितों में एक्यूट किडनी इंजरी (एसकेआई) देखी गई है जिसमें वायरस किडनी मेंब्रेन को जकड़कर चोट पहुंचाता है। एक अध्ययन (लेन एटएल 2020) बताता है कि कोविड-19 से रिकवर होने वाले मरीजों में घबराहट और अवसाद पाया जा रहा है। कुछ अध्ययन कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य के बीच भी संबंध स्थापित करते हैं।

रिकवर होने वाले मरीजों के फॉलोअप के लिए क्या करना चाहिए और फॉलोअप से भविष्य में क्या लाभ मिलेगा?

हालिया रिपोर्ट बताती हैं कि कोविड-19 मुख्य रूप से उम्रदराज और कमजोर इम्यून वाले लोगों पर असर डालता है। इस बात की प्रबल संभावना है कि जिन लोगों को पहले से बीमारियां हैं, वे रिकवरी के बाद भी स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां का सामना करेंगे। इन परेशानियों और घबराहट को दूर करने के लिए रिकवर लोगों का लंबा निरीक्षण बहुत जरूरी है। बीमारी के वास्तविक परिणाम जानने के लिए ऐसे मरीजों का फॉलोअप अध्ययन आवश्यक है। इससे बीमारियों का समय रहते पता चल जाएगा और बेहतर इलाज भी संभव होगा। इन परिस्थितियों में वैज्ञानिक और रिसर्चरों द्वारा समाज की भलाई के लिए रिकवर मरीजों का एपिडेमियोलॉजिकल सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। इस तरह के अध्ययन इस बात पर रोशनी डालेंगे कि रिकवरी के बाद लोगों को पूरी तरह ठीक करने के लिए किस प्रकार की देखभाल की जरूरत है। इस तरह के अध्ययन भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी पता लगाएंगे और टीके व दवाओं के विकास भी मददगार साबित होंगे। कोविड-19 से रिकवर हुए लोगों को भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है।