मध्यप्रदेश के उमरिया जिले की फूल बाई बैगा का बेटा आकाश चार साल का है। कोविड-19 त्रासदी से पहले आकाश की जिंदगी में इतनी परेशानियां नहीं थी। वह लॉकडाउन से पहले दिन में आंगनवाड़ी को मिलाकर पांच बार खाना खाता था। आंगनवाड़ी में अब खाना पूरी तरह से बंद हो गया है। फूल बाई कहती हैं कि अब आकाश अक्सर भूख की वजह से रोता रहता है।
लॉकडाउन में समस्या का सामना सतना जिले की गर्भवति महिला पूजा बाई कोल भी कर रही हैं। वह कहती हैं, "मैं पांच महीने की गर्भवती हूं और मेरा गर्भधारण अब तक आंगनवाड़ी केंद्र में दर्ज नहीं हुआ है। मेरे पति मजदूर हैं और सब कुछ बंद होने की वजह से घर की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। मुझे आंगनवाड़ी से लाभ नहीं मिल रहा है। सब्जियां न होने से हम चावल और नमक के साथ सूखी रोटी खाने को हम मजबूर हैं।”
महिलाओं के साथ लॉकडाउन में पेश आने वाली ऐसी कई समस्याएं सामने आई हैं 45 दिन तक 6 जिलों के 33 परिवारों के ऊपर गहन शोध से। ये जिले हैं रीवा, पन्ना, सतना, उमरिया, निवाड़ी और शिवपुरी। इस शोध को 4 जून को भोपाल में शोधकर्ता संस्था विकास संवाद ने जारी किया। शोध के नतीजे कहते हैं कि गर्भवती माताओं की प्रति दिन शुद्ध कैलोरी में 67 फीसदी (2157 कैलोरी) स्तनपान करवाने वाली माताओं में 68 फीसदी (2334 कैलोरी) और बच्चों में 51 फीसदी (693 कैलोरी) प्रतिदिन की कमी दर्ज की गई है।
प्रभावित हुआ बच्चों का पोषण
अध्ययन में आया कि 35 प्रतिशत परिवारों को अध्ययन अवधि तक कोई टेक होम राशन (टीएचआर) का पैकेट नहीं मिला, जबकि 38 प्रतिशत परिवारों को दो पैकेट ही मिले। इसी तरह 3 से 6 वर्ष के साठ प्रतिशत बच्चों को रेडी टू ईट फूड नहीं मिला है, जिन्हें मिला उनमें 10 प्रतिशत को 500 ग्राम सत्तू मिला है जबकि 30 प्रतिशत को 1,200 ग्राम (600 ग्राम दो हफ्ते के लिए) सत्तू ही मिला है। लॉकडाउन से पूर्व मां अपने बच्चे को औसतन 6 बार स्तनपान करवा पाती थी जो लॉकडाउन में बढ़कर दस से बारह बार हो गया। महिलाओं ने यह बताया है कि घर में पर्याप्त भोजन नहीं है और बच्चे को बार-बार भूख लगने के कारण, वो अब अधिक स्तनपान करवा रही हैं, हालांकि इसके लिए मांओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था और इसका असर उनके शरीर पर भी पड़ेगा। अध्ययन में शामिल 91% परिवारों के पास वर्तमान में रोज़गार के स्थाई साधन नहीं हैं। 79% अनुसूचित जनजाति, 12% अन्य पिछड़ा वर्ग और 9% अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। इनमें से 64% परिवारों में से कोई न कोई सदस्य पलायन पर जाता है।
परिवार में कर्ज का बोझ
कोविड के चलते लोग कर्ज में भी आए हैं। 24 प्रतिशत परिवारों पर कुल 21,250 रुपए का कर्ज है। 12 प्रतिशत पर 3000-4000 रुपए के बीच कर्ज और 9 प्रतिशत परिवारों ने 1000 रुपए से भी कम उधार लिया है। यह कर्ज रोजमर्रा की जरूरतों जैसे अनाज और सब्जियों के साथ-साथ तेल, मसाले और खरीदने के लिए लिया गया। अध्ययन में शामिल 45% परिवारों पर कुछ न कुछ कर्ज है।