ग्रामीण जल जीवन मिशन के अंतर्गत घरों में नल से जल उपलब्ध होने से महिलाओं और किशोरी बालिकाओं को सबसे अधिक लाभ मिलने लगा है, किशोरियां स्कूल जाने लगी हैं, तो महिलाएं रोजगार के नए-नए साधन ढूंढ़कर अपनी आजीविका में सुधार ला रही हैं। लेकिन यह इतना आसान नहीं था।
पानी के लिए दशकों तक ग्रामीण महिलाओं को संघर्ष करना पड़ा है तब जाकर जल जीवन मिशन के तहत उनके घरों में पेयजल की आपूर्ति संभव हुई और अब पानी की जांच संबंधी प्रशिक्षण पाकर समूह की महिलाएं अपनी आजीविका चला रही हैं।
हर गांव में महिला समूहों ने मिलकर जल समिति का गठन किया है, जो ग्रामीणों के जलप्रदाय की देखरेख कर रही हैं। इसके लिए जल निगम की ओर से ग्रामीण महिलाओं को पानी संबंधी प्रशिक्षण दिए गए हैं। जिसके तहत महिलाएं पेयजल की जांच करने के साथ जल की बर्बादी रोकने के लिए निगरानी करती हैं।
इसके अलावा समिति की महिलाएं घर-घर जाकर जल का कर वसूलती हैं। यदि किसी तरह की शिकायत होती है तो वह तत्काल फोन से अधिकारियों को सूचित करती हैं और जल जनित बीमारियों की जानकारी देना उनका काम बन चुका है। इन महिलाओं को पेयजल परीक्षण के लिए किट भी उपलब्ध करवाया गया है। पेयजल की देखरेख और जांच के मामले में ग्रामीण महिलाएं अब पूरी तरह चैंपियन बन चुकी हैं।
छिंदवाड़ा जिले के मऊ ग्राम पंचायत की महिलाओं ने डाउन टू अर्थ के साथ अपने अनुभव साझा किए। ग्राम पंचायत मऊ की अनिता चौधरी जल समिति की अध्यक्ष हैं। उन्होंने बताया कि मोहखेड़ा ग्रामीण जल प्रदाय योजना में सिर्फ बरसात का पानी स्टोर किया जाता है। और इस पानी का शोधन करने के बाद न सिर्फ मऊ ग्राम पंचायत में बल्कि आस-पास के 30 अन्य गांवों की प्यास इसी पानी से बुझाई जा रही है। अकेले मऊ ग्राम पंचायत में करीब 623 नल कनेक्शन हैं।
मऊ ग्राम में गर्मी के दिनों में टैंकर से पानी सप्लाई होता था, जिसके लिए गांव की महिलाओं को लंबी कतारों में लगना होता था। साथ ही पानी हासिल करने के लिए उन्हें बड़ा वक्त खर्च करना पड़ता था।
जल समिति की अध्यक्ष अनिता ने कहा कि जितना समय पहले पानी के पीछे चला जाता था, उसे अब महिलाएं रोजगार में लगाकर अपनी आय बढ़ा रही हैं । अनिता इस काम के अलावा एक दुकान भी संचालित करती हैं।
जहां से उन्हें प्रतिमाह 4,000 रुपए की आय हो रही है। इस आय से वह परिवार की मदद करती है और उनका जीवन स्तर भी पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हुआ है। इन सब कारणों से वह जलकर वसूली में ज्यादा रुचि लेती हैं, ताकि यह सिलसिला थमे नहीं।
इसी तरह ग्राम मऊ से प्रेरणा स्व सहायता समूह की सचिव सविता ढोबले बताती है कि पानी के लिए दो किलोमीटर तक का सफर तीन गुंडी (मटका) सिर पर रखकर तेज कदमों से चलकर जाना पड़ता था। वहां कुएं में रस्सी डालकर पानी खींचने से हाथों में छाले पड़ जाते थे, लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आता था, उसी तकलीफ में 25 लीटर पानी सिर पर रखकर लाना पड़ता था।
इसके अलावा पानी के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती थी, इससे समय अधिक लग जाता था। कुएं से चार-पांच महिलाएं इकट्ठे पानी खींचने लगती थी, यह सोचकर कि कहीं पानी खत्म न हो जाए। ऐसा भी होता था, जिनका कुआं है, वह पानी भरने से मना करते थे, अगर महिलाएं नहीं मानी, तब वे कुएं में गोबर डाल देते थे, महिलाओं को अपमानित करते थे। ऐसे में आए दिन खाली गुंडी वापस घर लाना पड़ता था। कभी-कभी तो गुंडी को ही फोड़ देते थे।
वह दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। यहां लोगों के पास बहुत छोटे-छोटे खेत है, जिसके चलते पुरुषों को काम के लिए पलायन करना पड़ता है और महिलाएं दिन भर पानी के पीछे भाग दौड़ करती थी। इससे बच्चों का जीवन प्रभावित होता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
प्रेरणा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी प्रीति बताती हैं कि घर पर पानी की आपूर्ति होने के बाद से वह सिलाई का काम करने लगी हैं। अब परिवारों में पहले जैसा तनाव नहीं है। गांव में अब पानी को लेकर चर्चा भी कम होने लगी है। प्रीति भी अन्य महिलाओं के साथ जल कर वसूलने में साथ देती हैं। वह कहती हैं कि महिलाएं अपनी कमाई से ही जलकर अदा कर देती हैं।
संत रविदास सहायता समूह की सचिव संध्या बघेल अब अपना समय गांव में लैंगिक समानता के लिए जागरूक करने में लगाती हैं। उन्होंने कहा कि दूषित पानी से होने वाली डायरिया उल्टी दस्त जैसी बीमारियां भी अब गांव में नहीं देखी जाती। बच्चे भी पहले की अपेक्षा कम कुपोषित हैं। घरेलू हिंसा में भी कमी आई है। कुल मिलाकर महिलाएं जागरूक हुई हैं। और पानी के काम ने इनका जीवन स्तर सुधार दिया है।