कोई पंद्रह साल पहले केरल की तीर्थनगरी गुरुवायुर की स्कूल शिक्षिका रती कुन्नीकृष्णन ने जमीनी स्तर पर स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से आरंभ की गई राज्य सरकार की प्रमुख योजना कुदुंबश्री से संपर्क किया था। उनका उद्देश्य मामूली ग्रामीण महिलाओं को बड़े पैमाने पर खाना पकाने और कैटरिंग जैसों से कामों में प्रशिक्षित करना था। हालांकि रती खुद पेशेवर नहीं थी और उनके पास एक स्पष्ट योजना भी नहीं थी।
49 वर्षीया रती बताते हैं “अधिकतर ग्रामीण महिलाएं बढ़िया खाना पकाती हैं, और अपने इस हुनर में प्रयोग करने को लेकर भी वे बहुत उत्सुक रहती हैं । लेकिन उनके पास अवसर नहीं थे।” बहरहाल अब इन महिलाओं ने कुछ अलग कर दिखाया है। रती मध्य केरल के त्रिशूर में ए.आई.एफ.आर.एच.एम. या “अधेबा” इंस्टिट्यूट ऑफ फूड रिसर्च हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट नाम से एक अनोखा स्वयं-सहायता समूह संचालित करती हैं। “अधेबा” का क्या अर्थ होता है? रती फौरन इस सवाल का जवाब देती हैं, यह ‘अतिथि देवो भव’ का संक्षिप्त रूप है।
“अधेबा” की शुरुआत कुदुंबश्री की स्थापना के केवल दस वर्ष बाद ही हुई थी । आज कुदुंबश्री अपनी स्थापना का पच्चीसवां साल पूरा कर चुकी है । इस अवधि में इसने केरल में 3.09 लाख स्वयं-सहायता समूहों की स्थापना की है जो आज पूरे राज्य में सुसंगठित और व्यवस्थित रूप से सक्रिय हैं । इन स्वयं-सहायता समूहों में “अधेबा” इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कुदुंबश्री से संबद्ध प्रत्येक स्वयं-सहायता समूह से उन औरतों का चयन करती है जो भोजन बनाने की कला में दक्ष हों।
आज कुदुंबश्री दूसरे काम के अलावा देश भर में महिला कैटरर्स के सबसे बड़े नेटवर्क को संचालित करती है । ये महिलाएं शीघ्र सूचना के आधार पर किसी भी बड़े आयोजन के लिए खाना पका सकती हैं, चाहे वह अनेक दिनों तक चलने वाले राष्ट्रीय खेल हों अथवा कोई अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन। महिलाएं किसी भी तरह का भोज मसलन चीनी व्यंजन, भूमध्यसागरीय, यूरोपीय, उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय या स्थानीय बना सकती हैं।
“हम कैटरिंग की आधुनिकतम तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं और बहुत कम कीमत पर भोजन उपलब्ध कराते हैं। अर्जित पैसों को निर्धन परिवारों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में खर्च किया जाता है। रती बताती हैं शुरुआत में “अधेबा” में महज सात सदस्य थे, आज यह विस्तृत होकर 3000 सदस्यों का एक विशाल समूह बन चुका है। 200 महिलाओं को सीधा रोजगार देने के अलावा पूरे राज्य में 3500 महिला रसोइयों और कैटर्स के नेटवर्क को संचालित करता है। इसके प्रशिक्षित स्टाफ आंध्रप्रदेश और झारखण्ड के कुछ इच्छुक महिला एसएचजी को यही प्रशिक्षण देने का काम भी करते हैं ।
एक साल से भी अधिक की अवधि तक कुदुंबश्री के आउटरीच शाखा में प्रतिनियुक्त प्रो. मैना उमैबान के अनुसार, एक सुरक्षित भविष्य के लिए इच्छुक महिलाओं को सहारा देने और उन्हें प्रशिक्षित करने की दृष्टि से “अधेबा” की भूमिका दुर्लभ है । इसी भूमिका से प्रभावित होकर प्रो. उमैबान इस समूह को अपनी सेवा के लिए प्रेरित हुईं। अपनी शुरुआत के बाद के सालों में अधेबा ने 35,000 महिलाओं को भोजन पकाने और कैटरिंग के कामों में बुनियादी प्रशिक्षण देने का काम किया है। एक पखवाड़े के इस सघन प्रशिक्षण कार्यक्रम का पूरा खर्च राज्य सरकार ने उठाया। प्रशिक्षुओं में से 15,000 को चयनित कर उन्हें विविध विशेज्ञता में प्रशिक्षित किया गया ताकि उन्हें स्थानीय स्तर पर छोटे कैटरिंग इकाइयों को चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
विगत वर्षों 3500 सदस्यों का एक अति दक्ष समूह विकसित हो चुका है जो अब “अधेबा” की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम कर रहा है । भोजन तैयार करने के अतिरिक्त “अधेबा” आज के दिन महिलाओं को भोजन सर्व करने, बुनियादी साफ-सफाई और हिसाब-किताब रखने जैसे काम भी सिखा रहा है ।
इस योजना की लाभुकों में एक वीके शेरीबा बताती हैं कि वे ग्राहकों की मांग के मुताबिक किसी भी प्रचलित क़िस्म का कोई भी व्यंजन बनाने में सक्षम हैं । अभी एक महीना पहले जब कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के निकट पंचायती राज पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें भारत के सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। शेरीबा ने बताया “हमने तीन दिन तक प्रतिदिन 15,000 लोगों को खाना देने की व्यवस्था की थी, और वे सभी लोग अलग-अलग स्वाद और आहार-संबंधी आदतों वाले लोग थे । हमने उन सबके लिए उत्तर भारतीय, चीनी व्यंजन, पूर्वोत्तर और दक्षिण भारतीय खाने की व्यवस्था की थी और हमारे द्वारा की गई व्यवस्था के लिए अतिथियों ने हमें खूब सराहा।
मैना बताती हैं कि “अधेबा” की शुरुआत से पहले कैटरिंग कर व्यवसाय में गिनी-चुनी महिलाएं ही थीं । जब रती और उनकी टीम ने अपनी योजना के साथ कुदुंबश्री से संपर्क किया, तब एजेंसी ने उन पर “औषधि” का प्रभार संभालने और उसकी कैंटीन चलाने की िजम्मेदारी सौंपी । “औषधि” त्रिशूर में सार्वजनिक क्षेत्र की एक दवा बनाने वाली कंपनी है जिसमें लगभग 2,000 लोग काम करते हैं ।
रती बताती हैं कि “औषधि” के पास सभी जरूरी बुनियादी और वित्तीय सुविधाएं उपलब्ध थीं, ऐसे में हमारे लिए शुरुआत करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था । इसलिए हमने “औषधि” में मिलने वाली सुविधाओं का इस्तेमाल अपनी महिलाओं को खाना बनाने और कैटरिंग का काम करने के लिए प्रशिक्षित करने करने में किया । साथ ही हमने कंपनी के स्टाफ की भोजन-संबंधी जरूरतों को पूरा करना भी जारी रखा।
फिलहाल यह संस्था केरल सरकार के एक विशाल भोजनालय को संभालती है जिसमें कोच्चि के निम्न-आय वर्ग के कर्मचारियों को केवल 20 रुपए में भरपेट भोजन कराया जाता है । 3500 से भी अधिक लोग इस रेस्टोरेंट में खाना खाते है जिसमें सरकार भोजन की हर थाली के बदले 10 रुपए का अनुदान देती है । बाकी खर्च के लिए पैसे “अधेबा” मछलियों की किस्में, मटन की किस्में और दूसरे मूल्य-संवर्धित उत्पादों की बिक्री से कमाती हैं ।
यह मलप्पुरम के सिविल स्टेशन की कैंटीन भी संचालित करती हैं, जहां लगभग 400 लोग इससे लाभान्वित होते हैं । “अधेबा” में विभिन्न कामों में समन्यव करने वाले अजय कुमार के अनुसार, केरल में जब कभी राष्ट्रीय खेलों का आयोजन होता है तब “अधेबा” ही इस आयोजन का आधिकारिक कैटरर्स होगी ।
वे बताते हैं “अभी तक राष्ट्रीय खेलों के आयोजनों में हमने तीन मौकों पर खानपान की व्यवस्था संभाली है जिनमें बड़ी तादाद में दूसरे राज्यों से आए भागीदार शामिल हुए हैं । हम शादी-विवाह की पार्टियों, अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों और अन्य उच्चस्तरीय आयोजनों के लिए भी आर्डर लेने का काम करते हैं।
हमारी ग्रामीण महिलाएं इन मौकों पर पेशेवर परिधान पहनती हैं और उनकी सेवाएं गुणात्मकता की दृष्टि से उच्चस्तरीय होती हैं। राठी कहती हैं “यदि आप केरल के 14 जिलों में कहीं भी कोई आयोजन करते हैं तो हमसे संपर्क कर सकते हैं, और हमारी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं । हम अपनी गुणवत्ता, कीमत, स्वाद और स्वच्छता के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ,” उनकी यह पहल लाभ पर आधारित नहीं है क्योंकि इससे होने वाली आमदनी को संबद्ध परिवारों में बांट दिया जाता है ।