दिसंबर 2019 में राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद देश में एक बार फिर से यह बहस खड़ी हो गई कि क्या बड़े खासकर सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती हो रहे बच्चे क्या सुरक्षित हैं? डाउन टू अर्थ ने इसे न केवल आंकड़ों के माध्यम से समझने की कोशिश की, बल्कि जमीनी पड़ताल करते हुए कई रिपोर्ट्स की एक सीरीज तैयार की है। सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि अस्पतालों में औसतन हर मिनट में एक बच्चे की मौत हो रही है। इसके बाद जमीनी पड़ताल शुरू की गई। इसमें आपने पढ़ा, राजस्थान के कुछ अस्पतालों की दास्तान कहती ग्राउंड रिपोर्ट । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, मध्यप्रदेश के अस्पतालों का हाल। अगली कड़ी में आपने उत्तरप्रदेश के कुछ अस्पतालों की कहानी पढ़ी। अब पढ़ें, गुजरात के दो अस्पतालों की दास्तान बताती कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट -
गुजरात के राजकोट स्थित सरकारी सिविल अस्पताल की एक रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2019 में 111 नवजात शिशु की मृत्यु हुई है। 2019 की अंतिम तिमाही में यह आंकड़ा 269 था। नवंबर में 87 और अक्टूबर में 71 शिशुओं की मृत्यु हुई। अधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में राजकोट सिविल अस्पताल में 1235 शिशुओं की मृत्यु हुई।
राज्य सरकार के स्वास्थ विभाग के आंकड़े बताते हैं अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी वर्ष के अंतिम तिमाही में 253 शिशुओं की मृत्यु हुई, जबकि पूरे साल 2019 में अहमदाबाद सिविल अस्पताल में 1002 शिशुओं की मृत्यु हुई।
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर गुणवंत राठौड़ ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में इसे सामान्य मृत्यु दर बताया है। उनके अनुसार सिविल अस्पताल में सुविधाओं और स्टाफ की कमी नहीं है। हमारे यहां 1200 बेड और 68 वार्मर है। जो ज़रूरत से अधिक है। वर्ष 2018 में अहमदाबाद सिविल अस्पताल में 4512 शिशु एनआईसीयू में दाखिल किये गए थे, जिसमें से 1646 शिशु (36.48 प्रतिशत) जीवित नहीं रहे।
वर्ष 2019 में अस्पताल ने गंभीरता दिखाई तो 4732 बच्चे एनआईसीयू में दाखिल हुए, जिसमें से 21.17 प्रतिशत अर्थात 1002 बच्चों की मृत्यु हुई। इन आंकड़ों में जनरल पेडियाट्रिक वार्ड और बर्थ के समय हुई मृत्यु के आंकड़े शामिल नहीं हैं। डॉक्टर गुणवंत राठौर कहते हैं कि हमारे यहां पिछले तीन वर्ष से लगातार शिशु मृत्यु दर में कमी आई है।
उनका दावा तो सही है, लेकिन 4732 शिशु में से एनआईसीयू में इलाज के दौरान 1002 बच्चों की मौत को सामान्य नहीं माना जा सकता, जबकि अस्पताल न केवल बड़ा है, बल्कि अत्याधुनिक सुविधाएं भी यहां उपलब्ध हैं। डॉक्टर राठौर खुद कहते हैं कि अस्पताल में सुविधाओं और स्टाफ की कमी नहीं है लेकिन गुजरात विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल जिनके पास स्वास्थ विभाग भी है ने बताया कि राज्य की सरकारी/जनरल अस्पतालों में 4644 रिक्त स्थान हैं। इसी प्रकार से सामूहिक स्वास्थ केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों में क्रमशः 3916 और 3495 जगह खाली है। श्रेणी 3 और 4 की अधिकतर नियुक्ति ठेकेदारी और आउटसोर्सिंग से की गई है। श्रेणी 1,2 और 3 में अब भी 45 प्रतिशत स्थान रिक्त हैं।
अहमदाबाद के सरकारी/जनरल अस्पताल में 3805 रिक्त स्थानों को भरने की मंजूरी दी गई थी। इनमें से 833 अब भी रिक्त हैं। इसी प्रकार से अहमदाबाद सिविल अस्पताल की सरकार द्वारा मंजूर भर्ती 2650 में से 833 स्थान अभी भी रिक्त हैं। उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने विधान सभा में माना कि राज्य में लगभग 30 प्रतिशत बाल मृत्यु दर है।
जानकार जन्म के बाद शिशु अवस्था में अस्पताल में मृत्यु के लिए कुपोषण, अकाल जन्म, माँ का कुपोषित होना, एनआईसीयू की क्षमता की कमी और सुविधाओं की कमी को मानते हैं। वर्ष 2019 में एक प्रश्न के उत्तर में विधानसभा को बाल एव्ं महिला कल्याण मंत्री ने बताया कि राज्य में 142142 बच्चे कुपोषित हैं। कम वज़न वाले 118041 और बहुत अधिक कम वज़न वाले 24101 बच्चे हैं। कुपोषण की अधिक समस्या आदिवासी बहुल दक्षिण गुजरात में है। दिये गए आंकड़े के अनुसार सबसे अधिक कुपोषित बच्चे दाहोद और नर्मदा जिले में हैं जिनकी संख्या क्रमशः 1491 और 12676 है। गुजरात में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बच्चों के अलावा महिलाओं में भी भी वज़न और खून की कमी होना एक बड़ी समस्या है।
वर्ष 2017-18 में गुजरात सरकार ने स्वास्थ क्षेत्र के लिए 4 प्रतिशत बजट आवंटित किया था, जबकि 2018-19 में 4.5 प्रतिशत आवंटित किया गया। जो देश के सभी राज्यों की औसत 4.8 प्रतिशत से भी कम है।
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