जलवायु में आ रहे बदलावों और बढ़ते तापमान के चलते जीका वायरस उन ठन्डे क्षेत्रों में भी फैल सकता है| जहां पहले इसके फैलने की सम्भावना कम थी| शोधकर्ताओं के अनुसार 2080 तक तापमान में आ रहे बदलावों के चलते यह वायरस दक्षिण और पूर्वी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान के दक्षिणी हिस्सों और उत्तरी चीन तक फैल सकता है| यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग ऑफ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ है|
इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मॉडलिंग से प्राप्त सबसे गंभीर परिणामों को लिया है| साथ ही शोधकर्ता मार्कस ब्लागरोव और उनके सहयोगियों ने मच्छरों की दो आम प्रजातियों एडीस एल्बोपिक्टस और ओक्लेरोटेटस डिट्रिटस पर तापमान में आ रहे इस बदलाव के असर का अध्ययन किया है| गौरतलब है कि मच्छरों की यह दो प्रजातियां उन क्षेत्रों में जहां तापमान ज्यादा होता है, इस वायरस को फैला सकती हैं| शोध के अनुसार जिन क्षेत्रों की जलवायु सर्द है वहां आने वाले दशकों में तापमान बढ़ जायेगा, जो इन मच्छरों को पनपने के लिए आदर्श जलवायु प्रदान कर देगा|
शोधकर्ताओं के अनुसार मच्छरों के अंदर शरीर में मौजूद गर्मी को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है| इसलिए उनके शरीर का तापमान वातावरण के साथ कम ज्यादा होता रहता है| यही वजह है कि यदि वातावरण का तापमान ज्यादा होता है, तो मच्छरों के शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है| जिसकी मदद से इन मच्छरों के शरीर में मौजूद जीका वायरस को भी बढ़ने और फैलने का मौका मिल जाता है| शोधकर्ताओं ने जब मच्छरों में 17 से 31 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इस वायरस के विकास का अध्ययन किया तो पता चला कि यह वायरस 19 से 31 डिग्री सेल्सियस के तापमान में जिन्दा रह सकता है| पर 17 डिग्री सेल्सियस में इसका विकास संभव नहीं है|
गौरतलब है कि मच्छरों में यह वायरस उनकी लार ग्रंथियों में मौजूद था, पाया गया था जिस वजह से वो ज्यादा संक्रामक था| शोधकर्ताओं के अनुसार यही वजह है कि इस वायरस का प्रकोप उन देशों में ज्यादा होता है, जहां गर्मी ज्यादा होती है| साथ ही यह साल के उस समय में जब तापमान अधिक होता है, तो इसके फैलने का जोखिम भी ज्यादा होता है| शोध के अनुसार यदि 2020 से कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर भी दी जाती है और वो सदी के अंत तक बिलकुल ख़त्म भी हो जाये तो भी इस वायरस के फैलने का खतरा चीन, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में बना रहेगा|
जीका वायरस एक वेक्टर जनित रोग है जोकि मच्छरों के काटने से होता है| इसके लक्षण डेंगू की तरह ही होते हैं| जिसमें रोगी में थकान, बुखार, लाल आंखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और शरीर पर लाल चकत्ते जैसे लक्षण दिखाई देते हैं यह वायरस मुख्यतः एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। जो आमतौर में दिन में काटते है। करीब 60 से 80 फीसदी मामलों में इसके लक्षण दिखाई ही नहीं देते हैं| यह वायरस पहली बार 1947 में यूगांडा में बंदरों में पाया गया था| इसके बाद 1952 में यूगांडा और तंज़ानिया में इंसानों के अंदर इसके लक्षण पाए गए थे|
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अब तक यह वायरस अफ्रीका, अमेरिका और एशिया पैसिफिक में सामने आ चुका है| 1960 से 1980 तक अफ्रीका और एशिया में इस वायरस के छुटपुट मामले ही सामने आये थे इसका सबसे पहला प्रकोप 2007 और 2013 में माइक्रोनेशिया में सामने आया था| मार्च और अक्टूबर 2015 में ब्राजील में यह बड़े पैमाने पर फैल गया था| रिकॉर्ड के अनुसार अब तक कुल 86 देशों में इसके मामले सामने आ चुके हैं|
सितम्बर 2018 में भारत के जयपुर शहर में भी संक्रमण का मामला सामने आया था वहीं नवंबर 2018 में मध्यप्रदेश में 120 मामले सामने आये थे जबकि राजस्थान में 160 लोग संक्रमित पाए गए थे| इस लिहाज से देखा जाये तो भारत भी इस वायरस की जद में है| और इसकी रोकथाम और उससे जुड़े उपायों को करना जरुरी है|