स्वास्थ्य

लॉकडाउन में शिक्षा की पहल

DTE Staff

लॉकडाउन एक ऐसा शब्द है जिससे पूरी दुनिया न केवल परिचित है बल्कि इससे पीड़ित भी है। लॉकडाउन के बाद मेरे कैंपस यानी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बंगलूरु (आईआईटी) के अंदर रहने वाले परिवारों के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई में जुट गए। इन्हें देखकर मेरे मन में सवाल कौंधा कि कितने बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर पाते होंगे? समझ में आया कि ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या देशभर में मुट्टीभर ही है। ऐसे में हम क्या करें कि देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले गरीब और आदिवासी बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हो सके?

इस संबंध में मैंने अपने संस्थान के शिक्षकों के अलावा देशभर के आईआईटी के शिक्षकों और भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम में पढ़ा रहे या सेवानिवृत हो चुके शिक्षकों से बातचीत शुरू की। बातचीत का परिणाम यह निकला कि कम से कम एक दर्जन शिक्षकों ने ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी सहमति दे दी। तब हमने यहीं बंगलूरु से देश के लगभग सात राज्यों में दूर-दराज इलाकों में रहने वाले बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने का काम शुरू किया।

हम सभी जानते हैं कि बच्चों के लिए सबसे कठिन विषय होते हैं भौतिकशास्त्र, रसायन शास्त्र, जीवविज्ञान और गणित। और इनसे भी बढ़कर अंग्रेजी की जानकारी। हम जितने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उनकी पढ़ाई का स्तर बहुत नीचे है। हम समझ गए कि इन बच्चों को उन्हीं की मातृभाषा में ही अंग्रेजी और अन्य विषय पढ़ाना होगा। हमने तय किया कि जो शिक्षक जिस स्थानीय भाषा को जानता है, उसी भाषा मंे बच्चों को पढ़ाए। अब तक कर्नाटक में दो, केरल में तीन, तमिलनाडु में दो, उत्तर प्रदेश मंे चार सहित सात राज्यों में हमारे 16 सेंटर ऑनलाइन बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि दूरस्थ इलाकों में रहने वाले बच्चों को लैपटॉप या इंटरनेट कनेक्शन किस प्रकार मिल रहा है। इस संबंध में हमने कुछ ऐसे गैर सरकारी संगठनों की मदद ली जो इन इलाकों में काम कर रहे हैं। वे अपने इलाकों में रह रहे बच्चों को एक कमरे में एकत्रित करते हैं और इन सेंटरों को दिए गए लैपटॉप की मदद से पढ़ाई करते हैं। कई स्थानों पर गैर सरकारी संगठनों ने हमें प्रोजेक्टर की सुविधा दी है। वह ब्लैक बोर्ड की तरह कक्षा में काम आता है।

हम और आप सभी जानते हैं कि गरीब बच्चों के लिए ट्यूशन करना आसान नहीं है। विज्ञान के अच्छे शिक्षक भी मुश्किल से मिलते हैं। हम इस कमी को दूर करने की कोशिश में जुटे हैं। हमारे अधिकतर शिक्षक किसी न किसी संस्थान में पढ़ा रहे हैं। वे अपना समय निकालकर देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में पढ़ रहे बच्चों को मजबूत कर रहे हैं। हमारी कक्षा एक से डेढ़ घंटे की होती है और इसमें केवल शिक्षक पढ़ाता ही नहीं है बल्कि दोनों तरफ से संवाद होता है। मातृभाषा में संवाद होने पर बच्चे जमकर सवाल-जवाब करते हैं। इन कक्षाओं में पढ़ रहे बच्चों को देखकर मुझे लगता है कि हर बच्चे में प्रतिभा का कितना भंडार छिपा हुआ है। इन कक्षाओं को शुरू हुए अब एक साल से अधिक होने को आया है। विज्ञान के विषयों को स्थानीय भाषा में आसानी से पढ़ाया जा सकता है और इन विषयों के प्रति बना डर भी खत्म किया जा सकता है। हमारे साथ कुछ ऐसे शिक्षक भी जुड़े हुए हैं जिनका पैशन है बच्चों को पढ़ाना।

देश-दुनिया में लॉकडाउन ने हमारे समाज का तानाबाना हिला दिया है और इससे बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। ऐसे में हम अपनी ओर से हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि लॉकडाउन उनके लिए मुसीबत का पहाड़ न बने, बल्कि उनके लिए वरदान साबित हो। हमारी कोशिश है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद और भी कई राज्यों में देश के सबसे अच्छे शिक्षकों की उपलब्धता ग्रामीण अंचलों के गरीब बच्चों को कराई जाए।