स्वास्थ्य

क्या आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेवार है वातावरण में बढ़ती नमी

शोध से पता चला है कि महिलाएं और युवा विशेष रूप से बढ़ती आर्द्रता से प्रभावित थे, जो तापमान के साथ-साथ कहीं ज्यादा बढ़ती जा रही है

Lalit Maurya

क्या वातावरण में बढ़ती नमी आत्महत्या के लिए जिम्मेवार हो सकती है। बात चौंका देने वाली है पर हाल ही में इसपर किए एक शोध से पता चला है कि ऐसा हो सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं अध्ययन से यह भी पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते वातावरण में बढ़ती नमी, लू की तुलना में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए कहीं ज्यादा जिम्मेवार है।

जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित इस शोध में यह भी सामने आया है कि विशेष रूप से महिलाएं और युवा बढ़ती गर्मी और नमी से कहीं ज्यादा प्रभावित हुए थे। वातावरण में बढ़ती नमी उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। गौरतलब है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसके साथ नमी और लू की तीव्रता और आवृत्ति में भी वृद्धि हो रही है।

हवा में मौजूद नमी जिसे आद्रता के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो लू से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकती है क्योंकि इसकी वजह से शरीर से निकलने वाला पसीना जल्दी नहीं सूखता, जिस वजह से हमारे शरीर को कहीं ज्यादा गर्मी महसूस होती है। गौरतलब है कि पसीना हमारे शरीर को प्राकृतिक रूप से ठंडा करने की प्रणाली का हिस्सा है। यह गर्मी बढ़ने पर हमारे शरीर के अंगों को उससे बचाता है। ऐसे में वातावरण में बढ़ती उमस और नमी हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है।  

शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। अनुमान है कि 2016 में करीब 110 करोड़ लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ थे। बढ़ती गर्मी और आद्रता, शरीर के तापमान नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित करती है, जिससे उनको बेचैनी होने लगती है, यह बढ़ी हुई परेशानी पहले ही मानसिक विकारों से जूझ रहे लोगों के लिए परिस्थितियों को और मुश्किल बना देती है।   

1979 से 2016 के बीच 60 देशों के आंकड़ों पर आधारित यह शोध ससेक्स, जिनेवा, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस शोध के मुताबिक 40 देशों में आत्महत्या और आद्रता के बीच मजबूत सम्बन्ध देखा गया था।

इन देशों में दक्षिण अमेरिकी देश गुयाना, फ्रैंच गुयाना, पैराग्वे और  उरुग्वे शामिल हैं, जबकि एशिया में थाईलैंड और जापान शामिल हैं। वहीं यूरोप के स्पेन, स्वीडन, बेल्जियम और लक्सम्बर्ग जैसे देशों में नमी और आत्महत्या के बीच सम्बन्ध दर्ज किया गया था। वहीं यदि अफ्रीका को देखें तो इस लिस्ट में मिस्र और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। 

दुनिया भर में हर साल 7 लाख से ज्यादा लोग करते हैं आत्महत्या

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में हर साल 7.03 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं, जबकि कहीं ज्यादा इसका प्रयास करते हैं। जिसका मतलब है कि हर 45 सेकंड में एक जान आत्महत्या करने के कारण जा रही है। यह एक त्रासदी के समान है जो न केवल परिवारों बल्कि समाज और पूरे देश को प्रभावित करती है। यदि 2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो 15 से 29 वर्ष के युवाओं में यह मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण थी।

ऐसा नहीं है कि केवल अमीर देशों में ही लोग आत्महत्या करते हैं, बल्कि दुनिया के सभी क्षेत्रों में इसके मामले सामने आए थे। वास्तव में 2019 के दौरान दुनिया में दर्ज किए गए आत्महत्या के कुल मामलों में से 77 फीसदी मामले निम्न और माध्यम आय वाले देशों में सामने आए थे। 

देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, साथ ही लोगों में मानसिक तनाव बढ़ रहा है, उसके चलते यह समस्या और बढ़ सकती है।  ऐसे में यह जरुरी है कि भविष्य की स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं में इन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।