स्वास्थ्य

सितंबर तक देश में बेकार हो सकती हैं लाखों कोविड-19 वैक्सीन

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 28 जून, 2022 को बताया कि राज्यों के पास कोविड-19 वैक्सीन की 11.81 करोड़ से ज्यादा खुराकें स्टॉक में और बिना उपयोग की रखी हुई हैं

Taran Deol

भारत में अगस्त-सितंबर 2022 तक कोविड-19 वैक्सीन की लाखों खुराकें बेकार हो सकती हैं क्योंकि देश में प्राथमिक टीकाकरण की गति थम रही है और बूस्टर लेने की दिशा में भी प्रगति नहीं हो रही है।  

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 28 जून, 2022 को बताया कि देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कोविड-19 वैक्सीन की 11.81 करोड़ से ज्यादा खुराकें स्टॉक में और बिना उपयोग की रखी हुई हैं, जिन्हें वितरित किया जाना है। यह स्पष्ट नहीं है कि ये खुराक कब तक खराब होंगी।

गौरतलब है कि देश की टीका लेने लायक आबादी में से लगभग 65.43 प्रतिशत ने टीकाकरण का प्रारंभिक प्रोटोकॉल पूरा कर लिया है यानी उसने टीके की दो खुराकें ले ली हैं। अवर वर्ल्ड इन डाटा के मुताबिक, इस आंकडे़ में इस साल अप्रैल के बाद से मुश्किल से पांच फीसदी की वृद्धि हुई है।

दूसरी ओर, बूस्टर डोज, जो 18 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध है, उसे 27 जून तक के आंकड़ों के हिसाब से प्रति सौ लोगों में से महज 3.07 लोगों ने लिया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा साझा किए गए नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2021 में कोविड-19 टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद से अब तक 1.97 अरब खुराकें दी जा चुकी हैं। इनमें से 4.47 करोड़ ऐहतियाती खुराके हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के मुख्य कार्यकारी अदार पूनावाला ने इस साल की शुरुआत में दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में सीएनबीसी-टीवी18 से कहा था: ‘हम टीकों की कम से कम बीस करोड़ खुराकें खो देंगे। हमें उन्हें नष्ट करना पड़ सकता है क्योंकि वे इस साल अगस्त-सितंबर तक बेकार जाने वाली हैं।’

हेल्थ एनालिटिक्स फर्म एयरफनिटी के मुताबिक, जी-7 के देशों और यूरोपीय संघ द्वारा खरीदी गईं कोविड-19 वैक्सीन की 24.1 करोड़ खुराकें, जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया, मार्च 2022 में बेकार हो गई।

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित एसआईआई की कोविशील्ड और नोवावैक्स द्वारा विकसित वैक्सीन की एक उप-इकाई कोवोवैक्स का उत्पादन करता है। इसने दिसंबर 2021 में कोविशील्ड का उत्पादन करना बंद कर दिया था।

भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की भंडार से लेकर उपयोग करने तक की अवधि एक साल की है जबकि देश में सबसे ज्यादा बांटी जाने वाली कोविशील्ड के लिए यह अवधि नौ महीने की है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया - “भारत बायोटेक पिछले कई महीनों से निजी अस्पतालों के साथ मिलकर स्टॉक को खत्म करने और एक्सपायर्ड टीकों की मात्रा को कम करने के लिए काम कर रहा है। हम एक्सपायर्ड डोज को बदल रहे हैं और उनके स्टॉक को खत्म करने में भी मदद कर रहे हैं।’

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन की कितनी खुराकें बेकार जाएंगी।

रूस में निर्मित स्पूतनिक वी और बॉयोलाजिकल ई की कॉर्बेवैक्स, अन्य वैक्सीन हैं, जो भारत में उपलब्ध हैं। मई 2022 में, कॉर्बेवैक्स के भारत में आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (ईयूए) मिलने के तुरंत बाद, इस दवा कंपनी ने अपनी सिगल डोज टीके की कीमत 990 रुपये प्रति खुराक से घटाकर 400 रुपये कर दी, जिसमें टैक्स और वैक्सीन प्रशासन शुल्क शामिल थे।

उसके ऐसा करने के पीछे मुख्य वजह यह थी कि उसने वैक्सीन की बर्बादी रोकने के लिए निजी अस्पतालों पर काफी बोझ डाल दिया था।

भारत के औषधि महानियंत्रक ने जाइडस की जायकोवी-डी वैक्सीन को भी मंजूरी दी है, जो कोविड-19 के खिलाफ दुनिया का पहली डीएनए वैक्सीन है।

जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल-डोज वैक्सीन को भी भारत में उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई है और इसकी आपूर्ति बायोलॉजिकल ई द्वारा की जानी थी, जबकि भारतीय फार्मा कंपनी सिप्ला को मॉडर्ना वैक्सीन आयात करने के लिए अधिकृत किया गया था। इनमें से कोई भी वैक्सीन फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

वैक्सीन की बर्बादी को लेकर बढ़ रही चिंता के बीच एयरफिनिटी से मिले आंकड़े दिखा रहे हैं कि उच्च- आय वाले देशों में वैक्सीन की साठ करोड़ खुराक का स्टॉक है। पिछले महीने तक के आंकड़ों के हिसाब से उच्च-मध्यम आय वाले देशों में यह स्टॉक 61.3 करोड़ खुराक का जबकि निम्न-मध्यम आय वाले देशों में यह स्टॉक 65.7 करोड़ खुराक का है। निम्न आय वाले देशों के पास स्टॉक के तौर 1.09 करोड़ खुराकें उपलब्ध हैं।

इतने बड़े स्टॉक के बावजूद वैक्सीन को लेकर गैर-बराबरी कायम है। रिपोर्टें दिखाती हैं कि वैक्सीन के बर्बाद जाने की मुख्य वजह इनका असमान वितरण है। कई बार विकासशील देशों को यह तब मिलती हैं, जब उनके खराब हो जाने का समय काफी नजदीक आ चुका होता है, यहां तक कि कई बार तो वह समय निकाल जाने के बाद ये गरीब देशों तक पहुंचती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, एक टीके के खराब हो जाने की तारीख, ‘इस तथ्य को दर्शाती है कि किसी दिए गए भंडारण तापमान पर टीका कितनी देर तक अपनी शक्ति और स्थिरता बनाए रखता है और इसलिए इसकी कितनी प्रभावशीलता है।’

हालांकि यह तारीख निकल जाने के बाद वैक्सीन असुरक्षित या खतरनाक नहीं है। भारत के औषधि महानियंत्रक ने पिछले साल कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों वैक्सीनों की भंडारण से लेकर इस्तेमाल होने तक की अवधि को तीन महीने बढ़ा दिया था।