स्वास्थ्य

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: अनीमिया भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य में एक अदृश्य लेकिन विकराल चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर अनीमिया जैसे अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले मुद्दे पर प्रकाश डालना बेहद महत्वपूर्ण है

Soha Moitra

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के एक छोटे से गाँव सोनीपुर में रहने वाली 12 वर्षीय रानी आदिवासी (परिवर्तित नाम) खून की कमी के चलते लिवर से जुड़ी गंभीर समस्याओं से जूझ रही है। जब उसे इलाज के लिए शिवपुरी ज़िला अस्पताल लाया गया तब उसका हीमोग्लोबिन स्तर मात्र 3.7 पाया गया था। कुल 8 सदस्यों के परिवार मे पली-बड़ी रानी का परिवार जीविका के लिए पूरी तरह से उसके पिता कि दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है। ऐसे मे खानपान में लापरवाही के चलते कम उम्र से ही उसे कुपोषण और फिर अनीमिया जैसी जटिल स्वास्थ्य समस्याओं ने जकड़ लिया।

रानी की गंभीर स्थिति का पता एक त्रैमासिक स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान चला। परीक्षण के दौरान रानी का  हीमोग्लोबिन स्तर मात्र 4 ग्राम पाया गया था। जिसके पश्चात परामर्शदाता द्वारा उसके परिवार को इसकी गंभीरता से अवगत कराया गया लेकिन परिवार वाले उसकी स्थिति को नजरंदाज करते रहे। काफी प्रयासों के बाद रानी को इलाज के लिए ग्वालियर ले जाया गया जहाँ से उसे शिवपुरी ज़िला अस्पताल रेफर किया गया। रानी के स्वास्थ्य मे काफी सुधार हुआ है लेकिन लंबे समय से खून कि कमी होने कि वजह से उसके शरीर के दूसरे अंगों पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

रानी जैसी लाखों बच्चियों के जीवन मे अनीमिया खामोशी से अपने पैर पसार रहा है। इससे हर उम्र, लिंग और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कि बच्चियाँ एवं महिलायें प्रभावित हो रही हैं। हालाँकि, प्रारंभिक चरण में इसकी एसिम्टोमैटिक प्रकृति के कारण इसकी व्यापकता पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों -5 के अनुसार भारत मे 15-19 एवं 15-49 वर्ष के महिलाओं एवं बच्चियों से जुड़े चौकने वाले आँकड़े सामने आए हैं, जो दर्शाते हैं कि आधे से भी अधिक भारतीय महिलाएं और बच्चियां अनीमिया से पीड़ित हैं। यह चिंतनीय है कि 52 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में भी एनेमिया पाया गया है। अपनी व्यापक उपस्थिति के बावजूद, अनीमिया अन्य प्रमुख स्वास्थ्य चिंताओं कि तुलना मे काफी हद तक नजरंदाज कर दिया जाता है।

भारत में अनीमिया के उच्च प्रसार में कई परस्पर जुड़े कारक योगदान करते हैं। आयरन युक्त खाद्य पदार्थों का कम सेवन, आवश्यक पोषक तत्वों तक अपर्याप्त पहुंच के साथ, आयरन की कमी, जरूरी माइक्रो न्यूट्रीएंट्स का अपर्याप्त सेवन अनीमिया के लिए आधार तैयार करता है। इसके अलावा, प्रचलित सांस्कृतिक प्रथाएं, जैसे कम उम्र में शादी और गर्भधारण, महिलाओं में अनीमिया के खतरे को बढ़ाती हैं, जिससे अंतरपीढ़ीगत कुपोषण का दुष्चक्र कायम रहता है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक सीमित पहुंच बच्चियों एवं महिलाओं को कईं तरह के संक्रमण का शिकार बनाती है, जिससे अनीमिया का बोझ और बढ़ जाता है।

यह नकारा नहीं जा सकता कि सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक अपेक्षाएं अक्सर महिलाओं और लड़कियों की तुलना में पुरुषों और लड़कों की पोषण संबंधी जरूरतों को प्राथमिकता देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप आवश्यक पोषक तत्वों और स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुंच होती है। भारत के सामाजिक ताने-बाने में लैंगिक पूर्वधारणाएँ अनीमिया के प्रसार और उपचार के परिणामों में असमानताओं में योगदान करते हैं। नतीजतन, बच्चियों एवं महिलाओं को अनीमिया के दुष्परिणामों का खामियाजा भुगतना पड़ता है, उन्हें गर्भावस्था, प्रसव के दौरान और अपने पूरे जीवन काल में जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

अनीमिया के परिणाम इससे होने वाली शारीरिक दिक्कतों से कहीं आगे तक फैले हुए हैं, जो मानव स्वास्थ्य और विकास के कई क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं। अनीमिया से जूझ रहे व्यक्ति अक्सर थकान, कमजोरी और कम उत्पादकता का अनुभव करते हैं, जिससे उनकी प्रगति करने और समाज में सार्थक योगदान देने की क्षमता बाधित होती है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान अनीमिया मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है, जिससे जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म और मातृ मृत्यु जैसे प्रतिकूल परिणामों की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों में, अनीमिया संज्ञानात्मक विकास में बाधा डालता है, सीखने की क्षमता को ख़राब करता है और गरीबी और अल्पउपलब्धि के चक्र को कायम रखता है।

भारत मे एनेमिया के संकट से लड़ने के लिए कईं महत्वपूर्ण पहल किए गए हैं जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखे जा रहे हैं। लेकिन अनीमिया जैसे अदृश्य संकट से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई और बहुक्षेत्रीय सहयोग जरूरी है। तकरीबन तीन दशकों से अधिक समय से सरकार की प्रोग्रामिंग में आयरन और फोलिक एसिड (आईएफए) सप्लीमेंट को शामिल करने के बावजूद, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) डेटा आईएफए सेवन के लगातार निम्न स्तर का संकेत देता है।

रिपोर्ट के अनुसार 20 वर्ष से कम उम्र की 20 प्रतिशत से कम महिलाओं और केवल 22 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान 90 दिनों या उससे अधिक समय तक आईएफए की खुराक का सेवन करने की सूचना दी। लोगों मे खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों मे आईएफए सप्लीमेंट से जुड़ी गलत धारणाएँ जैसे आईएफए सेवन से गर्भधारण मे दिक्कत, इसके कम सेवन कि प्रमुख वजह मे से एक है। इन सब चुनोतियों के चलते जोखिमग्रस्त आबादी तक एनेमिया के लिए चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों कि पहुँच सुनिश्चित कराना एक चिंता का विषय बना हुआ है।

क्राई का यह मानना है कि अनीमिया के खतरे के बारे में जागरूकता बढ़ाने, गलत धारणाओं को दूर करने और सामुदायिक स्तर पर निवारक उपायों को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास करने से ही हम बेहतर परिणाम देख सकेंगे। अनीमिया का समय पर निदान और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण और सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है। इसके अलावा, अंतर-पीढ़ीगत अनीमिया के चक्र को तोड़ने के लिए पोषण हस्तक्षेप, स्वच्छ पानी और स्वच्छता तक पहुंच और महिलाओं के सशक्तिकरण को शामिल करने वाली व्यापक रणनीतियाँ महत्वपूर्ण हैं।

क्राई द्वारा सामुदायिक स्तर पर हरी सब्जियां और आयरन युक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध करने के लिए पोषण वाटिका, मुर्गी पालन, गर्भवती और किशोरियों कि खानपान को लेकर समझ बनाने के लिए विशेष भोजन प्रदर्शन सत्र आयोजित जैसे कार्यक्रम चलायें गए हैं। साथ ही पौष्टिक अनाज के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए बाजरा जैसे पोषक बीज हर गाँव में वितरित भी किए हैं। इन पहलों के सकारात्मक परिणाम देखें गए हैं।

अनीमिया भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य में एक अदृश्य लेकिन विकराल चुनौती के रूप में बनी हुई है, जो चुपचाप लाखों बच्चियों एवं महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण को कमजोर कर रही है। इस छिपे हुए संकट पर प्रकाश डालकर, संसाधन जुटाकर और रोकथाम और प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, हम बच्चियों और महिलाओं को एक बेहतर भविष्य दे सकते हैं जहां वह अपनी पूरी क्षमता के साथ देश कि तरक्की मे योगदान दे सकती हैं।

इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में अनीमिया जैसे अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले मुद्दे पर प्रकाश डालना बेहद महत्वपूर्ण है। अनीमिया न केवल बालिकाओं के स्वास्थ्य और क्षमता को कमजोर करता है बल्कि असमानता और अभाव के चक्र को भी कायम रखता है। हमें अनीमिया के खिलाफ बालिकाओं को सशक्त बनाने और स्वास्थ्य और उससे परे लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने कि तत्काल आवश्यकता को पहचानना होगा।

बालिकाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण में निवेश करके, हम न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार करेंगे बल्कि सभी के लिए अधिक न्यायसंगत और समृद्ध समाज के निर्माण में भी योगदान देंगे।

लेखिका सोहा मोईत्रा चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की क्षेत्रीय निदेशक हैं