उत्तर प्रदेश में बहराइच जिला निवासी रवि कुमार 12वीं कक्षा में जीव विज्ञान के छात्र हैं। वह इन दिनों अपने जीव विज्ञान की पुस्तक में दी गई एक जानकारी को लेकर बेहद हैरान और कौतूहल में हैं। दरअसल उनके सिलेबस की किताब में कोरोना वायरस के संक्रमण का नुस्खा मौजूद है। यही नुस्खा इन दिनों सोशल मीडिया पर बेहद चर्चा का विषय बना हुआ है। व्हाट्स एप के जरिए एक-दूसरे के पास भेजा जा रहा है। संदेश बिना रुकावट हजारों मील का सफर तय कर रहा है। हजारों लोगों की तरह वह भी इस किताब में कोरोनावायरस संक्रमण और लिखी गई दवाइयों की जानकारी से संशकित नहीं हैं। क्या वाकई किताब में संक्रमण को लेकर दी गई जानकारी पूरी तरह सही है और आखिर किताब में कोरोना वायरस के जिक्र से हैरानी क्यों है?
रवि के हाथों में डॉ रमेश गुप्ता की “आधुनिक जंतु विज्ञान” पुस्तक है। यह बेहद मोटी है और 852 रुपये कीमत वाली महंगी किताब है। पूर्णतया संशोधित और परिवर्धित नवीन संस्करण उनके हाथ में है। किताब में “स्वास्थ्य एवं रोग” नाम से अध्याय है। वे पृष्ठ पलटते हैं पेज नंबर 1106 पर जुकाम (कोल्ड) कॉलम में दी गई जानकारी को दिखाते हैं।
कोरोनावायरस के ईलाज वाले दावे के साथ व्हाट्स एप और सोशल मीडिया जिस पेज का जिक्र किया जा रहा है वह यही है। बस एक चीज बदली हुई मिली। पृष्ठ संख्या में अंतर मिला, विषय वस्तु वही रही। सोशल मीडिया पर फैलाए गए पेज की पृष्ठ संख्या 1072 है और उसके निचले हिस्से में जुकाम (कोल्ड) की चर्चा में कोरोनावायरस का जिक्र है। साथ ही अंतिम वाक्य में दवाईयां लिखी गई हैं। संभवतः डॉ रमेश शर्मा लिखित आधुनिक जंतु विज्ञान का पुराना संस्करण हो।
जस का तस किताब में लिखा गया है :
साधारण जुकाम अनेक प्रकार के विषाणुओं द्वारा होता है। इनमें 75 फीसदी में रहीनोवाइरस तथा शेष में कोरोनावायरस होता है। ....इस रोग के प्रमुख लक्षणों श्वसन मार्ग की म्यूकस झिल्ली में सूजन, नासाकोश में कड़ापन, नाक बहना, छींकना, गले में खराश आदि हैं जो लगभग एक सप्ताह तक रहते हैं, यदि खांसी है तो दो सप्ताह तक रहते हैं। इस रोग का संक्रमण छींकने से वायु में मुक्त बिन्दुकणों द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त यदि संक्रमित व्यक्ति दरवाजों के हैंडल, घुंडियो (नॉब) आदि को छूता है तो वाइरस कण वहां पर लग जाते हैं और वहां से स्वस्थ्य व्यक्ति में संक्रमण हो जाता है। इस रोग के उपचार हेतु एस्पिरिन, एन्टिहिस्टेमीन, नेजल स्प्रे आदि लाभप्रद होता है।
रवि कहते हैं कि अब यह पुस्तक यूपी बोर्ड में नहीं पढ़ाई जाती है लेकिन यह हम सभी छात्रों के पास है। बड़ी तादाद में छात्र अब भी इसे पढ़ते हैं। इन दिनों एनसीआरटी की विज्ञान पुस्तकें यूपी बोर्ड में पढ़ाई जा रही हैं। वे कहते हैं कि यही तो कोरोनावायरस के लक्षण बताए जा रहे हैं यहां तो दवाई भी कबसे लिखी हुई है। यहां से मामला थोड़ा गंभीर हो जाता है। क्योंकि दवाई किसी को भी और कभी भी चिकित्सक की सलाह के बाद ही खानी चाहिए।
दरअसल मौजूदा वैश्विक महामारी के लक्षण कुछ हद तक और उसके प्रसार का तरीका किताब की जानकारी से मेल खाता है। इस मामले में आधुनिक जंतु विज्ञान की पुस्तक सही है लेकिन दवाइयों के लाभप्रद होने की सलाह बिल्कुल गलत है। लेकिन यह सामान्य जुकाम का वायरस नहीं है और न ही कोई तन्हा कोरोनावायरस। जिसे नासमझी में लोगों के जरिए फैलाया जा रहा है। इसके लिए हमें आधिकारिक और तथ्यात्मक जानकारी चाहिए।
अमेरिका का सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) इस कोरोनावायरस की आधिकारिक और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है।
ह्यूमन कोरोनावायरस और उसके प्रकार
मानव कोरोनावायरस किसी ताज (क्राउन) की सतह पर सीधे खड़े लचीले रेशों जैसे है। यानी ऐसे क्राउन जिनमें चारों तरफ कांटे निकले हों। इस आकृति को ही इन्हें हम टीवी में आजकल देख रहे हैं। चार मुख्य तरह के कोरोनोवायरस समूह हैं। इनमें अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा शामिल हैं। इसकी पहली पहचान 1960 के मध्य दशक में हुई। सात तरह के कोरोनावायरस हैं जो लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
चार सामान्य कोरोनावायरस है जिससे दुनिया में लोग संक्रमित होते रहते हैं लेकिन यह चिकित्साजगत के लिए जानलेवा नहीं हैं। इनमें 229ई (अल्फा कोरोनावायरस), एनएल63 (अल्फा कोरोनावायरस), ओसी43 (बीटा कोरोनावायरस), एचकेयू1 बीटा कोरानावायरस हैं।
वहीं, खतरनाक मानव कोरोनावायरस में मर्स और सार्स दो कोरोनावायरस शामिल हैं। सार्स का दूसरा जिसे नोवेल कोविड-19 नाम दिया गया है जिससे हम लड़ रहे हैं और हमारे पास कोई वैक्सीन या दवा मौजूद नहीं है। मर्स-सीओवी ( बीटा कोरोनावायरस है : मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम अथवा मर्स)। सार्स – सीओवी (बीटा कोरोनावायरस है : सीवियर एक्यूट रेस्पिरेयटरी सिंड्रोम अथवा सार्स )। सार्स सीओवी-2 (नोवेल कोरेनावायरस 2019 अथवा कोविद-19)।
कभी-कभी कोरोनावायरस पशुओं को संक्रमित करते हैं और वह विकसित होकर व्यक्तियों को बीमार बना सकते हैं। यानी ह्यूमन कोरोनावायरस में तब्दील हो सकते हैं। हमारे पास तीन उदाहरण हैं। जिसमें ताजा 2019-एनसीओवी और दो पुराने सार्स – सीओवी, मर्स – सीओवी शामिल हैं।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एंटी मलेरिया और एंटीबायोटिक दवाओं के एक समूह को कोरोना संक्रमण का इलाज बताया था। हालांकि इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई थी। अब भी ऐसी कोई दवा का पूर्ण रूप से दावा नहीं किया जा सकता कि वह नोवेल कोविड-19 का इलाज है।
कोरोनावायरस के आगे लिखे गए नोवेल का क्या अर्थ है? मशहूर महामारी विशेषज्ञ लैरी ब्रिलियंट जिन्होंने दुनिया में स्मॉल पाक्स और पोलियो के आखिरी मामलों का अनुभव किया है, उनका कहना है कि जब तक हम बड़े पैमाने पर जांच नहीं करते हैं तब तक हमें कोई सफलता शायद ही हासिल हो। नोवेल का अर्थ ही यह है कि हम अभी इस वायरस के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते हैं।