एक नए शोध से पता चला है कि यदि शैशव अवस्था में बच्चे के शरीर में आयरन की कमी हो तो वो भविष्य में टीकों के प्रभाव को कम कर सकती है। यह जानकारी ईटीएच ज्यूरिख द्वारा किये शोध में सामने आई है। यह शोध जर्नल फ्रंटियर्स इन इम्म्युनोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी आई है और यह पहले की तुलना में कहीं ज्यादा बच्चों तक पहुंच रहा है। इसके बावजूद अब भी हर साल करीब 15 लाख बच्चे उन बीमारियों के कारण मर जाते हैं जिनके टीके उपलब्ध हैं। इनमें से ज्यादातर मौतें कम आय वाले देशों में ही होती हैं। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया था कि आखिर क्यों टीकाकरण के बावजूद इन गरीब देशों के बच्चे इन बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। यह एक बड़ी चिंता का विषय है कि आखिर क्यों इन देशों में टीकाकरण सफल नहीं हो पा रहा है। एक ही तरह की वैक्सीन होने के बावजूद इन देशों में टीके क्यों प्रभावी नहीं होते?
वैज्ञानिकों के अनुसार इसके पीछे की एक बड़ी वजह शिशुओं में आयरन की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में 5 वर्ष से कम उम्र के करीब 42 फीसदी बच्चे और 40 फीसदी गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी है और वो एनीमिया से पीड़ित हैं। इसके पीछे की वजह उनके खाने में आयरन की कमी है। यदि भारत के आंकड़ों पर गौर करें तो नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के अनुसार देश में 5 वर्ष से कम आयु के 58 फीसदी से ज्यादा बच्चे एनीमिया से ग्रस्त हैं। जबकि दूसरी और 15 से 49 वर्ष की करीब 53 फीसद महिलाओं में खून की कमी है।
हाल ही में किए दो अध्ययनों से यह बात साबित हो गई है कि बचपन में आयरन की कमी भविष्य में वैक्सीन के प्रभाव को कम कर सकती है। इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने पहले शोध में केन्या के बच्चों पर अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार स्विट्ज़रलैंड में जो बच्चे जन्म लेते हैं उनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है जो आमतौर पर उनके जीवन के पहले 6 महीनों के लिए पर्याप्त होता है। वहीं दूसरी ओर केन्या, भारत, और अन्य पिछड़े देशों में जन्में शिशुओं में आयरन की कमी होती है। विशेषरूप से जिन बच्चों की माताओं में आयरन की कमी होती है, उनके बच्चे भी आयरन की कमी के साथ पैदा होते हैं। साथ ही उन बच्चों का वजन भी कम होता है। इस वजह से उनमें संक्रमण और खूनी दस्त जैसी समस्याएं होती हैं। इस कारण उनके शरीर में मौजूद आयरन भंडार दो से तीन महीनों में ख़त्म हो जाता है।
शोध से पता चला है कि जिन बच्चों के शरीर में खून की कमी थी, उनके कई टीकाकरण के बावजूद डिप्थीरिया, न्यूमोकोकी और अन्य बीमारियों से ग्रस्त होने की सम्भावना अधिक थी, क्योंकिं उनके शरीर में इन बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता कम विकसित थी। इनमें गैर एनेमिक शिशुओं की तुलना में बीमारियों का जोखिम दोगुना था। इस शोध में आधे से भी अधिक बच्चे 10 सप्ताह की उम्र में एनीमिया से पीड़ित थे। वहीं 24 सप्ताह तक, 90 फीसदी से अधिक हीमोग्लोबिन और रेड सेल्स की कमी का शिकार थे।
दूसरे अध्ययन में शोधकर्ताओं ने रोजाना चार महीने तक छह माह के 127 शिशुओं को सूक्ष्म पोषक तत्वों वाला एक पाउडर दिया। 85 बच्चों के पाउडर में आयरन था, बाकि 42 बच्चों को आयरन सप्लीमेंट नहीं दिया गया। जब बच्चों को 9 माह की आयु में खसरे का टीका लगाया गया तो जिन बच्चों को आयरन दिया गया था, उनके शरीर में रोगाणुओं के खिलाफ ज्यादा प्रतिरक्षा विकसित हुई। 12 महीने की उम्र में इन बच्चों का शरीर ने केवल खसरे के रोगाणुओं से बेहतर तरीके से लड़ने में सक्षम था, बल्कि उनके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली रोगाणुओं को बेहतर ढंग से समझने के भी काबिल थी।
डब्ल्यूएचओ भी आहार में आयरन की पर्याप्त मात्रा लेने की सलाह देता है। शोधकर्ताओं के अनुसार इसको अपनाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि छोटे बच्चों के शरीर में मौजूद पर्याप्त मात्रा में आयरन से टीकाकरण कार्यक्रम में भी सफलता मिलेगी। साथ ही इसकी मदद से 15 लाख से भी ज्यादा बच्चों की जिंदगी बचाई जा सकेगी, जिनकी जान हर साल उन बीमारियों से चली जाती है जिन्हें टीकाकरण की मदद से रोका जा सकता है।