स्वास्थ्य

तफ्तीश: कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए सरकार कितनी दोषी?

भारत में कहर बरपाने वाली कोविड-19 की दूसरी लहर के क्या कारण रहे? हमने शुरुआती संकेतों को कैसे नजरअंदाज कर दिया? डाउन टू अर्थ की तफ्तीश का दूसरा भाग पढ़ें-

DTE Staff

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए आखिर जिम्मेवार कौन हैं। यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने एक व्यापक तफ्तीश की। इनमें  दिल्ली से रिचर्ड महापात्रा, बनजोत कौर, विभा वार्ष्णेय, शगुन कपिल, किरण पांडे, विवेक मिश्रा और रजित सेनगुप्ता के साथ वाराणसी से ऋतुपर्णा पालित, भोपाल से राकेश कुमार मालवीय, नुआपाड़ा से अजीत पांडा, तिरुवनंतपुरम से केए शाजी, कोलकाता से जयंत बसु, अहमदाबाद से जुमाना शाह, बंगलुरु से तमन्ना नसीर और चेन्नई से ऐश्वर्या सुधा गोविंदराजन ने भागीदारी निभाई। पहले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह दूसरी लहर में पूरे देश में हालात बन गए थे, रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें। पढ़ें, अगला भाग -

महामारी में दूसरी लहर कैसे आएगी, इसका अनुमान लगाने का कोई निश्चित तरीका नहीं था। अभी भी भारत के लिए जरूरी सवाल यह था कि दूसरी लहर के सामने देश इतना असहाय क्यों दिख रहा था? हमारे पास यह सवाल पूछने के कारण हैं। दुनिया भर के देश पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर को घातक बता रहे थे। पिछली शताब्दी में आया स्पैनिश फ्लू और यहां तक ​​कि अन्य हालिया महामारियों, जैसे कि 2002 के सार्स प्रकोप और 2009 का एच1एन1 इन्फ्लूएंजा से पता चलता है कि इन महामारियों की कई लहर हो सकती हैं। तब भारत को इस बीमारी से लड़कर जीत जाने की बधाई देने की क्या जल्दी थी? वैज्ञानिक समुदाय और राजनीतिक नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का इस महामारी पर अंकुश लगाने के विजन के बीच अंतर रहा है।

भारत ने सदी की महामारी पर काबू पाने के साहस के साथ 2021 में प्रवेश किया। सितंबर 2020 में संक्रमण ग्राफ के नीचे आने से पहले नए मामले एक दिन में 93,000 पर पहुंच गए थे। इस साल फरवरी के मध्य में, भारत एक दिन में लगभग 12,000 मामले दर्ज कर रहा था, जो यूरोप के अमीर देशों की तुलना में बहुत कम था। जल्द ही, लॉकडाउन को अनलॉकडाउन से बदल दिया गया और देश लगभग अपनी कोविड-19 पूर्व स्थिति में लौट आया।

सरकारों की लापरवाही भी फिर से शुरू हो गई। कई राज्यों ने मार्च से जुलाई 2020 के बीच निर्मित आपातकालीन कोविड-19 उपचार सुविधाओं को हटाना शुरू कर दिया। मध्य प्रदेश ने पिछले साल कोविड-19 रोगियों के लिए 40,000 अतिरिक्त बेड बनाए थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2021 तक उनमें से कम से कम 50 प्रतिशत को नष्ट कर दिया गया था। इसी तरह, उत्तर प्रदेश ने 0.15 मिलियन बेड के साथ 503 कोविड-19 अस्पताल स्थापित किए थे, लेकिन इस साल फरवरी तक सिर्फ 17,000 बेड वाले 83 अस्पताल ही काम कर रहे थे। लोगों ने लक्षणों की रिपोर्ट करना जारी रखा और ठीक भी होते गए। लापरवाही के कारण जांच में भी कमी आई।

दूसरी लहर के बीच भी, हरियाणा, पंजाब, पुडुचेरी, गोवा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड ने आईसीयू बेड की संख्या में कमी की। 2 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में पेश किए गए स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा और पंजाब, जहां अभी भी मामले बढ़ रहे हैं, में पिछले एक साल में आईसीयू बेड में क्रमशः 79 और 70 प्रतिशत की कमी आई है। इन राज्यों ने वेंटिलेटर की संख्या भी क्रमशः 73 और 78 प्रतिशत कम कर दी। आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र सहित 26 राज्यों ने वेंटिलेटर की व्यवस्था करते हुए अपने महत्वपूर्ण देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है वहीं नौ राज्यों में यह संख्या कम हुई है। कुल मिलाकर, भारत ने अप्रैल 2020 से अब तक 10,461 वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाई है।

लड़ाई अधूरी, जीत की घोषणा पूरी

अक्टूबर 2020 में कोविड-19 इंडिया नेशनल सुपरमॉडल कमेटी की तरफ से पहला आश्वासन आया कि भारत लड़ाई जीत रहा है। यह कमेटी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा नियुक्त 10-सदस्यीय पैनल से बनी है। कमेटी ने एक स्टडी की थी, जिसका टाइटल था, “प्रोग्रेशन ऑफ द कोविड-19 पैनडेमिक इन इंडिया: प्रोगनॉसिस एंड लॉकडाउन इम्पैक्ट”। इस स्टडी में कमेटी ने कहा कि अगर मार्च 2020 में कड़ा राष्ट्रीय लॉकडाउन नहीं लगा होता, तो जून 2020 में 14 मिलियन से अधिक मामले होते। जून वह समय था, जब प्रतिबंधों को धीरे-धीरे वापस ले लिया गया था।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद के प्रोफेसर और कमेटी के चेयरपर्सन प्रोफेसर एम विद्यासागर ने कहा, “जब तक स्वास्थ्य सुविधाओं के चरमराने का खतरा न हो, तब तक कोविड​​​​-19 प्रसार को रोकने के लिए जिला या राज्य स्तर पर कोई नया लॉकडाउन नहीं लगाया जाना चाहिए।” ये बातें उन्होंने 18 अक्टूबर, 2020 को मीडिया के समक्ष कही थी, जो सुपरमॉडल, ससेप्टेबल, असिम्प्टोमैटिक, इंफेक्टेड, रीमूव्ड (एसएआईआर) पर आधारित है। विद्यासागर ने कहा, “यदि सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है, तो अगले साल फरवरी के अंत तक न्यूनतम सक्रिय संक्रमण के साथ महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है। सक्रिय कोरोनावायरस मामलों का चरम सितंबर के अंत में लगभग 1 मिलियन था और इस समय तक, भारत इलाज और महत्वपूर्ण उपकरण सूची के मामले में महामारी से निपटने के लिए कहीं बेहतर रूप से तैयार था। संक्षेप में कहें तो लॉकडाउन ने कर्व को समतल (फ्लैटेन द कर्व) कर दिया।”

उसी दिन, नीति आयोग के सदस्य और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख वीके पॉल ने एक तरफ जहां ये कहा कि अधिकांश राज्यों में महामारी का प्रसार स्थिर हो गया है, वहीं उन्होंने सर्दियों के महीनों में दूसरी लहर के आने की आशंका भी जताई। उन्होंने उन यूरोपीय देशों का उदाहरण दिया, जहां सर्दियों की शुरुआत के साथ ही महामारी की दूसरी लहर शुरू हो चुकी थी। विद्यासागर की तरह ही उन्होंने भी चेतावनी दी “त्योहारों के मौसम और सर्दियों के महीनों” के दौरान कोविड-19 रोकथाम करने वाले व्यवहार के बिना यह बीमारी एक चुनौती बन सकती है।

28 जनवरी, 2021 को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के दावोस डायलॉग में बोलते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि नकारात्मक लोग गलत साबित हुए हैं। उन्होंने दावा किया, “मुझे याद है कि पिछले साल फरवरी-मार्च-अप्रैल में दुनिया के कई प्रतिष्ठित विशेषज्ञों और शीर्ष संस्थानों ने क्या कहा था। यह भविष्यवाणी की गई थी कि भारत पूरी दुनिया में कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित देश होगा। कहा गया था कि भारत में कोरोना संक्रमण की सुनामी आएगी। जिस देश में दुनिया की 18 फीसदी आबादी रहती है, उस देश ने कोरोना को प्रभावी ढंग से रोककर एक बड़ी आपदा से मानवता को बचाया है।”

26 फरवरी, 2021 को आईआईटी कानपुर के उप निदेशक और कोविड​​​​-19 इंडिया नेशनल सुपरमॉडल कमेटी के सदस्य मनिंद्र अग्रवाल ने मीडिया को बताया कि उनके पूर्वानुमान से हफ्तों पहले मामलों में वृद्धि के बावजूद दूसरी लहर की संभावना नहीं है। सुपरमॉडल पूर्वानुमान में कहा गया है कि अप्रैल 2021 तक कुल 11.5 मिलियन मामले होंगे (मार्च 2020 से लेकर सभी मामले) या अप्रैल 2021 तक प्रति सप्ताह 30,000 से 50,000 नए मामले होंगे। उस समय, महाराष्ट्र सबसे अधिक केसेज रिपोर्ट कर रहा था। अग्रवाल ने दावा किया कि मॉडल के अनुसार, 60 प्रतिशत आबादी पहले से ही संक्रमित हो चुकी थी और इस प्रकार हर्ड इम्यूनिटी (झुंड प्रतिरक्षा) विकसित हो चुकी थी।

4 फरवरी, 2021 को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक, बलराम भार्गव ने मीडिया को बताया कि 17 दिसंबर, 2020 से 8 जनवरी, 2021 तक किए गए तीसरे नेशनल सीरोलॉजिकल सर्वे के आधार पर केवल 21 प्रतिशत आबादी संक्रमित थी। इन पूर्वानुमानों ने परस्पर विरोधी संदेश दिए और आखिरकार सुपरमॉडल सूत्रा द्वारा किया गया पूर्वानुमान गलत हो गया। अक्टूबर 2020 में इस मॉडल ने कहा कि फरवरी 2021 तक सिर्फ 40,000 सक्रिय केसेज होंगे, जबकि वास्तविक संख्या चार गुना अधिक थी।

8 मार्च को, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की एक बैठक में बोलते हुए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा की, “हम भारत में कोविड-19 महामारी के अंत की तरफ बढ़ चुके हैं।” जब वह बोल रहे थे, उनके अधिकारी डेटा का मिलान कर रहे थे, जो उनके दावे का खंडन करता था। 12 मार्च को समाप्त सप्ताह के लिए भारत में नए कोविड-19 मामलों के सात दिनों के औसत में 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह महामारी के पहले लहर की समाप्ति के बाद देखा गया चढ़ाव था। भारत के 20 सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से 17 ने 20 प्रतिशत अधिक नए मामले दर्ज किए।

फिर 30 मार्च को महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई पर एक स्टेटस रिपोर्ट जारी करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “यह हम सभी के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। 30 जनवरी को हमारे पास पहला केस था और आज 14 महीने के बाद, हमने 12 मिलियन से अधिक कोविड-19 केसेज को हरा दिया है।” उन्होंने भारत के अनुभव को असाधारण अवसर बताया और कहा, “हमने कई देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।” उसी दिन, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने सार्वजनिक रूप से कहा कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है और वायरस हमारी रक्षा प्रणाली (शारीरिक) में घुस चुका है।

दो दिन बाद ही (अप्रैल, 2021) वैज्ञानिकों ने एक अलग ही भविष्यवाणी की। ये वैज्ञानिक कोविड-19 के ट्राजेक्टरी (प्रक्षेपवक्र) चार्टिंग करने के लिए सरकार समर्थित एक अन्य मॉडल पर काम कर रहे थे। वे सूत्रा (एसयूटीआरए: ससेप्टेबल, अनडिटेक्टेड, टेस्टेड पॉजिटिव एंड रीमूव्ड अप्रोच) के इस्तेमाल से ये ट्राजेक्टरी चार्टिंग कर रहे थे। इन वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की कि भारत की दूसरी लहर उसी महीने के तीसरे सप्ताह तक चरम पर होगी। प्रतिदिन 1 लाख मामले आएंगे (देखें, पूर्वानुमान,)। एक महीने बाद, वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि मॉडल की भविष्यवाणी गलत थी और इस वजह से गलत थी कि वायरस बहुत तेजी से बदल रहा है।



तब तक, भारत अपने सबसे व्यापक वैश्विक राहत कार्यों में से एक शुरू कर चुका था। जनवरी में देश का ऑक्सीजन निर्यात 734 फीसदी बढ़ गया था। भारत ने टीकों की लगभग 193 मिलियन डोज का भी निर्यात किया। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक और निदेशक राकेश मिश्रा कहते हैं, “हम चेतावनी देते रहे कि महामारी खत्म नहीं हुई है, लेकिन कोई सुन नहीं रहा था।” मिश्रा वर्तमान में इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या भारत में सबसे पहले पाया जाने वाला वेरिएंट्स बी.1.617 ही देश में दूसरी लहर के पीछे का कारण है। मिश्रा वह वैज्ञानिक भी हैं, जिन्होंने वह जानकारी सार्वजनिक की जिससे पता चलता है कि सरकार को मार्च की शुरुआत में ही एक घातक लहर के बारे में सूचित कर दिया गया था।

दोहरे म्यूटेंट का खतरा

अप्रैल के मध्य से, भारत में रोजाना 2 लाख नए मामले सामने आने लगे। यह वह समय है जब लगभग सभी राज्यों ने मामलों में वृद्धि दर्ज की। ऑक्सीजन और अस्पताल के बेड की भारी कमी ने देश को झकझोर कर रख दिया। 20 अप्रैल को मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया, “देश आज कोविड-19 के खिलाफ एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। थोड़ी देर के लिए स्थिति में सुधार हुआ था, लेकिन दूसरी कोविड-19 लहर तूफान की तरह आई है।” छह महीने से अधिक समय से चल रहे संकट के बारे में उनकी स्वीकारोक्ति काफी नहीं थी। दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राष्ट्रीय आपातकाल जैसी स्थिति है।

मोदी द्वारा घातक दूसरी लहर की स्वीकृति के तुरंत बाद, सरकार के शीर्ष संस्थानों के प्रमुखों ने संकेत दिया कि भारत में दूसरी लहर यूके वेरिएंट्स, दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट्स, ब्राजीलियन वेरिएंट्स और “इंडियन” वेरिएंट्स के कारण हो सकती है, जिसके कयास पिछले सितंबर से ही लगाए जा रहे थे। 23 अप्रैल, 2021 को एक वेबिनार में, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के निदेशक सुजीत सिंह ने कहा कि यूके वेरिएंट्स दिल्ली में संक्रमण बढ़ा सकता है। उन्होंने कहा, “मार्च के दूसरे सप्ताह में यह 28 प्रतिशत नमूनों में पाया गया, जबकि मार्च के अंतिम सप्ताह में 50 प्रतिशत नमूनों में यह वेरिएंट्स पाया गया। दिल्ली में इंडियन वेरिएंट्स भी बढ़ रहा है। दिल्ली में उछाल स्पष्ट रूप से इस वेरिएंट्स के कारण है।” उन्होंने कहा कि पंजाब की उछाल यूके वेरिएंट्स से प्रेरित है, जबकि महाराष्ट्र के मामले में, “इंडियन वेरिएंट्स” प्रमुख कारक है।

वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के वायरोलॉजिस्ट और प्रोफेसर टी जैकब जॉन कहते हैं कि मार्च के मध्य के आसपास, जब मामलों की संख्या बढ़ी तो किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि दूसरी लहर कोरोना वायरस के एक नए वेरिएंट के कारण है। इस फैलते हुए स्ट्रेन को डोमिनेंट वेरिएंट (डी164जी) माना गया। जॉन कहते हैं, “हमने सोचा कि केंद्र नियमित रूप से यूके वेरिएंट (सितंबर 2020 में उत्पन्न), दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट (अक्टूबर 2020) और ब्राजीलियन वेरिएंट (नवंबर 2020) के प्रसार की निगरानी कर रहा है, जिसमें उच्च संचरण क्षमता है। हालांकि, हम पूरी तरह से गलत थे। तेजी से फैलने वाला बी.1.617 (डबल म्यूटेंट) भारत में पहले से मौजूद था।” दिसंबर 2020 में सरकार ने जीनोमिक एनालिसिस का काम कंसोर्टियम इंडियन सार्स-सीओवी-2 कंसोर्टियम ऑन जीनोमिक्स को सौंपा, जिसमें पूरे भारत के 10 सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान और प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इसे सभी पॉजिटिव पाए गए सैम्पल में से 5 प्रतिशत की जांच करने के लिए कहा गया।

संक्रमण फैलाने वाले (सुपरस्प्रेडर) कार्यक्रम

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत एक विविध और बड़ा भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें एक साथ कोविड-19 के कई रूपों का प्रकोप हो सकता है। एक नया वेरिएंट हमेशा तेजी से फैलता है। इसका मतलब है, देश में कई प्रकोप हो सकते हैं, जिनमें से हर एक के लिए अनुकूलित रणनीति की आवश्यकता है। ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि हमने प्रकोप को स्वीकार ही नहीं किया था। धार्मिक त्योहारों और चुनावी रैलियों जैसे सुपर-स्प्रेडर कार्यक्रमों की अनुमति देते हुए राज्य दर राज्य खुलते गए। चुनाव आयोग ने 26 फरवरी, 2021 को दो महीने से अधिक समय तक चलने वाले राज्य चुनावों की घोषणा की। जॉन कहते हैं, “हमने कुंभ मेला जैसे आयोजन कर वेरिएंट के लिए रेड कार्पेट बिछाया। हमने यह मानते हुए ऐसा किया कि हमारे आसपास कोई वायरस नहीं था। यहां तक ​​कि जब हम समस्या के बारे में जानते थे, तब भी सरकार ने प्रसार को रोकने में देरी की, जिससे अकल्पनीय परिस्थितियां पैदा हुईं।”

केरल के मामले को ही लें, जो महामारी प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण बना हुआ है। इसने एक सुविचारित रणनीति को अपनाया। हालांकि भारत में महामारी का पहला मामला केरल में 30 जनवरी, 2020 को सामने आया था, लेकिन राज्य ने मई तक संक्रमण के कर्व को सफलतापूर्वक समतल कर दिया, जबकि अन्य राज्यों में मामले कई गुना बढ़ रहे थे। केरल के “डिले द पीक” (संक्रमण चरम को अधिक से अधिक समय तक टालना) मॉडल को दुनियाभर में मान्यता मिली थी। ऐसे दिन भी थे जब केरल में संक्रमण का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। राज्य को अपने पहले 1,000 मामलों की रिपोर्ट करने में चार महीने लग गए।

त्रिशूर के एक सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी विशेषज्ञ वी रमन कुट्टी कहते हैं, कर्व को समतल करने के प्रारंभिक चरण के बाद, राज्य की प्राथमिकताओं में भारी बदलाव आया। लगातार दो चुनावों और विभिन्न त्योहारों के बीच कोविड-19 पर ध्यान कम गया। राज्य संभावित दूसरी लहर को लेकर थोड़ा आशंकित लग रहा था, जो अब एक खतरनाक हकीकत बन चुका है। राज्य वायरस के आनुवंशिक रूपांतर होने का अनुमान लगाने में भी विफल रहा।” यहां तक ​​​​कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने भी स्वीकार किया कि दिसंबर 2020 में हुए पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम के चुनाव और अप्रैल 2021 में राज्य विधानसभा के चुनाव ने संक्रमण वृद्धि में बहुत योगदान दिया।

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 14 अप्रैल से कोविड-19 मामलों में 255 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये वो समय था जब लोग फसल उत्सव विशु मना रहे थे, बड़ी संख्या में लोग खरीदारी और उत्सव में लगे हुए थे। कुट्टी ने कहा, “चुनावों और समाज में असुरक्षित मेल-मिलाप ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिसमें राज्य दो लहरों के बीच कुछ कर पाने में विफल रहा।” केरल के निवर्तमान स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा कहती हैं, “चुनावों और त्योहारों के उत्सव के अलावा राज्यभर के लोगों ने लॉकडाउन के बाद की अवधि को एक अवसर के रूप में पाया, जिसे विशेषज्ञ बदला लेने वाला समाजीकरण (रिवेंज सोशियलाइजेशन) कहते हैं।” नतीजतन, दूसरी लहर में केरल की स्थिति देश के बाकी हिस्सों के जैसी ही हो गई है।

कोविड-19 रोगियों के लिए निर्धारित आईसीयू और वेंटिलेटर बेड तेजी से भर रहे हैं। महामारी, जो पहले बुजुर्गों और बीमार रहने वाले लोगों तक ही सीमित थी, अब छोटी स्वास्थ्य समस्याओं वाले युवाओं में भी देखी जा रही है। देश की सबसे मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए जाना जाने वाला राज्य दूसरी लहर के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। केरल में सक्रिय मामले 30 अप्रैल को 0.3 मिलियन का आंकड़ा पार कर गए थे। केरल की पॉजिटिविटी रेट (कुल परीक्षणों में सकारात्मक मामलों का प्रतिशत) लगभग 25 प्रतिशत है। राज्य में इस वायरस ने 5,300 से अधिक लोगों की जान ले ली है।

पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में चुनाव हुए और 100 से अधिक मेगा रैलियां हुई। राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने माना कि सरकार ने मार्च की पहली छमाही में दूसरी लहर के संकेत देखे, क्योंकि मामले बढ़ने लगे थे। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी का कहना है कि राज्य के चुनावी मोड में होने और आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण कोई कुछ नहीं कर सकता था। उत्तर 24 परगना के चिकित्सक और एसोसिएशन ऑफ हेल्थ सर्विस डॉक्टर्स, पश्चिम बंगाल के महासचिव मानस गुमटा कहते हैं, “चुनाव के साथ ही वायरस के नए वेरिएंट ने भी एक भूमिका निभाई होगी।” कोलकाता के पीयरलेस हॉस्पिटल के क्लिनिकल डायरेक्टर शुभ्रोज्योति भौमिक का कहना है कि कोलकाता से बाहर संक्रमण का प्रसार चुनाव की भूमिका की ओर इशारा करता है। भौमिक कहते हैं, “अधिकांश क्षेत्रों में बाद के चरणों में चुनाव हुए, इसलिए अधिक रैलियां हुईं। नतीजतन, अधिक मामले सामने आए।”

पश्चिम बंगाल सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 26 फरवरी को कोलकाता शहरी इलाकों के अलावा 19 जिलों ने राज्य के 216 मामलों में 56 मामलों (26 प्रतिशत) का योगदान दिया। इसी दिन चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। 3 मई को, कुल मामलों की संख्या लगभग 81 गुना बढ़कर 17,501 हो गई थी। 29 अप्रैल को अंतिम चरण में मतदान वाले बीरभूम और मालदा जैसे जिलों में 26 फरवरी को क्रमशः दो और एक मामले थे, लेकिन 3 मई को 833 और 522 मामले थे। बंगलुरू स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़े महामारी विज्ञानी गिरिधर आर बाबू कहते हैं, “उन राज्यों में जहां चुनाव नहीं हुए हैं, मामलों में उछाल विभिन्न प्रकार की सभाओं के कारण है।

लेकिन पश्चिम बंगाल में ये ज्यादातर चुनाव से जुड़ी हुई हैं।” भौमिक कहते हैं, “हमारे पास पश्चिम बंगाल या भारत का डेटा नहीं हो सकता है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का विश्लेषण स्पष्ट रूप से बड़ी चुनावी सभाओं और संक्रमण के बीच संबंध स्थापित करता है। अक्सर कोविड-19 मानदंडों को अपनाए बिना ऐसी सभाओं के करने से कोविड-19 मामलों में तेजी आई है।” ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता के पूर्व निदेशक अरुणाव मजूमदार कहते हैं, “एक लंबा चुनाव निश्चित रूप से कोविड-19 वृद्धि में योगदान दे रहा है क्योंकि यह जोखिम को अधिकतम कर रहा है।”

कोविड​​​​-19 पर राज्य सलाहकार समिति के सदस्य और कोलकाता स्थित एक चिकित्सक सुकुमार मुखर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कोविड​​​​-19 के मामले मई के मध्य तक प्रति दिन लगभग 25,000 तक पहुंच सकते हैं, जिससे कोलकाता की स्थिति दिल्ली जैसी हो सकती है। आसपास के जिले सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है। डॉक्टरों का कहना है कि कोलकाता और आसपास के इलाकों में सकारात्मकता दर पहले से ही 40-90 प्रतिशत है। राज्य में कुल पॉजिटिविटी रेट 29 फीसदी तक पहुंच गई है। वह कहते हैं, “दूसरी लहर शुरुआती लहर से काफी बड़ी साबित हो रही है। अप्रैल के दौरान, मामलों की संख्या में वर्टिकल वृद्धि हुई थी। स्थिति पहले से ही कठिन है क्योंकि अधिकांश अस्पतालों में लगभग कोई बेड नहीं बचा है।”

अगले भाग में पढ़ें, किस तरह बढ़ गई टीके की किल्लत